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Showing posts from May, 2017

रामकृष्ण जी की प्रेम पूजा

🙏🙏🙏🌷प्रार्थना हृदय की सुवाष है 💐💐🙏 रामकृष्ण के जीवन में ऐसा उल्लेख है। एक शूद्र महिला ने, रानी रासमणि ने मंदिर बनवाया। चूंकि वह शूद्र थी, उसके मंदिर में कोई ब्राह्मण पूजा करने को राजी न हुआ। हालांकि रासमणि खुद भी कभी मंदिर में अंदर नहीं गई थी, क्योंकि कहीं मंदिर अपवित्र न हो जाए! यह तो ब्राह्मण होने का लक्षण हुआ। जो अपने को शूद्र समझे, वह ब्राह्मण। जो अपने को ब्राह्मण समझे, वह शूद्र। रासमणि कभी मंदिर के पास भी नहीं गई, भीतर भी नहीं गई, बाहर-बाहर से घूम आती थी। दक्षिणेश्वर का विशाल मंदिर उसने बनाया था, लेकिन कोई पुजारी न मिलता था। और रासमणि शूद्र थी, इसलिए वह खुद पूजा न कर सकती थी। मंदिर क्या बिना पूजा के रह जाएगा? वह बड़ी दुखी थी, बड़ी पीड़ित थी। रोती थी, चिल्लाती थी--कि कोई पुजारी भेज दो! फिर किसी ने खबर दी कि गदाधर नाम का एक ब्राह्मण लड़का है, उसका दिमाग थोड़ा गड़बड़ है, शायद वह राजी हो जाए। क्योंकि यह दुनिया इतनी समझदार है कि इसमें शायद गड़बड़ दिमाग के लोग ही कभी थोड़े से समझदार हों तो हों। यह गदाधर ही बाद में रामकृष्ण बना। गदाधर को पूछा। उसने कहा कि ठीक है, आ जाएंगे। उसने एक बार भ

राय रामानन्द सम्वाद

*श्री राधे....🌸💐👏🏼* *जै श्री राधे....🌸💐👏🏼* प्रश्न-१. सब विद्या में श्रेष्ठ विद्या कौन सी है? 🌸 *श्री कृष्ण* भक्ति ही सबसे बड़ी विद्या है। प्रश्न-२. सबसे बड़ी कीर्ति क्या है? 🌸 *श्री कृष्ण* प्रेम में डूबा एक भक्त, इस कल्मष भरे युग में एक कृष्ण भक्त होना ही सबसे बड़ी कीर्ति है। प्रश्न-३. सबसे बड़ी सम्पत्ति क्या है? 🌸 *श्री राधाकृष्ण* प्रेम को पाना ही इस संसार की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। प्रश्न-४. सबसे बड़ा दुःख क्या है? 🌸 *श्री कृष्ण* भक्त का संग छूटना ही इस संसार का सबसे बड़ा दुःख है। प्रश्न-५. सबसे बड़ी मुक्ति क्या है? 🌸 *श्री कृष्णप्रेम* में डूबकर इस संसार से वैराग्य प्राप्त करना ही सबसे बड़ी मुक्ति है। प्रश्न-६. भजन/कविता में सर्वश्रेष्ठ क्या है? 🌸 *श्री राधाकृष्ण* के प्रेम लीला को गाना ही भजन और कविता है। प्रश्न-७. सबसे बड़ा श्रेय क्या है? 🌸 *श्री कृष्ण* भक्तो को मिलाना ही सबसे बड़ा श्रेय है। प्रश्न-८. स्मरण करने योग्य बातें? 🌸 *श्री कृष्ण* का नाम उनका रूप, गुण एवम् लीला का स्मरण ही सबसे उत्तम स्मरण के योग्य है। प्रश्न-9. ध्यान में रखने योग्य बातें? 🌸 *श्री रा

राधा चालीसा

🕉श्रीराधा चालीसा🕉 दोहा-श्रीराधे वृषभानुजा,भक्तनि प्राणाधार।वृन्दावन विपिन विहारिणी, प्रणवों बारंबार। जैसौ तैसौ रावरौ,कृष्ण प्रिया सुखधाम। चरण शरण निज दीजिये,सुंदर सुखद ललाम।। चोपाई-जय वृषभानु कुँवरि श्रीश्यामा। कीरति नंदिनी शोभा धामा।। नित्य विहारिनी श्याम अधारा। अमित मोद मंगल दातारा।। रास विलासिनी रस विस्तारिनी । सहचरि सुभग यूथ मन भावनी। । नित्य किशोरी राधा गोरी। श्याम प्राण धन अति जिय भोरी।। करुणा सागर हिय उमंगिनी। ललितादिक सखियन की संगिनी।। दिनकर कन्या कूल बिहारिनी। कृष्ण प्राण प्रिय हुलसावनी। । नित्य श्याम तुम्हरौ गुण गावे। राधा राधा कहि हरषावे। मुरली में नित नाम उचारे। तुम कारण लीला वपु धारे। । प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारी। श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी।। नवल किशोरी अति छवि धामा। द्युति लघु लगै कोटि रति कामा। । गौरांगी शशि निंदक बदना। सुभग चपल अनियारे नयना। । जावक युत युग पंकज चरना। नुपूर धुनि प्रीतम मन हरना।। संतत सहचरि सेवा करहीं। महा मोद मंगल मन भरहीं।। रसिकन जीवन प्राण अधारा। राधा नाम सकल सुख सारा।। अगम अगोचर नित्य स्वरूपा। ध्यान धरत निशदिन ब्

रसिया रासेश्वरी

ब्रज की रज में धूर बनूं मैं ऐसी कृपा करो महाराज ॥ धूर बनूं हरि चरनन पागूं उड़ उड़ के अंगन में लागूं बार बार ये ही मैं माँगूं मोपै विहरैं श्याम राधिका सब दुख जावैं भाज ॥ कोमल चरन राधिका प्यारी उर धरि सेवैं छैल बिहारी ऐसौ रस चरनन में भारी वाकूँ पाऊँ बनूं धन्य वृन्दावन रस सरताज ॥ रज में खेलैं रंग मचावैं रज में हिल मिल रास रचावैं रज में फूलन सेज बिछावैं रज में करैं विलास जुगल मिलि जानैं रसिक समाज ॥ ब्रज की धूर श्याम को प्यारी खाई बालकृष्ण मुख डारी धमकावैं जसुदा महतारी माखन दूध दही तज रोवै रज खावन के काज ॥ (रसिया रासेश्वरी)

ब्रज रसिकन भाव

ब्रज रसिकन भाव "पदरज" तृषित प्यास बुझाइए -- *‘गोपिनु कौ प्रेम परबत समान है, औरनि कौ प्रेम कूप वापी, तड़ाग, सरिता तुल्य है। अरू इनके रूप कौ उनमान जनाऊं। सर्वोपरि स्त्रीन में महालक्ष्‍मी कौ रूप हैं। ताके नख छटा की पार्वती, ताके नख छटा की ब्रह्माणी, ताके नख छटा की इंद्राणी, ताके नख छटा कौं सिंघल द्वीप, ताकौ यह जंबू द्वीप। सो लक्ष्‍मी व्रजदेवीन की नख दुति कों न पूजि सकैं। ते व्रजदेवी श्री जुगल किशोर के स्वरूप कौं निजु विहार है ताके दरसबे की अधिकारी नहीं, जाते उनको सपत्नी भाव अचल भयो है। ललितादिक बिनु नित्य विहार के देखिबे कौ कोई अधिकारी नहीं। इनको प्रेम सिन्धु समान है, जामें अनंत गिरि समाहिं ।* ***  *** *** *** ***  ***  ***  * *‘सो यह सपत्नी भाव क्यों प्रगट भयो? जब वेद ने प्रभु की स्तु‍ति करी तब किशोर रूप प्रभु कौ दरसन भयौ। तब कमनीय मूर्ति देखि कामिनी भाव उपजि आयो। जो श्री ठकुरानी जी संयुक्त दरसन होतौ तौ दासी भाव उपजतौ। तातें श्री ठाकुरानी जी कौ केलि कौ दरसन नाहीं पाबतु।’* ***  *** *** *** ***  ***  ***  * *‘कोऊ कहै कि दरसन की अधिकारी नाहीं तौ कलपतरू तीर जु रासरस रच्यौ तहां

प्रेम का पर्यायवाची

संसार की कोई ऐसी भाषा नहीं होगी जिस में " प्रेम " का पर्यायवाची शब्द न हो। और संसार की कोई ऐसी भाषा नहीं जो श्रीप्रिया- प्रीतम के परस्पर " प्रेम" का रत्ती भर भी निरूपण करि सकै।      बहुत जोर लगाया तो रसिकों की झोली में "उज्जवल " शब्द डाल दिया । लिजिये बन गई बात- इसे विशेषण के रूप में हर जगह लगाते  रहिये; उज्जवल रस, उज्जवल विहार; उज्जवल केलि... इत्यादि , इत्यादि..। सब ठीक है।       परन्तु एक बात पल्ले बाँधियों- इस " उज्जवल" का अनुभव होता है- दुर्लभ ही नहीं; इस का तो आभास मात्र भी दुर्लभ है। जब तक सकामता की सूक्ष्म लहरें, भजन में मिश्रित रहें; जब तक मिंश्रित भावनाएँ भजन में संग-संग चलै; उज्जवलता के भाव में स्थित होना तो बहुत दूर की बात है- समझ के दायरे में भी प्रवेश नहीं - निश्चित जानियों । श्री प्रिया- प्रीतम की केलि में भजन भावना करना भी दुर्लभ है जाय - अपराध कमाने से बच गए, तो समझियों बड़ी कृपा भई !

बुद्धि हीन करो भगवान

👏🏻👏🏻👏🏻बना दो बुद्धि हीन भगवान् । तर्क शक्ति सारी ही हर लो, हर लो सारा विज्ञान । हरो सभ्यता , शिक्षा , संस्कृति, नए जगत की शान। विद्या- धन- मद हरो, हरो हे हरे ! सारा अभिमान । नीति- भीति से क्ष्पड़ छुड़ाकर करो सरलता दान । नही चाहिये भोग- योग कुछ, नही मान सम्मान। ग्राम्य , गंवार बना दो तृण सम दीन , निपट निर्मान । भर दो हृदय श्रद्धा भक्ति से करो प्रेम का दान । प्रेमसिंधु ! निज मध्य डुबाकर मेटो नाम निशान ।।💝🙏�🙏�🙏

प्रियतम की प्रतीक्षा। बाबा जु

👏🏼👏🏼👏🏼इस संसार में रचे-पचे किसी भी प्राणी को, कभी भी सुख-शांति मिल ही नही सकती। वह अशांति एवम् अभाव में सदैव जलता ही रहेगा । जब तक प्रिया-प्रियतम के युगल चरणों में चित्त नही रमेगा। अतः ऐसा मन बनाइये की प्रिया-प्रियतम से मिलन की नित्य नयी-नयी उमंगो के मनोरथो में ही आठो पहर उलझा रहे। कभी उनमे लगी अलक्ता और मेहँदी की चित्रकारी को एकटक निहारे, कभी चरण-चिन्हों के भावो की चित्रकारी को एकटक निरखे, कभी चरण-चिन्हों के भावों में डूब जाय। कभी संयोग जन्य आनंद में नृत्य करे। कभी वंशी ध्वनि के श्रवण में सब कुछ विस्मृत कर दे। कभी वनमाला गूंथने में निरत रहे, कभी उनको अति सुवासित बीड़ा समर्पित करे। कभी विरह-वेदना में अपने सब दुष्कृत्यों को जला दे। 👇👇 परंतु सावधानी रहे, यह सेवा, आनंद-नृत्य सभी हो अति एकांत में, मात्र श्री कृष्ण के सम्मुख ही। इस मायावी संसार को हमारे एवम् हमारे प्रियतम के मध्य किसी सम्बन्ध की गंध ही नही लगने पावे।  हमारे नेत्रो में निरन्तर प्रियतम के पथ-जोहने की आकुलता बनी रहे, नेत्रो से प्रेमाश्रु झरते रहें, परंतु संसार को यह सब अज्ञात ही रहे। भीतर-ही-भीतर हमारे चित्त में न