Posts

Showing posts from May, 2020

राधारानी चरण चिन्ह

राधारानी के उन्नीस चरण मंगल चिन्ह श्रीराधा जी बांये पैर के 11 चिह्न सज्जित हैं :- जौ, चक्र, छत्र, कंकण, ऊर्ध्वरेखा, कमल, ध्वज, अर्धचंद्र, अंकुश, पुष्प, पुष्पलता, अंगूठे में जौ, उसके नीचे चक्र, फिर छत्र,कंकण, बगल में ऊर्ध्वरेखा, मध्य मे कमल, नीचे ध्वजा,अंकुश, ऊंगलियों मे अर्धचन्द्र, पुष्प और लता के चिह्न हैं। 1. जौ - जौ सांसारिक मोहमाया को छोड़कर इन चरणकमलों की शरण लेने से सारे पाप-ताप मिट जाते हैं। जौ का चिह्न सर्वविद्या और सिद्धियों का दाता है, इसके ध्यान से भक्त जन्म मरण के छुटकर जौ के दानो के समान बहुत छोटी हो जाती है | 2. चक्र - राधा कृष्ण के चरण कमल का ध्यान काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, आदि से भक्तों के मन की कामरूपी निशाचर को मारकर अज्ञान का नाश कर देता है। 3. छत्र – शरण ग्रहण करने वाले भक्त भौतिक कष्टों कि अविराम वर्षा से बचे रहते है. 4. कंकण - निकुंजलीला में कंकणों के मुखरित श्रीराधा ने कंकण उतारकर उसके चिह्न अपने चरणकमल में धारण किया है। 5. उर्ध्व रेखा – जो भी राधाश्याम के पद कमल से लिपटे रहते है, यह संसार रूपी सागर पार कर श्रीराधा ऊर्ध्वरेखा नामक पुल से संसार के सागर से पार हो ज

बालकृष्ण

बालकृष्ण का ध्यान ~~~~~~~~~~~~~~~ करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्। वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।। जिन्होंने अपने करकमल से चरणकमल को पकड़ कर उसके अंगूठे को अपने मुखकमल में डाल रखा है और जो वटवृक्ष के एक पर्णपुट (पत्ते के दोने) पर शयन कर रहे हैं, ऐसे बाल मुकुन्द का मैं मन से स्मरण करता हूँ। श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्रम् श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव। जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।। हे जिह्वे ! तू ‘श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारि ! हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माधव !’–इस नामामृत का ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह। विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:। दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति।। जिनकी चित्तवृत्ति मुरारि के चरणकमलों में लगी हुई है, वे सभी गोपकन्याएं दूध-दही बेचने की इच्छा से घर से चलीं। उनका मन तो मुरारि के पास था; अत: प्रेमवश सुध-बुध भूल जाने के कारण ‘दही लो दही’ इसके स्थान पर जोर-जोर से ‘गोविन्द ! दामोदर ! माधव !’ आदि पुकारने लगीं। गृहे गृहे गोपवधूकद