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Showing posts from October, 2017

भाग 8 अध्याय 4

*श्रीहरिनाम चिंतामणि*                 8         *अध्याय 4* *साधु अपराध --साधु निंदा* संता निंदा नामनः परममपराध वितनुते यतः ख्याति यात कठमुसहतै तद्विग्रहाम श्रीगदाधर जी के स्वरूप श्रीगौरांग महाप्रभु जी की जय हो तथा श्री जान्ह्वी देवी जी के जीवन स्वरूप श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय हो। सीतापति अद्वैताचार्य जी और श्रीवास आदि सभी भक्तों की जय हो। महाप्रभु जी कहने लगे -हरिदास जी! अब तुम नामापराध की विस्तृत व्याख्या करो। श्रीहरिदास ठाकुर जी कहने लगे -हे महाप्रभु जी आपकी कृपा से मैं वही बोलूंगा जो आप मुझसे बुलवाओगे। *दस तरह के नामापराध* श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हमारे शास्त्रों में दस प्रकार के नाम अपराधों का वर्णन है। सचमुच मुझे तो इन नाम अपराधों से बहुत डर लगता है। हे प्रभु एक एक करके मैं इन सबके बारे में कहूंगा। बस आप मुझे ऐसा बल प्रदान करते रहें जिससे मैं इन अपराधों से बचा रहूँ-- 1भगवान के भक्तों की निंदा 2अन्य देवताओं को भगवान से स्वतंत्र समझना 3हरिनाम के तत्व को समझने वाले सद्गुरु की निंदा करना 4 शास्त्रों की निंदा करना 5 नाम मे अर्थवाद करना अथवा हरिनाम की महिमा को काल

भाग 7 अध्याय 3

ल*श्रीहरिनाम चिंतामणि*              7       *अध्याय 3* *अनर्थ समाप्त होने पर नामाभास प्रेम प्रदान करता है* श्रीकृष्ण प्रेम को छोड़कर बाकी सब कुछ नामाभास से ही प्राप्त किया जा सकता है और यह नामाभास भी धीरे धीरे शुद्ध प्रेम में परिवर्तित हो जाता है। अनर्थों के समाप्त होने पर जब साधक के मुख से शुद्ध हरिनाम होने लगता है तब उसे निश्चित रूप से श्रीकृष्ण प्रेम प्राप्त हो जाता है। नामाभास साक्षात रूप से प्रेम प्रदान नहीं कर सकता परन्तु इस प्रकार का हरिनाम ही क्रमानुसार प्रेम मार्ग तक पहुंचा देता है। *नामाभास तथा नाम अपराध में भेद* श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हे सर्वेश्वर प्रभु! जो व्यक्ति नामापराध को छोड़कर भी नामाभास करते हैं , उन्हें भी मैं प्रणाम करता हूँ क्योंकि यह नामाभास कर्म मार्ग तथा ज्ञान मार्ग से अनन्त गुणा श्रेष्ठ है। श्रीहरीदास जी कहते हैं कि भगवत प्रेम उतपन्न करवाने वाली श्रद्धा यदि किसी के हृदय में शुद्ध भाव से विद्यमान हो तभी उसके मुख से विशुद्ध हरिनाम उच्चारित होगा। *छाया तथा प्रतिबिम्ब भेद से आभास दो प्रकार का होता है* ये आभास दो प्रकार के होते हैं-छाया नामाभास तथा प

भक्त कर्मानन्द जी

श्रीभक्त करमानंद जी............ ये अपने गायन से प्रभु की सेवा किया करते थे. इनका गायन इतना भावपूर्ण होता था कि पत्थर-हृदय भी पिघल जाता था. ज्यादा दिनों तक इनको गृहस्थी रास नहीं आयी और ये सब कुछ छोड़कर निकल पड़े. इनके पास केवल दो चीज़ें ही थीं- एक छड़ी और दूसरा ठाकुरबटुआ जिसे ये गले में टाँगे कर चलते थे. ये जहाँ विश्राम करने के लिये रुकते थे वहाँ छड़ी को गाड़ देते थे और उस पर ठाकुर बटुआ लटका देते थे. इससे ठाकुर जी को झूला झूलने का आनन्द मिलता था. एक दिन ये सुबह-सुबह ठाकुर जी की पूजा करके श्री ठाकुर जी को गले में लटका कर चल दिए. उस समय ये भगवन्नाम में इतने डूबे हुए थे कि छड़ी को लेना भूल गए. अब जब दूसरी जगह ये विश्राम करने के लिये रुके तो इन्हें छड़ी की याद आयी. अब समस्या थी कि ठाकुर जी को कैसे और कहाँ पधरावें. श्री ठाकुर जी में प्रेम की अधिकता के कारण इन्हें उनपर प्रणय-रोष हो आया. ये गुस्सा करते हुए बोले कि ठाकुर हम तो जीव हैं, हम कितना याद रखें. हम छड़ी भूल गए थे तो आपको याद दिलाना चाहिए था. अब दूसरी छड़ी कहाँ से लाएं. पिछली जगह भी बहुत दूर है और ये भी पक्का नहीं है कि वहाँ छड़ी मिल ह

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भाग 6 अध्याय 3

*श्रीहरिनाम चिंतामणि*                  6        *तीसरा अध्याय*       *नामाभास विचार* श्रीगदाधर पंडित, श्रीगौरांग महाप्रभु व जान्ह्वी देवी के जीवन स्वरूप श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय हो । सीतापति श्री अद्वैताचार्य जी और श्रीवास आदि भक्तों की सर्वदा ही जय हो। हरिदास जी से हरिनाम की महिमा सुनकर महाप्रभु जी बड़े प्रसन्न हो गए और गदगद होकर उन्होंने श्रीहरिदास ठाकुर जी को अपनी बांहों में उठा लिया और कहने लगे कि हरिदास तुम मेरी बात सुनो। अब आप मुझे नामाभास क्या है यह स्पष्ट रूप से बताओ क्योंकि नामाभास की पूरी जानकारी होने से ही जीवों का शुद्ध नाम होगा और तब अनायास ही जीव हरिनाम के गुणों के प्रभाव से भव से पार हो जाएंगे।            *नामाभास* नामाचार्य श्रीहरिदास ठाकुर जी कहते हैं कि हरिनाम रूपी सूर्य उदित होकर मायारूपी अंधकार का नाश करता है परंतु हरिनाम रूपी सूर्य को अज्ञान रूपी ओस व अनर्थ रूपी बादल बार बार ढक लेते हैं। जीव के यह अज्ञान और अनर्थ रूपी कोहरा और बादल बड़े घने होते हैं। श्रीकृष्ण नाम रूपी सूर्य जीव के चित्त रूपी आकाश में जैसे ही उदित होता है , उसी समय अज्ञान रूपी कोहरा तथा अनर्थ