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*🌹श्रीराधारानी की सुँदर हार-लीला🌹*
🌷एक समय सखियों के साथ राधा जी सुबह से ही श्याम के ख्यालों में खोई कुछ गुमसुम सी थी। सखियों ने कई बार स्नान व श्रृंगार के लिए आग्रह किया लेकिन राधा जी तो श्यामसुंदर को देखना चाहती थी।
🌷यह बात उधर हमारे कान्हा तो जान गए ।वो राधा जी से मिलने पहुँचे तो राधा जी मन ही मन प्रसन्न हो गई और स्नान कर लौटी तो कान्हा ने कहा आज मै ही आपका श्रृंगार करता हूँ।
🌷 राधा जी तो एकदम खिल उठी ।हमारे श्यामसुंदर जी राधा रानी का श्रृंगार कर ही रहे थे कि राधा रानी को एक लीला सूझी। उस समय कान्हा राधा रानी को गले में हार पहना रहे थे।
🌷अब तो कोई भी हार पहनाए वो ही गले में ठीक न बैठे ।किसी की डोरी टूटी किसी के मोती निकल गए।सखिया तो समझ गई कि राधारानी लीला कर रही है वो नहीं चाहती श्रृंगार पूरा हो और कृष्ण उसे तनिक भी विलग हो।
🌷सखियो ने राधा जी की ओर देखा तो राधारानी ने अपनी चितवन से ही समझा दिया कि उन्हें तो बडा आनंद प्राप्त हो रहा है।उधर सखियो कृष्ण की ओर निहारा तो कान्हा ने भी अपनी तिरछी चितवन से ही सखियो को बता दिया कि वो राधा जी की लीला को जानते हैं लेकिन वो भी लीला में आनंद ले रहे है।
🌷जब काफी समय गुजर गया तो हमारे श्यामसुंदर जी ने राधा जी के गले में अपनी बांहो का हार पहना दिया।उस हार के पहनते ही राधा रानी अति प्रफुल्लित हो उठी और उन्होंने भी अपनी गौरी कलाइयों का हार कान्हा के गले मे पहनाया।सखिया अबसमझ पाई कि राधा जी आज कौनसा हार पहनना चाहती थी।सभी अलौकिक आनंद मे खो गये।
*🌹जय हो राधारानी की🌹*
*🌹जय हो नंद के लाल की🌹
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