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मोरकुटी युगलरस लीला-17

जय जय श्यामाश्याम  !!
श्रीयुगल में नृत्य क्रीड़ा करते जो रसजड़ता आती है उसे हटाने हेतु सखियों का तत्पर होना स्वाभाविक है और उसी क्षण श्रीवृंदा देवी जु का वहाँ आगमन जैसे एक सुगम एहसास जिससे सखियों के चेहरे की रौनक लौट आती है और वे मंद गति से संगीत वाद्य बजाती श्यामा श्यामसुंदर जु को निहारती हैं।

       वृंदा देवी शेष बचे पुष्पों को पवन में उड़ा देतीं हैं और हंसती हुईं मोरपंख उठा श्यामा श्यामसुंदर जु के चरणों को सहला देती हैं।बस इतना ही करना था कि श्यामा श्यामसुंदर जु की रसजड़ता भंग हो जाती है।तब उनके कानों में पड़ता है पक्षियों का मधुर कलरव व वाद्यों का मिठास भरा मंद संगीत।

      वृंदा देवी हाथ जोड़ थोड़ा पीछे हटते हटते श्यामा श्यामसुंदर जु को आँख से इशारा कर उन्हें दक्षिण की ओर बह रही यमुना रसधारा की तरफ संकेत करतीं हैं।श्यामा जु मंद मंद मुस्काती हुईं वृंदा सखी जु के संकेत पर स्वीकृति देतीं दक्षिण दिशा में यमुना जु के मधुर बहाव को देखतीं हैं।यमुना जु मधुर वेग से मंद मंद बह रहीं हैं और कभी बादल की छाया से श्यामल हो जाती है तो कभी बीच बीच में सूर्य के झांकने से चमक उठती है।हल्की हल्की लहर उठती है और फिर बैठ जाती है।सहस्त्र नीले व पीले कमल दल यमुना जु की मधुर धारा के साथ बह रहे हैं।

      श्यामा श्यामसुंदर जु जैसे ही यमुना जु पर प्रेम भरा दृष्टिपात करते हैं तभी यमुना जल और भी मधुर रसधारा से प्रवाहित होने लगता है और किनारों पर पड़ी रंग बिरंगी पुष्प कलियों व पंखड़ियों को संग बहाते हुए अपना श्रृंगार करने लगती हैं यमुना जु।जैसे प्रियतम श्यामा जु की छवि उतर आई हो जल में और श्यामसुंदर जु की दृष्टि कभी बादल बन पड़ने पर पुष्पाविंत आँचल ओढ़ लेती तो कभी सूर्य की तीक्ष्ण दृष्टि पर आँचल गिरा कर चमक उठती है।अद्भुत रस उतर आया है यमुना जु में प्रियाप्रियतम जु के निहारने से जैसे नवश्रृंगारित दुल्हन प्रियवर की नज़र पड़ते ही सकुचाती शर्माती मंद मधुर प्रतिक्रिया कर रही हो।

       श्री युगल रसमदमाते नयनों से महकती प्रकृति पक्षियों के झुरमुट व यमुना जु को निहार ही रहे होते हैं कि तभी उनकी दृष्टि में एक मनमोहक श्यामवर्ण हंस यमुना जु के मंद बहाव संग तैरता हुआ आता है।श्यामा जु की नज़र पड़ती है उस श्यामल हंस पर और आश्चर्य श्यामसुंदर जु उसी हंस की जलछाया में देखते हैं एक सुंदर गौरवर्ण हंसिनी को।चकित हुए श्यामसुंदर जु अपने नेत्र मलते से श्यामा जु को भी हंस की प्रतिछाया दिखाते हैं और श्यामा जु भी जैसे ही यह अद्भुत विचित्र जलछाया देखतीं हैं तो श्यामसुंदर जु की तरफ पीठ किए हुए उनके कंधे पर झुक जातीं हैं।

       सखियाँ जो अब तक तो श्यामा श्यामसुंदर जु को निहार रहीं थीं प्रियतम की अंगुली के इशारे पर वे भी हंस हंसिनी को देख दंग रह जातीं हैं।उनकी दृष्टि में तो मोरकुटी की धरा पर एक तरफ तो युगल मयूर मयूरी बने रसक्रीड़ा कर रहे हैं और वहीं दूसरी ओर यमुना में हंस हंसिनी रूप जलक्रीड़ा कर रहे हैं।सखियों के हाथों उनके सब वाद्य यंत्र छूट जाते हैं और पलकों ने झपकना बंद करतीं दिया है।उनकी भावभंगिमाएँ शिथिल पड़ रही हैं और अंगक्रियाएँ श्वास सब ठहर से गए हैं।

       बलिहार  !!अद्भुत रसधार बह रही है निकुंज में चहुं ओर।रसिक हृदय की सुंदर अनछुई अनोखी उड़ानें जो जहाँ जहाँ निहारती हैं वहाँ वहाँ केवल युगल ही युगल और उनके रसमदचूर नयन।हंस हंसिनी की नयनाभिराम रसीली जलक्रीड़ा जो युगल कृपा दृष्टि का ही प्रताप अन्यथा ऐसा दृश्य।लीलाधर श्यामा श्यामसुंदर जु की अद्भुत रसलीलाएँ।
क्रमशः

जय जय युगल  !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन  !!

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