Posts

Showing posts from November, 2019

दयाल निताई चैतन्य

*दयाल निताई चैतन्य* *दयाल निताई बोले नाचे रे आमार मन* *नाचे रे आमार मन, नाचे रे आमार मन* परमदयालु श्रीनिताईचाँद तथा श्रीकृष्ण चैतन्य के नाम गाते गाते मेरे मन तू विभोर होकर नाच ले। *विचार तो नाहिं है, गौर नामे अपराधे विचार तो नाहीं है* *कृष्ण नामे रुचि होवे घुचिबे बन्धन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* ऐसे दयालु प्रभु के नाम लेने के लिए कोई समय, स्थान, अपराध किसी भी प्रकार का कोई विचार या बन्धन नहीं है। कृष्ण नाम मे रुचि होते ही सब बन्धन खुल जाते हैं। मेरे मन तू निताई चैतन्य के नामों का गायन कर कर नाच ले। *एमोन दयाल तो नाहीं है, मार खाये प्रेम देय* *औरे अपराधे दुरे जाबे, पावे प्रेमधन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* ऐसे दयालु प्रभु त्रिभुवन में और कोई नहीं हैं, जो स्वयम मार खाकर भी दूसरों को प्रेम प्रदान करते हैं।जिनके नाम जा गायन करने से सब अपराध दूर हो जाते हैं औऱ प्रेम धन की प्राप्ति हो जाती है। हे मन तू नामो का गायन करते करते नाच ले। *अनुराग तो हबे है , कृष्ण नाम अनुराग हबे* *अनायासे सफल होवे जीवेर जीवन* *दयाल निताई चैतन्य बोले नाचे रे आमार मन* इनके नामों जे गायन स

राधाकृष्णअलिंगीत गौर

राधालिंगितकृष्ण गौर राधाप्रेम भाव विभोर मुखे बोले हरि हरि राधाभाव कांति धरि राधाप्रेम करै आस्वादन बांटत निज प्रेम धन परम् करुणा अवतार हरि हरि नाम सर्वसार कलियुगे प्रेम प्रकाश हिय करै अभिलाष कलियुगी जीव संतप्त करै निज प्रेम प्रदत्त भक्त वत्सल गौरहरि कलिजीवे करुणा करि जप तप नाँहिं आचार पतितन कौ करै उद्धार महामन्त्र करुणा रूप प्रकासै निज प्रेम स्वरूप वँशी बनी खोल करताल मधुर हरिनाम रसाल प्रेम मत्त नटवर नागर हिय कृष्ण प्रेम सागर लुटाय निज प्रेम धन हरि नामे रहै मग्न परम् प्रेम पूँजी नाम कलियुग की पूँजी नाम नाम विलासी भक्त रूप गुप्त राखै निज स्वरूप गौर रूप धरि नन्दनन्दन विष्णुप्रिया सेई प्राणधन नित्यानन्द अभिन्न रूप युगे युगे सेवा स्वरूप भजै बाँवरी गौर निताई गुरुकृपा सौं यह निधि पाई

तोमार दासी

*"तोमार दासीर दासी हैते वाञ्छा करि ।* *भजन साधन मुञि नहि अधिकारी।।* *तोमार महिमा सेवा अनन्त अपार ।* *एक कण स्पर्शिमात्र से कृपा तोमार ।।* *शची-आंगिनाय मुञि झाडुदारी चाइ ।* *सेइ त जानिह देवि! आमार बड़ाइ।।* *दया कर दयामयि ! दासी अंगीकारि ।* *धृष्टता मूर्खता त्रुटि सब क्षमा करि । ।* *मूर्त्तिमती क्षमा तुमि ओगो क्षेमस्करि।* *क्षमा कर सर्व दोष माथे पद धरि ।।* *विष्णुप्रियार प्राणनाथ जय गौरहरि।* *बलिते बलिते जेन मरे दासी हरि* *तोमार चरण-पद्म हृदे अभिलाषि।* *नदीया-गम्भीरा-लीला गाय हरिदासी।।"* (गौर-गीतिका)

विष्णुप्रिया प्राण

यथा राग "विष्णुप्रियार प्राण-गौर जुगल-किशोर। जीवने मरणे गति, प्रेमरसे भोर ।। नवद्वीप जोगपीठे बसिवे दुजने। आनन्दे करिव मुञि चामर व्यजने।। नदीया-जुगल-अंगे चन्दन माखाव। कर्पूर ताम्बुल दुहुँअधरेते दिव।। मालतिर माला गाँथि दुहुँ गले दिव। प्राण भरि श्रीजुगलेर वदन हेरिव।। कांचना अमिता आदि जत सखिवृन्द । (ताँदेर) आदेशे करिव सेवा चरणारविन्द ।। अधरेर सुधासिक्त चर्वित ताम्बुल । प्रसाद मागिया ल'व हइया व्याकुल ।। कवे मुञि हव एइ सेवा अभिलाषी। निशिदिन ताइ भावे दासी हरिदासी।।" (गौर-गीतिका)

आरती किये नदिया नागरी

यथा राग "आरति किये नदीया-नागरी। कांचनादि सखि देय आयोजन करि।। शंख बाजे घण्टा बाजे बाजये काँशरी। मधुर मृदंग बाजे बोले गौरहरि।। विशुद्ध गो-घृत ढालि, सप्त प्रदीप्त ज्वालि, श्रीमुख हेरत मन-प्राण भरि।। सुगन्ध चन्दन निये, धूप गुग्गुल दिये, आरति किये नदिया-नागरी।। शंख भरि सुशीतल, सुवासित गंगाजल, श्रीअंगधोयायत सुजतन करि। अंचलधरिया करे, कत ना सोहाग भरे, श्रीअंग मुछाओत अति धीरिधीरि। मल्लिका मालति जुथि, सुचिकन माला गाँथि सखिगण साजाओत किशोर किशोरी फूल आनि राशि राशि, सखिगण हासि हासि, चारि दिके छड़ाओत बोले गौरहरि। । सखिगण हासि हासि, प्रेमानन्दे भासि भासि, चामर दुलायत जाइ बलिहारि।।"

दया कर दयानिधि

यथा राग "दया कर दयानिधि नवद्वीपचन्द्र। ना जानि भजन आमि आरमन्त्रतन्त्र।। जानि सुधु प्राणबन्धु तुया मुखरचन्द । प्रेमे माखा ढल ढल आनन्द-कन्द ।। आर जानि तुमि सुधु करुणार-सिन्धु। पतित पावन प्रभु तुमि दीनबन्धु । । बुझि सुधु तुया नाम सार सर्व धर्म । तुया नाम गान सर्व भक्तिशास्त्र मर्म ।। आनन्द-नीरे भासि, हेरि पदद्वन्द्व। वदन हेरिले हय नाश भव बन्ध।। तुया नाम संकी्त्तन, तुया भक्तसंग। लीलाकथा आलापन, भजनेर अंग ।। नाहि बुझि कुल मान, तुया नाम सर्व । गौरदासी बले यदि, इह बड़ गर्व ।। देवी विष्णुप्रिया करेन निवेदन आत्म । दासी हरिदासी गाय नामेरइ माहात्म्य।।" (गौर-गीतिका)