आनंद के कुछ भाव होते है - "रति", "प्रेम", "स्नेह", "मान" "प्रणय", "राग", "अनुराग", "भाव" फिर "महाभाव" 🌹 1. रति - जब चित्त में भगवान के सिवा अन्य किसी विषय की जरा भी चाह नहीं रहती ,जब सर्वेन्द्रिय के द्वारा श्रीकृष्ण की सेवा में ही रत हुआ जाता है, तब उसे "रति" कहते है.जब रति में प्रगाढ़ता आती है तो उसे प्रेम कहते है। 🌹2. प्रेम - प्रेम में अनन्य ममता होती है सब जगह से सारी ममता निकलकर यह भाव हो जाए कि "सर्वज्ञ", "सर्वदा" और "सर्वथा" एकमात्र श्रीकृष्ण के सिवा और कोई मेरा नहीं है, इसी का नाम "प्रेम" है.जब प्रेम में प्रगाढ़ता आती है तो उसे स्नेह कहते है। 🌹3.स्नेह - हम लोग छोटे के प्रति होने वाले, बडो के वात्सल्य को स्नेह कहते है, पर यहाँ चित्त कि द्रवता का नाम "स्नेह" है.जो केवल भावान्वित चित्त होकर अपने प्रीतम के प्रेम में द्रवित रहता है, उस द्रवित चित्त कि स्थिति का नाम स्नेह है.जब स्नेह में प्रगाढ़ता आती है, तब स्नेह की मधुरता का व