प्रथम अध्याय 2
प्रथम अध्याय 2
जो भी व्यक्ति एक बार भी श्रीगौरागनिताई का नाम उच्चारण करता है, उसके अनन्त कर्मों के दोष नष्ट हो जाते हैं। आप सभी जीव एक गूढ़ रहस्य सुनें। कलियुग के जीवों के लिए गौरलीला धन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु है।श्रीगौरसुन्दर ही वृन्दावन में श्रीराधाकृष्ण के रूप में सखियों सँग नित्य विलास करते हैं। शास्त्रों के माध्यम से जीव ब्रजलीला के तत्व और ब्रज में हुई श्रीराधाकृष्ण की नित्यलीला की महिमा को समझता है।शास्त्रों के माध्यम से पूरा संसार जानता है कि कृष्णनाम और कृष्णधाम की महिमा अपार है। फिर भी लोगों को कृष्ण प्रेम की प्राप्ति क्यों नहीं हो रही। इसमे एक गूढ़ तत्व है जिस पर मायमुग्ध जीव विचार नहीं करते।
यदि बहुत जन्म तक श्रीकृष्ण का भजन करने पर भी प्रेम नहीं होता है , तब यह निश्चित है कि ऐसे व्यक्ति ने अनेकों अपराध किये हैं। यदि जीव अपराध शून्य होकर कृष्ण नाम लेता है तो बिना किसी बाधा के कृष्णप्रेम प्राप्त करता है।किंतु श्रीचैतन्य महाप्रभु के अवतार में एक बहुत ही विलक्षण बात है कि अपराध रहने पर भी जीव प्रेमधन को प्राप्त कर लेता है। जो जीव हा निताई ! हा गौर ! कहकर पुकारता है उसे सुविमल कृष्णप्रेम ढूंढता फिरता है।
अपराध उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते । निर्मल कृष्णप्रेम में उसके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती है। थोड़े ही समय मे अपराध अपने आप दूर भाग जाते हैं। हृदय शुद्ध हो जाता है और उसमें प्रेम की वृद्धि होती है। कलियुग के जीवों के अपराध असंख्य और भीषण हैं तथा गौरनाम के बिना उनका उद्धार नहीं हो सकता। ईसलिये शास्त्र बार बार उच्चस्वर से कह रहे हैं कि गौरनाम के अतिरिक्त कलियुग के जीवों के उद्धार का कोई और साधन नहीं है! नहीं है ! नहीं है !
श्रीगौरचन्द्र नवद्वीप में उदित हुए हैं इसलिए नवद्वीप धाम सभी तीर्थों का मुकुट शिरोमणि है। अन्य तीर्थो में अपराध होने पर व्यक्ति को दण्ड भोगना पड़ता है, किंतु श्रीनवद्वीप में सदैव अपराध दूर होते हैं। इसके साक्षी जगाई और मधाई नाम के दो भाई हैं।अपराध करने पर भी जिन्होंने श्रीचैतन्य देव और श्रीनिताई कि कृपा को प्राप्त किया।अनयतीर्थो की बात तो क्या ब्रजधाम में भी अपराधी दैत्यों को दण्ड मिलता है।परंतु श्रीनवद्वीप धाम में श्रीमन नित्यानंन्द प्रभु की कृपा से अनायास ही उद्धार हो जाता है।ऐसा नवद्वीप जिस गौड़मण्डल के अंतर्गत आता है , सभी देव ऋषि मुनि उस गौड़मण्डल को धन्य मानते हैं। ऐसे धाम में जो वास करता है वह अतिसौभाग्यशाली है और कृष्ण रति को प्राप्त करता है।इस धाम में जाने से सभी अपराधों से मुक्ति होती है।सभी तीर्थ करके जो फल प्राप्त होता है वह नवद्वीप धाम के स्मरणमात्र से ही प्राप्त हो जाता है। मात्र स्मरण करने से ही । जो व्यक्ति इस धाम का दर्शन कर उसे कृष्णप्रेम की प्राप्ति होती है।कर्म और बुद्धियोग से भी कोई व्यक्ति या किसी कार्य हेतु भी कोई व्यक्ति नवद्वीप धाम जाता है पुनः जन्म मृत्यु के इस कुचक्र में नहीं गिरता।
श्रीनवद्वीप धाम में एक एक पग चलने पर कोटि कोटि अश्वमेघ यज्ञ का फल प्रापत होता है यह शास्त्र वर्णन करते हैं। श्रीनवद्वीप में बैठकर जो व्यक्ति मंत्रजप करता है उसका मन्त्र साक्षात मूर्तिधारण कर प्रकाशित होता है। वह अनायास ही भवसागर को पार कर लेता है।अन्य तीर्थो में जो फल योगी दस वर्षों में प्राप्त करते हैं , नवद्वीप में तीन रात्रि वास करने पर ही प्राप्त हो जाता है।अनयतीर्थों में ब्रह्मज्ञान के कठोर साधन से जो मुक्ति प्राप्त होती है वह नवद्वीप में गंगास्नान से प्राप्त हो जाती है।सालोक्य, सारूप्य , सार्ष्टि, सामीप्य और जीव ब्रह्मरूप जितनी भी मुक्तियाँ हैं नवद्वीप में किसी भी मुमुक्षु को बिना किसी ज्ञान के प्राप्त हो जाती है। यहां भुक्ति और मुक्ति शुद्ध भक्तों की चरणदासी बनकर रहती है। भक्त अपने पैरों की ठोकर मार दूर करता है परंतु वह उसे छोड़ नहीं जाती।एक सौ वर्ष तक अयोध्या , मथुरा , हरिद्वार , काशी , उज्जैन और द्वारका आदि तीर्थवास करने पर जो फल मिलता है वह नवद्वीप में एक रात्रि वास करने से मिलता है।ऐसा नवद्वीप धाम सभी धामो का सारस्वरूप है। कलियुग में जीव इसका आश्रय लेकर पार हो जाता है।तारक और पारक नाम की दोनो विद्याएं निरन्तर नवद्वीपवासियों की सेवा करती हैं।श्रीनित्यानन्द प्रभु तथा श्रीजान्हवा देवी के चरण कमलों की सुशीतल छाया में अत्यधिक उल्लासपूर्वक श्रील ठाकुर महाशय इस धाम का गुणगान करते हैं।
प्रथम अध्याय समाप्त
जय निताई जय गौर
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