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Showing posts from September, 2018

गौर उन्माद

श्रीमहाप्रभु जी में पुलकावली कैसी? की रोंगटों के साथ उनकी जड़ फफ़ोलो की भाँति फूल उठी थी प्रभु का शरीर शिमुली के वृक्ष की भाँति काँटे काँटे दिखता था उनका एक एक दाँत कटकटा रहा था जिसे देखकर भय लगता था और सभी को ऐसा लगता था की उनके दाँत सभी बाहर आ पड़ेंगे। सर्वांग( सभी अँगो)  में ऐसा सवेद पसीना निकल रहा था की उसके साथ- साथ रक्त भी निकल रहा था। प्रभु जगन्नाथ कहते हुए ज-ज- ग- ग, ज- ज- ग- ग करके ही रह जाते। इस प्रकार उनका गदगद वचन या स्वरभंग बिचार था। उनके अश्रु तो पिचकारी की तरह छूट ही रहे थे उनसे आसपास के सभी लोग भीग रहे थे। प्रभु के शरीर की ग़ौरकांति कभी तो अरुण( लाल) दीखने लगती और कभी मल्लिका के फूल की भाँति बिलकुल सफ़ेद ही हो जाती। कभी प्रभु स्तब्ध ( जड़वत) होकर पृथ्वी पर गिर जाते, सूखि लकड़ी वत हो जाते और उनके हाथ-पाँव चलने से रहित हो जाते कभी तो पृथ्वी पर श्वासहींन होकर पड़ जाते और उन्हें इस अवस्था में देखकर भक्तों के प्राण मानो निकल जाते कभी उनके नेत्र, नासा से जल और मुख से झाग निकलने लगती ऐसा प्रतीत होता मानो चंद्र से अमृत बह रहा हो श्रीमहाप्रभु के मुख से निकले प्रेम के सात्विक

निताई गुनमणि

निताई गुनमणि आमार निताई गुनमणि। आनिया प्रेमेर वन्या भासाल अवनी।। प्रेमवन्या लइया निताई आइला गौड़ देशे। डुबिल भक्तगण दीनहीन भासे।। दीनहीन पतित पामर नाहि बाछे। बह्मार दुर्लभ प्रेम सबकारे जाचे।। जे ना लय तारे बले दन्ते तृण धरि। आमारे किनिया लह भज गौरहरि।। एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि जाय। सोनार पर्वत जेन धूलाते लौटाय।। निताई रंगिया मोर प्रेम कल्पतरु। कांगालेर ठाकुर निताई जगतेर गुरु ।।

ढोल ग्वार

श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है “शूद्रों” और नारी का अपमान  | भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक शूद्रों को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में से आज तक मात्र 1 ही चौपाई पढ़ने में आ पाई है और वह है भगवान श्री राम का मार्ग रोकने वाले समुद्र द्वारा भय वश किया गया अनुनय का अंश है जो कि सुंदर कांड में 58 वें दोहे की छठी चौपाई है "ढोल गवार सूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी ||" इस सन्दर्भ में चित्रकूट में मौजूद तुलसीदास धाम के पीठाधीश्वर और विकलांग विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री राम भद्राचार्य जी (जो की नेत्रहीन होने जे बावजूद संस्कृत,व्याकरण,सांख्य,न्याय,वेदांत, में  5 से अधिक GOLD Medal जीत चुकें है | ) महाराज का कहना है कि बाजार में प्रचलित रामचरितमानस में 3 हजार से भी अधिक स्थानों पर अशुद्धियां हैं और इस चौपाई को भी अशुद्ध तरीके से प्रचारित किया जा रहा है | उनका कथन है कि तुलसी दास जी महाराज खलनायक नहीं थे  आप स्वयं विचार करें यदि तुलसीदास जी की

परम् करुणा

परम करुणा पाहु दोई जन निताई गौरचन्द्र सब अवतार सारा शिरोमणि केवल आनन्द कन्द भजो भजो भाई चैतन्य निताई सुदृढ़ विश्वास करि विषय छाड़िया सेरासे मझिया मुखे बोलो हरि हरि देखो रे भाई त्रिभुवने नाई एमोन् दयाल दाता पशु पाखी झूरे पाषाण विदारे शुनि जार गुण गाथा संसार मजिया रोहिली पोढिया सेपदे नहिलो आस आपना करम भुंजाय शमन कहो रे लोचन दास परम् करुणा दुई जन ........