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Showing posts from September, 2017

भक्त चरित्र बाबा माधवदास जी

बाबा श्रीमाधवदासजी                      🌿सीढ़ियों से नीचे उतरने के पश्चात जैसे ही बाबा सड़क की ओर चले तो आठ वर्ष का एक सांवला सलौना बालक, जिसके घुंघराले बाल और मधुर मुस्कान थी। बाबा के पास आकर बोला- बाबा ! जे चुन्नी मोकूँ दे दे। बाबा बालक की ओर निहारते बोले- लाला बाजार ते दूसरो ले लै।  मैं तोकूँ  रुपया दे रहौ हूं। ऐसा कहिकै बाबा ने एक रुपया निकारि कै दियौ। बालक ने कहा -बाबा ! मोकूँ पैसा नाय चाहिए। मोकूँ तो जेई चुनरी चाहिए। बाबा बोले- ये चुनरी श्री जी की प्रसादी है।                      🌿 जाय नाय दूंगौ। ऐसो कहिकै बाबा आगे चल दिए। थोड़ी दूर ही गए होंगे कि इतने में ही पीछे ते बालक दौड़तो भयो आयौ और बाबा के कंधे पै ते चुन्नी खींच कै भाग गयौ। बाबा कहते रह गए -अरे ! मेरी बात तो सुनौ लेकिन वह कहां सुनने वाला था। बाबा विचार करते ही करते रह गए कि बालक कौन था। जो इस प्रकार चुन्नी खींच कर ले गया ।                     🌿बाबा बरसाने में श्री धाम वृंदावन लौट आए । शाम को बाबा श्री बिहारी जी के दर्शन के लिए आए तो देखा आज श्रीबिहारीजी के परम आश्चर्यमय दर्शन हो रहे हैं। जो चुनरी श्रीजी के मंदिर में

तृतीय अध्याय पूर्ण

नवद्वीपधाम माहात्म्य तृतीय अध्याय   श्रीनवद्वीप के चन्द्रस्वरूप श्रीशचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो !  श्रीअद्वैत आचार्य की जय हो ! जय हो ! श्रीगदाधर और श्रीवास पंडित की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी तीर्थों के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! जिस धाम में श्रीगौरसुन्दर अवतरित हुए हैं।श्रील ठाकुर जी आगे धाम के स्थानों की महिमा श्रवण करने को कहते हैं।      सोलह कोस श्रीनवद्वीप धाम में सोलह नदियां सदैव विराजमान हैं। गंगा के पूर्व तट पर चार द्वीप तथा पश्चिम तट पर पांच द्वीप विराजमान हैं। भगवती भगीरथी गंगा सभी द्वीपों को परिवेष्टित करती हुई प्रवाहित होती है तथा नित्य निरंतर इस धाम की शोभा का वर्धन करती है। श्रीनवद्वीप धाम के मूल में श्रीगंगा सदैव प्रवाहित है तथा अन्य नदियां इधर उधर बहती हैं। भगीरथी के साथ मिल पश्चिम तट पर श्रीयमुना महारानी बहती हैं तथा विद्या की अधिष्ठात्री देवी श्रीसरस्वती दूसरी और बहती हैं। यमुना के पूर्व भाग में प्रबल प्रवाह वाली ताम्रपर्णी , कृतमाला और बह्मपुत्र नदियां प्रवाहित होती हैं। सरयू, नर्मदा, सिंधु, कावेरी , गोमती आ

द्वितीय अध्याय 2

नवद्वीपधाम माहात्म्य द्वितीय अध्याय 2   देवता , ऋषि और रुद्र नवद्वीप में स्थान स्थान पर विराजमान हैं।चिरकाल तक जीवन व्यतीत करने पर यह नित्यानन्द प्रभु की कृपा नहीं प्राप्त कर पाते क्योंकि जब तक देवबुद्धि का अहंकार रहता है दैन्य भाव का स्फुरण नहीं होता । तब तक अनन्य यत्न करने पर भी ब्रह्मा शिव आदि भी निताई गौर की भक्ति नहीं प्राप्त कर सकते फिर अन्यों का तो कहना ही क्या। इन सब बातों पर विश्वास रख ही इस ग्रंथ का श्रवण करो। इनमें किसी प्रकार का तर्क भी न रखो क्योंकि तर्क विर्तक अमंगल करने वाला होता है।       श्रीचैतन्य महाप्रभु की लीला गम्भीर सागर के समान है। मोचा खोला रूपी तर्क कष्टप्रद है । तर्क करने पर कोई व्यक्ति अपना उद्धार चाहे तो वह कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाता। उसकी सब चेष्ठाएं असफल हो जाती हैं। जो तर्क को तिलांजलि देकर साधु और शास्त्र का आश्रय ग्रहण करता है उसे अति शीघ्र ही महाप्रभु जी की कृपा प्राप्त होती है। सभी शास्त्र निरंतर श्रीनित्यानन्द प्रभु की आज्ञा से श्रीनवद्वीप धाम का गुणगान करते हैं। उनके वचनों पर विश्वास करके ही इस धाम की महिमा को समझा जा सकता है। कलियुग में अन्य स

द्वितीय अध्याय 1

श्रीनवद्वीपधाम माहात्म्य द्वितीय अध्याय    श्रीनवद्वीप के चंद्रस्वरूप श्रीसचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी धामो के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! इस धाम की महिमा गाने का सामर्थ्य किसमे है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर स्वयम को  असमर्थ समझते हुए श्रीगौरसुन्दर की इच्छापूर्ति हेतु इसकी महिमा लिखते हैं।    श्रीगौरधाम गौड़मण्डल में स्थित है तथा श्री जान्हवी देवी ( गंगा) द्वारा सेवित है। श्रीगंगा देवी इस धाम की शोभा को वर्धित करती हैं। श्रीगौड़मण्डल इक्कीस कोस की परिधि वाला है और इसके मध्य श्रीगंगा देवी इधर उधर प्रवाहित होती रहती हैं।श्रीगौड़मण्डल एक सौ पंखुड़ियों वाले कमलपुष्प के समान है जिसके मध्य भाग में बहुत ही सुंदर श्रीनवद्वीप विद्यमान है। इस पुष्प के बीच पांच कोस परिधि वाला कर्णिकास्वरूप आधार है। आत्यंतिक सुगन्धित आठ दल वाला यह पुष्प नवद्वीप चार योजन परिधि वाला है। इस कमलपुष्प की बाहरी एक सौ पंखुड़ी श्रीगौड़मण्डल है जिसकी परिधि 21 कोस है।शास्त्रों के अनुसार इसका व्यास सात योजन है ।जिसके बीच नवद्वीप विद्यमान है तथा बीच मे योगपीठ श्रीमह

प्रथम अध्याय 2

प्रथम अध्याय 2        जो भी व्यक्ति एक बार भी श्रीगौरागनिताई का नाम उच्चारण करता है, उसके अनन्त कर्मों के दोष नष्ट हो जाते हैं। आप सभी जीव एक गूढ़ रहस्य सुनें। कलियुग के जीवों के लिए गौरलीला धन ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण वस्तु है।श्रीगौरसुन्दर ही वृन्दावन में श्रीराधाकृष्ण के रूप में सखियों सँग नित्य विलास करते हैं। शास्त्रों के माध्यम से जीव ब्रजलीला के तत्व और ब्रज में हुई श्रीराधाकृष्ण की नित्यलीला की महिमा को समझता है।शास्त्रों के माध्यम से पूरा संसार जानता है कि कृष्णनाम और कृष्णधाम की महिमा अपार है। फिर भी लोगों को कृष्ण प्रेम की प्राप्ति क्यों नहीं हो रही। इसमे एक गूढ़ तत्व है जिस पर मायमुग्ध जीव विचार नहीं करते।     यदि बहुत जन्म तक श्रीकृष्ण का भजन करने पर भी प्रेम नहीं होता है , तब यह निश्चित है कि ऐसे व्यक्ति ने अनेकों अपराध किये हैं। यदि जीव अपराध शून्य होकर कृष्ण नाम लेता है तो बिना किसी बाधा के कृष्णप्रेम प्राप्त करता है।किंतु श्रीचैतन्य महाप्रभु के अवतार में एक बहुत ही विलक्षण बात है कि अपराध रहने पर भी जीव प्रेमधन को प्राप्त कर लेता है। जो जीव हा निताई ! हा गौर ! कहकर पुका

प्रथम अध्याय 1

प्रथम अध्याय श्रीनवद्वीप के चन्द्रस्वरूप श्रीसचीनन्दन की जय हो! जय हो ! अवधूत श्रीनित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो ! श्रीअद्वैताचार्य प्रभु की जय हो ! जय हो ! श्रीगदाधर पंडित तथा श्रीवास पंडित की जय हो ! जय हो ! अन्यान्य सभी धामों के सारस्वरूप श्रीनवद्वीपधाम की जय हो ! जय हो ! नवद्वीपवासी श्रीगौर परिवार की जय हो ! जय हो ! सभी भक्तों के चरण कमलों में प्रणाम।     श्रीठाकुर महाशय श्रीनवद्वीप धाम के माहात्म्य का वर्णन करने में स्वयम को असमर्थ पाते हैं। श्रीनवद्वीप धाम की महिमा अपार है। जब ब्रह्मादि देव भी इसकी महिमा नहीं जानते , तब इसकी महिमा का वर्णन करने का सामर्थ्य किसी का कैसे हो सकता है। जब भगवान शेष भी अपने सैंकड़ों मुखकमल से इसका वर्णन करने में असमर्थ हैं , तब ठाकुर महाशय स्वयम को एक शुद्र जीव सम समझते हैं। यद्यपि श्रीनवद्वीप धाम की महिमा अनंत है तथा देव महादेव भी इसका वर्णन करने में असमर्थ हैं तथापि श्रीगौरसुंदर की इच्छा बहुत बलवान है , उन्हीं की इच्छा के अनुसार श्रील ठाकुर महाशय जी ने इस कार्य का सम्पादन किया है। सभी कार्य श्रीगौर सुंदर की इच्छा अनुरूप ही हो रहा है।और भी रहस्यपू