नव कलेवर लीला 1

*नव कलेवर लीला 1*


 नव कलेवर  लीला यानी भगवान जगन्नाथ जी के  विग्रह को पुरी धाम में बदला जाता है ,नया विग्रह बनाया जाता है ,इस सब की जो प्रक्रिया है इस को नव कलेवर लीला कहा जाता है ,लगभाग18 से 19 साल बाद नव कलेवर लीला होती है , नई लकडी(दारु)  ला कर भगवान जगन्नाथ जी का विग्रह तैयार किया जाता है ,वहाँ के पुजारी जनों को आज भी  स्वपन आता है ,स्वपन में बताया जाता है,वो पेड जिस की लकडी से विग्रह बनेगा,वो कहाँ पर चारो पेड मिलेगें ,जिस वृक्ष से  जगन्नाथ जी का विग्रह बनेगा उसके लक्षण बताये जाते है स्वपन में,फिर सब जंगलो में जाते हैं,जिस पेड से जगन्नाथ जी का विग्रह बनेगा उस के चिन्ह क्या हैं,वो साँवले रंग का पेड होगा ,उस के पास शिव मन्दिर होगा,उस पेड के रक्षा के  लिये नाग बेठे होगें,साथ श्मशान होगा,उस पेड पर कभी कोई पक्षी नही बैठा होगा,उस पेड पर शंख,गदा,चक्र के  चिन्ह बने होंगे ,इस पेड की चार शाखा  होंगी,

    जिस पेड से   *बलराम*   जी का विग्रह बनेगा ,उस पेड के चिन्ह, गदा,हल का चिन्ह बना होगा ,इस की तीन शाखा होंगी ,जिस पेड की लकडी से 
  *सुभद्रा जी* जी का विग्रह बनेगा ,उस पेड पर पांच पंखुडी वाला कमल का चिन्ह बना होगा, और सुदर्शन जी के पेड पर केवल चक्र का चिन्ह होगा ,

    जब पुजारी जनों को स्वपन में बताये पेड मिलते है,उस की पूजा की जाती है ,धागा बाँधा जाता है ,परिक्रमा लगाई जाती है ,पूजा के बाद इनको काटने की तैयारी चलती है,फिर छोटी छोटी तीन कुल्हाडी एक सोने की ,एक चांदी की ,फिर लोहे की कुल्हाडी से चोट दी जाती है,फिर बड़ी आरी से पेड काटा जाता है,फिर उन पेड़ो को ले कर जाते है , फिर विश्वकरमा समाज आता है , लकडी की आरी ,लकडी की चानी, किल का कोई प्रयोग नही होता , जब आरी से कटाई शुरु होती है,उस की आवज सुनना शुभ नही मानते इस लिये 15 दिन निरंतर कीर्तन चलता है ,अवाज ना आए इसलिये ,फिर विग्रह तैयार हो जाते है ,एक बहुत आश्रय वाला कार्य होता है आज भी ,पुराने विग्रह में  से एक भ्रम नामक  चीज़ निकाली जाती है ,और नए बने विग्रह के  अन्दर रखा जाता है ,जो रखता है उस के  हाथो और आंखो पर पट्टी बाँध दी जाती है,ऐसा लगता है जेसे मानो खरगोश पकडा हो ,माना जाता है ये भगवान का हिर्दय होता है ,अमावस की रात को ये कार्य होता है ,इस रात पूरे  पूरी  पूरे शहर की लाईट बन्द कर दी जाती है ,यानी ब्लैक आउट कर दिया जाता है ,और जब भ्रम रखा जाता है तो उस के साथ चन्दन, फूल,तुलसी भी राखी जाती है ,और पुरानी वाली तुलसी ,फूल चन्दन निकला जाता है जो  19  वर्ष पहले रखा था  वो फूल बिल्कुल ताज़ा, तुलसी बिल्कुल ताज़ी  निकलती है  19 साल बाद भी ,और जो पुराने विग्रह है उस को मन्दिर के  पीछे एक गड़े  मे  दबा दिया जाता है,जहा दबाया जाता है ,उस को कोयली वृन्दावन कहा जाता है ,फिर पुजारी विग्रह दबा कर रोते है ,सिर मुण्डवा   लेटे है, ,ये है नव कलेवर लीला , ( दास मानव )

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