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Showing posts from 2019

दयाल निताई चैतन्य

*दयाल निताई चैतन्य* *दयाल निताई बोले नाचे रे आमार मन* *नाचे रे आमार मन, नाचे रे आमार मन* परमदयालु श्रीनिताईचाँद तथा श्रीकृष्ण चैतन्य के नाम गाते गाते मेरे मन तू विभोर होकर नाच ले। *विचार तो नाहिं है, गौर नामे अपराधे विचार तो नाहीं है* *कृष्ण नामे रुचि होवे घुचिबे बन्धन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* ऐसे दयालु प्रभु के नाम लेने के लिए कोई समय, स्थान, अपराध किसी भी प्रकार का कोई विचार या बन्धन नहीं है। कृष्ण नाम मे रुचि होते ही सब बन्धन खुल जाते हैं। मेरे मन तू निताई चैतन्य के नामों का गायन कर कर नाच ले। *एमोन दयाल तो नाहीं है, मार खाये प्रेम देय* *औरे अपराधे दुरे जाबे, पावे प्रेमधन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* ऐसे दयालु प्रभु त्रिभुवन में और कोई नहीं हैं, जो स्वयम मार खाकर भी दूसरों को प्रेम प्रदान करते हैं।जिनके नाम जा गायन करने से सब अपराध दूर हो जाते हैं औऱ प्रेम धन की प्राप्ति हो जाती है। हे मन तू नामो का गायन करते करते नाच ले। *अनुराग तो हबे है , कृष्ण नाम अनुराग हबे* *अनायासे सफल होवे जीवेर जीवन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* इनके नामों जे गायन स

राधाकृष्णअलिंगीत गौर

राधालिंगितकृष्ण गौर राधाप्रेम भाव विभोर मुखे बोले हरि हरि राधाभाव कांति धरि राधाप्रेम करै आस्वादन बांटत निज प्रेम धन परम् करुणा अवतार हरि हरि नाम सर्वसार कलियुगे प्रेम प्रकाश हिय करै अभिलाष कलियुगी जीव संतप्त करै निज प्रेम प्रदत्त भक्त वत्सल गौरहरि कलिजीवे करुणा करि जप तप नाँहिं आचार पतितन कौ करै उद्धार महामन्त्र करुणा रूप प्रकासै निज प्रेम स्वरूप वँशी बनी खोल करताल मधुर हरिनाम रसाल प्रेम मत्त नटवर नागर हिय कृष्ण प्रेम सागर लुटाय निज प्रेम धन हरि नामे रहै मग्न परम् प्रेम पूँजी नाम कलियुग की पूँजी नाम नाम विलासी भक्त रूप गुप्त राखै निज स्वरूप गौर रूप धरि नन्दनन्दन विष्णुप्रिया सेई प्राणधन नित्यानन्द अभिन्न रूप युगे युगे सेवा स्वरूप भजै बाँवरी गौर निताई गुरुकृपा सौं यह निधि पाई

तोमार दासी

*"तोमार दासीर दासी हैते वाञ्छा करि ।* *भजन साधन मुञि नहि अधिकारी।।* *तोमार महिमा सेवा अनन्त अपार ।* *एक कण स्पर्शिमात्र से कृपा तोमार ।।* *शची-आंगिनाय मुञि झाडुदारी चाइ ।* *सेइ त जानिह देवि! आमार बड़ाइ।।* *दया कर दयामयि ! दासी अंगीकारि ।* *धृष्टता मूर्खता त्रुटि सब क्षमा करि । ।* *मूर्त्तिमती क्षमा तुमि ओगो क्षेमस्करि।* *क्षमा कर सर्व दोष माथे पद धरि ।।* *विष्णुप्रियार प्राणनाथ जय गौरहरि।* *बलिते बलिते जेन मरे दासी हरि* *तोमार चरण-पद्म हृदे अभिलाषि।* *नदीया-गम्भीरा-लीला गाय हरिदासी।।"* (गौर-गीतिका)

विष्णुप्रिया प्राण

यथा राग "विष्णुप्रियार प्राण-गौर जुगल-किशोर। जीवने मरणे गति, प्रेमरसे भोर ।। नवद्वीप जोगपीठे बसिवे दुजने। आनन्दे करिव मुञि चामर व्यजने।। नदीया-जुगल-अंगे चन्दन माखाव। कर्पूर ताम्बुल दुहुँअधरेते दिव।। मालतिर माला गाँथि दुहुँ गले दिव। प्राण भरि श्रीजुगलेर वदन हेरिव।। कांचना अमिता आदि जत सखिवृन्द । (ताँदेर) आदेशे करिव सेवा चरणारविन्द ।। अधरेर सुधासिक्त चर्वित ताम्बुल । प्रसाद मागिया ल'व हइया व्याकुल ।। कवे मुञि हव एइ सेवा अभिलाषी। निशिदिन ताइ भावे दासी हरिदासी।।" (गौर-गीतिका)

आरती किये नदिया नागरी

यथा राग "आरति किये नदीया-नागरी। कांचनादि सखि देय आयोजन करि।। शंख बाजे घण्टा बाजे बाजये काँशरी। मधुर मृदंग बाजे बोले गौरहरि।। विशुद्ध गो-घृत ढालि, सप्त प्रदीप्त ज्वालि, श्रीमुख हेरत मन-प्राण भरि।। सुगन्ध चन्दन निये, धूप गुग्गुल दिये, आरति किये नदिया-नागरी।। शंख भरि सुशीतल, सुवासित गंगाजल, श्रीअंगधोयायत सुजतन करि। अंचलधरिया करे, कत ना सोहाग भरे, श्रीअंग मुछाओत अति धीरिधीरि। मल्लिका मालति जुथि, सुचिकन माला गाँथि सखिगण साजाओत किशोर किशोरी फूल आनि राशि राशि, सखिगण हासि हासि, चारि दिके छड़ाओत बोले गौरहरि। । सखिगण हासि हासि, प्रेमानन्दे भासि भासि, चामर दुलायत जाइ बलिहारि।।"

दया कर दयानिधि

यथा राग "दया कर दयानिधि नवद्वीपचन्द्र। ना जानि भजन आमि आरमन्त्रतन्त्र।। जानि सुधु प्राणबन्धु तुया मुखरचन्द । प्रेमे माखा ढल ढल आनन्द-कन्द ।। आर जानि तुमि सुधु करुणार-सिन्धु। पतित पावन प्रभु तुमि दीनबन्धु । । बुझि सुधु तुया नाम सार सर्व धर्म । तुया नाम गान सर्व भक्तिशास्त्र मर्म ।। आनन्द-नीरे भासि, हेरि पदद्वन्द्व। वदन हेरिले हय नाश भव बन्ध।। तुया नाम संकी्त्तन, तुया भक्तसंग। लीलाकथा आलापन, भजनेर अंग ।। नाहि बुझि कुल मान, तुया नाम सर्व । गौरदासी बले यदि, इह बड़ गर्व ।। देवी विष्णुप्रिया करेन निवेदन आत्म । दासी हरिदासी गाय नामेरइ माहात्म्य।।" (गौर-गीतिका)

राधेश्याम एक आसने

राधाश्याम एकासने सेजेछे भालो। राइ आमादेर हेमवरणी, श्याम चिकणकालो।। गले वनफूलेर माला, वामे चूड़ाटि हेला। जुगलरूपे निकुंजवन करेछे आलो।। (दोहाँर) बाहुते बाहु, जेन चाँदेते राहु। चूड़ा वेणी घेराधेरि करि दाँडालो।। करे मोहन मुरली, राइ अंगे पड़िछे ढलि। भानु दुलाली मोदेर नन्द दुलाल।। (जत) सखी मंजरी, तारा जाय सारि सारि। माझे किशोर-किशोरी, कि शोभाह'लो।। (जत) बरज बाला, रूपे दशदिक हइल आलो। जुगल चाँदे घेरि चाँदेर माला चलिलो।। (नाचे) मयूर-मयूरी, गाय शुक आर सारी। जुगलरूप हेरि सबार नयन जुड़ालो।। (तोरा) आय सहचरि, हेरबि जदि जुगल माधुरी। मेघ बिजुरी जड़ाजड़ि कि शोभाहलो।।

निताई गौरांग नाम

*निताइ-गौराङ्ग का नाम लेने से प्रेम उमड़ता है, अश्रुधार बहती है; जो अपराध की बात तक नहीं सोचते; जो अपराधी का अपराध दिखाकर और अपराध-मोचन का उपाय बताकर अथवा स्वयं उपाय कर प्रेम-दान करते हैं, ऐसे परमदयाल प्रेमदाता-शिरोमणि श्रीनिताइ-गौराङ्ग की यह अपार करुणाराशि जिसके हृदय में संचारित होती है, उसके लिए क्या और कोई साधन-भजन करना बाकी रह जाता है? या किसी और प्रकार के भजन-साधन के लिए क्या उनके मन में उत्कण्ठा पैदा हो सकती है?*

राधा रानी की दासी

*'मैं राधारानी की दासी हूँ' यदि यह विश्वास मन में दृढ़ न हो, तो कातर भाव से निताइ-गौराङ्ग के निकट प्रार्थना करो प्रभु, मैं कलिहत जीव हूँ; मायामुग्ध हो संसार-सागर में आ गिरा हूँ।आप करुणामय हैं, करुणाकर इस बन्धन से मुक्त कीजिये। हे प्रभु, आपकी कृपा के अतिरिक्त मुझ जैसे पाखण्डी के उद्धार का और कोई साधन नहीं।' इसप्रकार का भाव रखो और 'हा निताइ गौराङ्ग !' कहकर रोओ; हृदय निर्मल हो जायगा।'*

निताई नागर

*'निताइ नागर, रसेर सागर,सकल रसेर गुरु।* *जे जाहा चाय, तारे ताहा देय,वांछाकल्पतरु।।* *(निताइ) राधार समान कृष्णे करे मान,सतत थाकये संगे।* *बसि थाकि थाकि, उठये चमकि,कृष्णकथा रसरंगे।।* *बसि वाम पाशे, मृदु मृदु हासे,प्राणनाथ बलि डाके।* *राधार जेमन, मनेर वासना,तेमति करिया थाके।।।* *सोनार केतकी, देखिते मूरति,साधिते मनेर साधा।* *दास वृन्दावन, करे निवेदन,देखिते निताइ राधा।।*

प्रभु कहे नित्यानन्द

प्रभु कहे नित्यानन्द, जग-जीव हैल अन्ध, केह त ना पाइल हरिनाम। एक निवेदन तोरे, नयने देखिबे जारे, कृपा करि लओयाइबे नाम॥ कृत पापी दुराचार, निन्दुक पाषंड आर, केह जेन वंचित ना हय। शमन बलिया भय, जीवे जेन नाहीं रय, सुखे जेन हरिनाम लय॥ कुमति तार्किक जन, पडुआ अधमगन, जन्मे जन्मे भकति विमुख। कृष्ण-प्रेमदान करि, बालक वृद्ध पुरुष नारी, खंडाइह सबाकार दुख॥ संकीर्तन प्रेम-रसे, भासाइया गौड़देशे, पूर्ण कर सबाकार आश। हेन कृपा अवतारे, उद्धार नहिल जारे, की करिबे बलरामदास॥

बहु मिनती

माधव बहुत मिनति करूँ तोय। देड तुलसी तिल देह समर्पिन दया जानि छोड़बि मोय॥ गणइते दोष गुण लेश ना पाओबि जब तुहु करबि विचार। तह जगन्नाथ जगते कहायसि जग बाहिर नह मुञि छार॥ किये मानुष पशु पाखी जे जनमिये अथवा कीट पतंगे। करम विपाके गतागति पुनः पुनः मति रह तया परसंगे॥ भनये विद्यापति अतिशय कातर तरइते इह भवसिंधु। तुया पद पल्लव करि अवलम्बन तिल एक देह दीनबन्धु॥

निताई जीवन धन

"निताइ मोदेर जीवनधन निताइ मोदेर जाति। निताइ बिहने मोदेर आर नाहिं गति।। संसार सुखेर मुखे तुले दिए छाई। नगरे मांगिया खाब गाइये निताई।। जे देशे निताइ नाइ से देशे ना जाब। निताइ बैमुखीर मुख कभु ना हेरिब।। काँधेर पैता जेमन ना छाडे ब्राह्मन। तेमति निताइ मोदेर सरबस धन।। गंगा जार पद जल हर शिरे धरे। हेन निताइ न भजिये दुःख पेये मरे।। ताइ बलि भज भाइ गौरांग निताइ। कलिभव एड़ते आर गति नाई।। -निताइ हमारे जीवनधन और जाति-पाँति सब कुछ हैं। निताइ बिना हमारी गति नहीं। हम संसार सुख के मुख में राख झोंककर नगर-नगर, द्वार-द्वार मांगकर खायेंगे और 'निताइ, निताइ' गाते जायेंगे। जिस देश में निताइ नहीं, वहाँ कभी न जायेंगे। जिनके चरणों का जल शिवजी सिर पर धारण करते हैं ऐसे निताइ को न भजकर लोग वृथा दु:ख से मरते हैं। इसलिए मैं कहता हूँ निताई गौर का भजन करो। कलिकाल में भव सागर से पार होने का कोई और उपाय नहीं है।

आर हरिनाम बलिब कबे

"आर हरिनाम बलबि कबे ? भाविते शुनितेरे मन दिने दिने दिन फुरावे।। पद्मपत्रेर वारि जेमन तेपनि जीवेर जीवन। ढलिया पड़िबे जखन, अपनि अंग अवश हो।। देहेर बाती एइ दुइ नयन, जाते कर दिक दरशन। प्रबल हइले काल पवन, ज्वाला बाति निबे जावे।। जदि बलो बन्धुजने नाम शुनाबे शेड निदाने। शुनते पाबिने पाबिने, अमनि कर्ण बधिर हवे।।" -रे मन, और कब हरिनाम लेगा? सोच विचार करते-करते एक-एक कर दिन बीत जायेंगे। कमल के पत्ते पर पानी-जैसा यह जीवन ढलकर जब गिर पड़ेगा, शरीर बेकार हो जायेगा। देह की बत्तियों के समान ये दो नयन जिनसे तू देखता है, कालरूपी पवन के प्रबल होते ही इनकी लौ बुझ जायगी। यदि तू कहे कि बन्धु-बान्धव तुझे उस समय हरिनाम सुनायेंगे, तो जान ले कि तू सुन न पायेगा, तेरे कान बहरे हो जायेंगे।

एक कृष्ण नामे

एक कृष्णनामे करे सर्वपाप नाश। प्रेमेर कारण भक्ति करेन प्रकाश।। प्रेमेर उदये हय प्रेमेर विकार। स्वेद-कम्प-पुलकादि गद्गदाश्रुधार।। अनायासे भवक्षय, कृष्णेर सेवन। एक कृष्णनामेर फले पाइ एत धन।। हेन कृष्णनाम यदि लय बहुबार। तभु यदि प्रेम नहे, नहे अश्रुधार।। तबे जानि, अपराध आछये प्रचुर। कृष्णनाम-बीज ताहे ना करे अंकुर।। चैतन्य-नित्यानन्दे नाहि ए सब विचार। नाम लैते प्रेम देन, बहे अश्रुधार।।

पतितपावन हेतु तव अवतार

पतित पावन हेतु प्रभु तब अवतार।  मो सम पतित प्रभु न पाइबे पार। श्री कृष्णा चैतन्य प्रभु दया करो मोरे। हा हा प्रभु नित्यानंद प्रेमानन्द सुखी। कृपा बलो काना कोरो अमी बोडो दुखी। दया कोरो सीतापति अद्वैत गोसाईं तब कृपा बोले पहाई चैतन्य निताई।। हा हा स्वरूप सनातन रूप रघुनाथ, भट्ट जुग श्री जीव प्रभु लोकनाथ।। दया कोरो श्री आचार्य प्रभु श्री निवास, रामचन्द्र संग मांगे नरोत्तम दास। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु दाया कोरो मोरे, तुम बिन के दयालु जगत सन्सारे।।।😭😭😭

गौरा न भजिया

श्री नरोत्तम दास ठाकुर महाशय की प्रार्थना  गोरा पहुन् ना भजिया मैनु प्रेम-रतन-धन हेलाय हाराइनु।।१।। हे गौरंग महाप्रभु! मेने आपके श्रीचरणो का भजन नही किया। अपनी लापरवाही से मेने दिव्य प्रेम धन (रत्न-धन) को खो दिया। अधने जतन कोरि धन तेयागिनु आपन करम-दोषे आपनि डुबिनु।।२।। उस प्रेमधन को त्यागकर मे सांसारिक नाशवान विषयो के संग्रह मे लगा रहा। इस प्रकार अपने ही कर्मो के दोष से मैने स्वयं को संसाररूपी सागर मे डुबा दिया। सत्संग छाडि ‘ कैनु असते विलास् ते-कारणे लागिलो जे कर्म-बंध-फान्स्।।३।। मे सत्संग का परित्यागकर, असत विषयो मे रमता रहा इसलीये मे कर्मो के बंधन मे फस गया। विषय-विषम-विष सतत खाइनु गौर-कीर्तन-रसे मगन ना हैनु।।३।। इंद्रयतृप्ती रूप विषम-विष का पान मे निरंतर करता रहा, परंतु श्रीगौरसुंदर के कीर्तन रस मे मग्न नही हो सका। एमन गौरङ्गेर गुणे ना कानिदल मन मनुष्य दुर्लभ जन्म गेले अकारण।।४।। श्रीगौरंग महाप्रभु के गुणो का गाणं करने मे मेरा मन रोता नही, इसलीये मेरा दुर्लभ मनुष्य जन्म अकारण व्यर्थ ही गया। केनो वा आछये प्राण कि सुख पाइया नरोत्तम् दास् केनो ना गेलो मरिया।।५।। नारोतमदास ठाकूर कहेते

हरि हरि कबे मोर

हरि हरि कबे मोर हइबे सुदीन।  भजिब श्री राधा कृष्ण हइया प्रेमाधीन।।  सुयन्त्रे मिशाइवा गावो सुमधुर तान।  आनन्दे करिवो दुंहार रूप गुण गान।।  राधिका गोविंद बलि कांदिबो उच्चःस्वरे। भिजिबे सकल अंग नयनेर नीरे।।  एइ बार करुना करो श्री रूप सनातन।  रघुनाथ दास मोर श्री जीव जीवन।।  एइ बार करुना करो ललिता विशाखा।  सख्यभावे श्रीदाम सुबल आदि सखा।।  सबे मिली दया करो पुरुक मोर आस।  प्रार्थना करये सदा नरोत्तम दास।।  हा निताई

रखना सुहागन (यशु)

🌹👣🌹 रखना सुहागन मेरे गौर हरि । चरणों में तेरे ये है अरजी हमारी ।। बिंदिया सिंदूर चमके हमेशा । हाथों का कंगना चूड़ी खनके हमेशा । रहमत हमेशा हम पर रखना तुम्हारी । मेरा गौर हीं तो सुहाग है मेरा । इनसे हीं दुनिया में राज है मेरा।। इनके बिना ना कोई हस्ती हमारी । आँच न तुम पर कभी आने न देना । बदले में चाहे तुम जान मेरी लेना । जन्मों का बंधन जोड़े रखना बिहारी। मन की बात मैंने सारी बताई। कांधे पर तुमहारे मेरी हो विदाई । ख्वाहिश ये तुम पूरी करना बिहारी। रखना सुहागन मेरे नदिया बिहारी।। चरणों में तेरे ये है अरजी हमारी 🌹👣🌹जय जय श्री राधे 🌹👣🌹

वृन्दावन धाम

वृन्दावन धाम नीकौ बृज कौ विश्राम नीकौ, श्यामा श्याम नाम नीकौ मन्दिर अनंद कौ। कालीदह न्हन नीकौ यमुना पयपान नीकौ, रेणुका कौ खान नीकौ स्वाद मानौ कंद कौ॥ राधाकृष्ण कुण्ड नीकौ, संतन कौ संग नीकौ, गौरश्याम रंग नीकौ अंग जुग चंद कौ। नील पीतपट नीकौ बंसीवट तट नीकौ, ललित किशोरी नीकी नट नीकौ नंद कौ॥ - श्री ललित किशोरी देव, श्री ललित किशोरी देव जू की वाणी श्री वृंदावन धाम का क्षेत्र अति ही सुखद है और वहाँ समय व्यतीत करना आनंदमय है! दिव्य युगल श्री श्यामाजू और श्री श्यामजी के अद्भुत नाम अति ही आकर्षक हैं और सभी मंदिरों में आनंद प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर श्री कृष्ण ने काले सर्प कालिया को परास्त किया और श्री यमुना नदी के जल को पीने के लिए विश से मुक्त कीया था, वहाँ स्नान करना बहुत आनंदमय है। दिव्य ब्रज रज का भंडार समस्त ब्रज मण्डल मे व्याप्त है, जिसके प्रत्येक कण का स्वाद चीनी की भांति मधुर है! राधा और कृष्ण कुण्ड, दोनों आश्चर्यजनक रूप से सुंदर हैं, और संतों का संग बहुत आनंदमय है। उनके गौर और श्याम वर्ण स्वरूप अति ही आकर्शक प्रतीत हो रहे हैं; जो एक साथ दो देदीप्यमान चंद्रमा की भांति दृष्टि

संध्या आरती कीर्तन

संध्या आरती के बाद होने वाला कीर्तन-1 दोहा पराभक्ति रति वर्द्धनी, स्याम सब सुख दैनि। रसिक मुकुटमनि राधिके, जै नव नीरज नैन।। स्तोत्र जयति जय राधा रसिकमनि मुकुट मन-हरनी त्रिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 1 ।। जयति गोरी नव किसोरी सकल सुख सीमा श्रिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 2 ।। जयति रति रस वर्द्धनी अति अद्भुता सदया हिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 3 ।। जयति आनंद कंदनी जगबंदनी बर बदनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 4 ।।  जयति स्यामा अमित नामा वेद बिधि निर्वाचिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 5 ।। जयति रास-बिलासिनी कल कला कोटि प्रकाशिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 6 ।। जयति बिबिध बिहार कवनी रसिक रवनी सुभ धिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 7 ।। जयति चंचल चारु लोचनि दिव्य दुकुला भरनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 8 ।। जयति प्रेमा प्रेम सीमा कोकिला कल बैनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 9 ।। जयति कंचन दिव्य

निताई चाँद

अपने इष्ट देव दीक्षा गुरु श्रीमन्ननित्यानन्द राय के चरणों में नमस्कार करता हूँ, क्योंकि की कृपा से ही श्रीचैतन्यदेव के नाम गुणगान की स्फूर्ति होती है।  उन श्रीबलराम प्रभु की मैं वन्दना करता हैं। उनकी वन्दना एवं कृपा प्राप्ति से ही श्रीकृष्णचैतन्य गुण- कीर्तन की स्फूर्ति सम्भव है, क्योंकि उनके हजारों मुख ही श्रीकृष्ण नाम गुण कीर्ति के भण्डार हैं। वे नित्य नवीन नाम गुणों का गान करते रहते हैं। उसी प्रकार वही श्रीसंकर्षण श्रीनिताईचाँद अनन्तदेव के रूप में श्रीश्रीकृष्णाचैतन्यदेव के नाम गुण लीलाओं का नित्य नवीन गान करते रहते हैं। अतः उनकी कृपा से ही श्रीकृष्णचैतन्य नाम गुणगान की रति सम्भव है, अन्यथा नहीं। जैसे बहुमूल्य रत्न को परम गुप्त आत्मीय स्थान पर रखा जाता है, उसी प्रकार श्रीमहाप्रभु ने अपने नाम गुण कीर्तन रुप महारत्न को अपने परम आत्मीय अपने प्रिय श्रीअनन्तदेव के मुख में सुरक्षित रखा है, जो श्रीनिताई चाँद के अंश हैं। अतः श्रीनिताई चाँद की कृपा के बिना श्रीकृष्ण-नाम गुण गान रूप महारत्न की प्राप्ति नहीं हो सकती।      🌹 श्रीवृन्दावदास ठाकुर महाशय ने यह भी वर्णन किया है कि जो श्रीनिताईचा

कबे गौर वने

कबे गौर-वने कबे गौर-वने, सुरधुनी-तटे, ‘हा राधे हा कृष्ण’ बोले’। काँदिया बेडा’ब, देहसुख छाड़ि’, नाना लता-तरु-तले।।1।। श्वपच-गृहेते, मागिया खाइब, पिब सरस्वती-जल । पुलिने-पुलिने, गडा-गडी दिबो, कोरि’ कृष्ण-कोलाहल।।2।। धामवासी जने, प्रणति कोरिया, मागिब कृपार लेश । वैष्णव-चरण-रेणु गाय माखि’, धरि’ अवधूत-वेश।।3।। गौड़-ब्रज-जने, भेद ना देखिब, होइब ब्रज-बासी । धामेर स्वरूप, स्फुरिबे नयने, होइब राधार दासी।।4।। 1. ओह! वह दिन कब आयेगा जब मैं सब प्रकार के शारीरिक सुखों का त्याग करके नवद्वीप धाम में गंगाजी के किनारे ‘‘हे राधे! हे कृष्ण!’’ पुकारते हुए लताओं और वृक्षों के नीचे भ्रमण करूँगा? 2. मैं चाण्डाल के घर से भिक्षा माँगकर अपना जीवन निर्वाह करूँगा और सरस्वती नदी का जल पीऊँगा। नदी के एक तट से दूसरे तट तक आनन्द में मैं लोट-पोट होता हुआ उच्चस्वर में ‘‘कृष्ण! कृष्ण!’’ का कीर्तन करूँगा। 3. मैं समस्त धामवासियों को प्रणाम करके उनकी कृपा के एक बिन्दु की याचना करूँगा। मैं वैष्णवों की चरणधूलि अपने पूरे शरीर पर मलूँगा और एक अवधूत का वेश धारण करूँगा। 4. अहो! कब मैं नवद्वीप और वृन्दावनवासियों

रसिकानन्द प्रभु वंशज श्यामानन्द प्रभु

गौड़ीय महात्मा पूज्यपाद श्री रासिकानंद प्रभु के वंशज पूज्यपाद श्री कृष्ण गोपालानंद जी द्वारा श्यामानंद चरित्र और श्री हित चरण अनुरागी संतो द्वारा व्याख्यान ,आशीर्वचनों  पर आधारित  । कृपया अपने नाम से प्रकाशित न करे । भाग १ जन्म और बाल्यकाल : श्री गौरसुन्दर चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं और संप्रदाय के प्रचार हेतु गौड़ीय संप्रदाय में अनेक सिद्ध संतो का प्राकट्य हुआ है । श्री श्यामानंद प्रभु का जन्म सन् १५३५ ई को चैत्र पूर्णिमा के दिन पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के अंतर्गत धारेंदा बहादुरपुर ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री कृष्ण मंडल और माता का नाम दुरिका देवी था । इनके पिता श्री कृष्ण मंडल का जन्म छः गोपो के वंश में हुआ था  । इनके बहुत से पुत्र और पुत्रियां थी परंतु धीरे धीरे वे सब श्यामानंद प्रभु के जन्म से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए अतः श्री कृष्ण मंडल ने अपने इस पुत्र (श्यामानंद प्रभु ) का नाम दुखी रख दिया । सभी ज्योतिष के ज्ञाता और संत उस बालक को देखकर कहते थे की यह अवश्य कोई महान संत होगा । देखने में यह बालक ऐसा सुंदर था की जो भी उसे देखता वह देखता ही रह जाता । धीरे धी