पँच तत्व यशजु

जैसे  भौतिक पंच तत्व  पाँच चीज़ों से बना है
अग्नि,वायु,जल, आकाश और पृथ्वी। वैसे ही  भक्तिक पंच तत्व भी इनका है स्वरूप हैं। 
1- *अग्नि (गौर सुंदर)-*  अग्नि से जल की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में अग्नि ऊर्जा के रूप में विद्यमान है। इस अग्नि के कारण ही हमारा शरीर चलायमान है। अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोगी रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। इसी तरह गौर सूंदर भी अग्नि तत्वतः भक्त के भीतर ऊर्जा स्वरूप में विद्यमान रहते।

2- *आकाश (निताई चाँद)* तत्व : आकाश एक ऐसा तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान है। यह आकाश ही हमारे भीतर आत्मा का वाहक है। इस तत्व को महसूस करने के लिए साधना की जरूरत होती है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी सुख, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरीर मे विद्यमान है। इसलिए भक्त को सदा भक्ति मार्ग में श्रीनिताई तत्व की आवयश्कता अधिक चाहिए होती।

3 - *जल तत्व (श्री अद्वैत प्रभु)*: जल से ही जड़ जगत की उत्पत्ति हुई है। हमारे शरीर में लगभग ज्यादा मात्रा में जल विद्यमान है उसी तरह जिस तरह की धरती पर जल विद्यमान है। जितने भी तरल तत्व जो शरीर और इस धरती में बह रहे हैं वो सब जल तत्व ही है। श्री अद्वैत प्रभु ही वैष्णव जगत का आधार बन श्री गौर सुंदर को।प्रकट किए। बिना उनके यह जगत प्यासा मर जाता।

4- *पृथ्‍वी तत्व (श्री गदाधर)* : इसे जड़ जगत का हिस्सा कहते हैं। हमारी देह जो दिखाई देती है वह भी जड़ जगत का हिस्सा है और पृथ्‍वी भी। इसी से हमारा  भौतिक शरीर बना है, लेकिन उसमें तब तक जान  नहीं आ सकती जब तक की अन्य तत्व उसका हिस्सा न बने। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी बनी है उन्हीं से यह हमारा शरीर भी बना है। इसी प्रकार श्री गदाधर प्रभु के संग मिलकर ही सब तत्व भक्ति मार्ग में जीव के भीतर जीबन का निर्माण करते और स्वयम गदाधर प्रभु पृथ्वी जैसे सहनशील और विशाल हैं।

5- *वायु तत्व (श्रीवास प्रभु)* : वायु के कारण ही अग्नि की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में वायु प्राणवायु के रूप में विद्यमान है। शरीर से वायु के बाहर निकल जाने से प्राण भी निकल जाते हैं। जितना भी प्राण है वो सब वायु तत्व है। धरती भी श्वांस ले रही है। गौर सुदंर ने अपनी संकीर्तन लीला का शुभारंभ भी श्रीवास आँगन से शरू किया था। वही वायु तत्व है।
श्री नारद अवतरित श्री वास प्रभु हैं। श्री नारद जी को तो सर्वत्र वायु में ही रहने का अभ्यास सदा से। वायु की तरह वो सर्वत्र रहते हैं सबकी खबर सब लेर नजर रखते हैं।

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