Posts

Showing posts from April, 2023

mc 46

मीरा चरित  भाग- 46 भाणेज बावजी (जयमलजी) ने केवल कटार से आखेट में झुंड से अलग हुए एकल सुअर को पछाड़ दिया। हमारे महाराज कुमार जब आखेट पधारते हैं तो सिंह के सामने पधार ललकारकर मारते हैं। हाथी और सुअरों से युद्ध करते....।' भोजराज ने बायाँ हाथ ऊँचा करके पीछे खड़ी जीजी को बोलने से रोक दिया। मंडप से उठकर जनवासे में कुलदेव, पिताजी, पुरोहितजी को प्रणाम कर लौटे। दोनों को एक कक्ष में पधरा दिया गया। द्वार के पास निश्चिन्त मन से खड़ी मीरा को देखकर भोजराज धीमे पदों से उसके सम्मुख आ खड़े हुए। 'मुझे अपना वचन याद है। आप चिन्ता न करें। जगत् और जीवन में मुझे आप सदा अपनी ढाल पायेंगी।' उन्होंने गम्भीर मीठे स्वर में कहा। थोड़ा हँसकर वे पुनः बोले—'यह मुँह दिखायी का नेग, इसे कहाँ रखूँ?' उन्होंने खीसे में से हार निकालकर हाथ में लेते हुए कहा। मीरा ने हाथ से झरोखे की ओर संकेत किया। 'यहाँ पौढ़ने की इच्छा हो तो.... अन्यथा नीचे पधारें। ज्यों मन मानें।'- भोजराज ने कहा। 'एकलिंग के सेवक पर अविश्वास का कोई कारण नहीं दिखायी देता, फिर मेरे रक्षक कहीं चले तो नहीं गये हैं।'-मीरा ने आँचल

mc 45

मीरा चरित  भाग- 45 इन चूड़ियों में से, जो कोहनी से ऊपर पहनी जाती हैं उन्हें खाँच कहते हैं) गलेमें तमण्यों (यह भी ससुराल से आनेवाला गले का आभूषण है, जिसे सधवा स्त्रियाँ मांगलिक अवसरों पर पहनती हैं) छींक और बीजासण, नाक में नथ, सिर पर रखड़ी (शिरोभूषण) हाथों में रची मेंहदी, दाहिनी हथेली में हस्तमिलाप का चिह्न और साड़ी की पटली में खाँसा हुआ पीताम्बर का गठजोड़ा, चोटी में गूँथे फूल और केशों में पिरोये गये मोती, कक्ष में और पलंग पर फूल बिखरे हुए हैं। "यह क्या मीरा! बारात तो अब आयेगी न?"– राणावतजी ने हड़बड़ाकर पूछा।  “आप सबको मुझे ब्याहने की बहुत हौंस थी न, आज पिछली रात को मेरा विवाह हो गया।" – मीरा ने सिर नीचा किये पाँव के अँगूठे से धरा पर रेख खींचते हुए कहा- 'प्रभु ने कृपाकर मुझे अपना लिया भाभा हुकम! मेरा हाथ थामकर उन्होंने भवसागर से पार कर दिया।' उसकी आँखों में हर्ष के आँसू निकल पड़े। 'पड़ले (बारात और वर के साथ वधू के लिये आने वाली सामग्री को पड़ला या बरी कहा जाता है) में आये हैं भाबू! पोशाकें, मेवा और शृंगार सामग्री भी है वे इधर रखे हैं। आप देख सँभाल लें।'– मीर