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[1]मध्याह्नकालीन सेवा
श्रीकुण्ड अर्थात राधा कुण्ड पर श्रीराधा और श्रीकृष्ण के मिलन का दर्शन करना।
कुंज में विचित्र पुष्प-मन्दिर आदि का निर्माण करना और कुंज को साफ करना।
पुष्पशय्या की रचना करना।
श्रीयुगल के श्रीचरणों को धोना।
अपने केशों के द्वारा उनके श्रीचरणों का जल पोंछना।
चँवर डुलाना।
मधुक (महुए) के पुष्पों से पेय मधु बनाना।
मधुपूर्ण पात्र श्रीराधा-कृष्ण के सम्मुख धारण करना।
इलायची, लौंग, कपूर आदि के द्वारा सुवासित ताम्बूल अर्पण करना।
श्रीयुगल-चर्वित कृपाप्राप्त ताम्बूल का आस्वादन करना।
श्रीराधा-कृष्ण-युगल की विहाराभिलाषा का अनुभव करके कुंज से बाहर चले आना।
कस्तूरी-कुंकुम आदि के अनुलेपन द्वारा सुवासित श्री अंग के सौरभ को ग्रहण करना।
नूपुर और कंगन आदि की मधुर ध्वनि का श्रवण करना।
श्रीयुगल के श्रीचरण-कमलों में ध्वजा, वज्र, अंकुश आदि चिन्हों के दर्शन करना।
श्रीयुगल के विहर के पश्चात् कुंज के भीतर पुनः प्रवेश करना।
श्रीयुगल के पैर सहलाना और हवा करना।
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