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राधारमण बधाई

*श्रीराधारमण बधाई पद* पूरण बैसाखी सखी अभिलाषी राधारमण मिलाई । श्रीवृन्दावन राज सुहावन करें अभिषेक महाई ॥  मणिमय खंभा रोपैं रंभा वंदनवार बंधाई ।  शुभ चंद्रातप रोके आतप ध्वज पताक फहराई ।।  चौक समुक्ता फल उपयुक्ता कनक कुम्भ थिरकाई । रचौ सरोवर रुचिर मनोहर स्नानवेदि ता मांई ॥  दोऊ जन भेटे सुखसों बैठे नैनन में बतराई।  अभरन मोती लालन धोती पटका पाग सुहाई ॥ तिय सुकुमारी झीनी सारी भूषण रूप सदाई ।  कोई लिये छत्र कोई फलपत्र कोई सु चमर डुलाई ।। कोई मोरछल कोई ले उत्पल कोई घंटान बजाई।  कोई लै पंखी करत निसंखी कोई दरपण दरसाई ||  कोई झालरी कोई करतालरी सुर घड़ियाल मिलाई ।  कोई मिरदंग कोई मुहचंग सारंगी लहराई ||  कोई सखी बीणा परम प्रवीणा गामें सुरन उठाई। कोई नाचत कोई पुस्तक बांचत वेदध्वनि नभ छाई ।।  कोई रसमर्दन कोई उद्वर्तन धीरे अंग लगाई।  कोई जल डारे कोई निरवारे पंचामृत अवगाई ॥ कोई सर्वौषधि कोई  महौषधि तिल तिल नेह बढ़ाई। पुष्प फल रत्न गंधसम्पन्न सुघट सहस्र झर लाई ।। आये स्नान अंग पोंछे पुनि सिंहासन बैठाई ।  पीरो जामा सुभग पजामा दुपटा पाग झुकाई ।। मोरमुकट सिर किंकिणी कटिधर कुण्डल हार धराई।  बेंदी वेसर तिलक

पँच तत्व यशजु

जैसे  भौतिक पंच तत्व  पाँच चीज़ों से बना है अग्नि,वायु,जल, आकाश और पृथ्वी। वैसे ही  भक्तिक पंच तत्व भी इनका है स्वरूप हैं।  1- *अग्नि (गौर सुंदर)-*  अग्नि से जल की उत्पत्ति मानी गई है। हमारे शरीर में अग्नि ऊर्जा के रूप में विद्यमान है। इस अग्नि के कारण ही हमारा शरीर चलायमान है। अग्नि तत्व ऊर्जा, ऊष्मा, शक्ति और ताप का प्रतीक है। हमारे शरीर में जितनी भी गर्माहट है वो सब अग्नि तत्व ही है। यही अग्नि तत्व भोजन को पचाकर शरीर को निरोगी रखता है। ये तत्व ही शरीर को बल और शक्ति वरदान करता है। इसी तरह गौर सूंदर भी अग्नि तत्वतः भक्त के भीतर ऊर्जा स्वरूप में विद्यमान रहते। 2- *आकाश (निताई चाँद)* तत्व : आकाश एक ऐसा तत्व है जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु विद्यमान है। यह आकाश ही हमारे भीतर आत्मा का वाहक है। इस तत्व को महसूस करने के लिए साधना की जरूरत होती है। ये आकाश तत्व अभौतिक रूप में मन है। जैसे आकाश अनन्त है वैसे ही मन की भी कोई सीमा नहीं है। जैसे आकाश में कभी बादल, कभी धूल और कभी बिल्कुल साफ होता है वैसे ही मन में भी कभी सुख, कभी दुख और कभी तो बिल्कुल शांत रहता है। ये मन आकाश तत्व रूप है जो शरी