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Showing posts from August, 2019

वृन्दावन धाम

वृन्दावन धाम नीकौ बृज कौ विश्राम नीकौ, श्यामा श्याम नाम नीकौ मन्दिर अनंद कौ। कालीदह न्हन नीकौ यमुना पयपान नीकौ, रेणुका कौ खान नीकौ स्वाद मानौ कंद कौ॥ राधाकृष्ण कुण्ड नीकौ, संतन कौ संग नीकौ, गौरश्याम रंग नीकौ अंग जुग चंद कौ। नील पीतपट नीकौ बंसीवट तट नीकौ, ललित किशोरी नीकी नट नीकौ नंद कौ॥ - श्री ललित किशोरी देव, श्री ललित किशोरी देव जू की वाणी श्री वृंदावन धाम का क्षेत्र अति ही सुखद है और वहाँ समय व्यतीत करना आनंदमय है! दिव्य युगल श्री श्यामाजू और श्री श्यामजी के अद्भुत नाम अति ही आकर्षक हैं और सभी मंदिरों में आनंद प्रदान करते हैं। जिस स्थान पर श्री कृष्ण ने काले सर्प कालिया को परास्त किया और श्री यमुना नदी के जल को पीने के लिए विश से मुक्त कीया था, वहाँ स्नान करना बहुत आनंदमय है। दिव्य ब्रज रज का भंडार समस्त ब्रज मण्डल मे व्याप्त है, जिसके प्रत्येक कण का स्वाद चीनी की भांति मधुर है! राधा और कृष्ण कुण्ड, दोनों आश्चर्यजनक रूप से सुंदर हैं, और संतों का संग बहुत आनंदमय है। उनके गौर और श्याम वर्ण स्वरूप अति ही आकर्शक प्रतीत हो रहे हैं; जो एक साथ दो देदीप्यमान चंद्रमा की भांति दृष्टि

संध्या आरती कीर्तन

संध्या आरती के बाद होने वाला कीर्तन-1 दोहा पराभक्ति रति वर्द्धनी, स्याम सब सुख दैनि। रसिक मुकुटमनि राधिके, जै नव नीरज नैन।। स्तोत्र जयति जय राधा रसिकमनि मुकुट मन-हरनी त्रिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 1 ।। जयति गोरी नव किसोरी सकल सुख सीमा श्रिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 2 ।। जयति रति रस वर्द्धनी अति अद्भुता सदया हिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 3 ।। जयति आनंद कंदनी जगबंदनी बर बदनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 4 ।।  जयति स्यामा अमित नामा वेद बिधि निर्वाचिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 5 ।। जयति रास-बिलासिनी कल कला कोटि प्रकाशिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 6 ।। जयति बिबिध बिहार कवनी रसिक रवनी सुभ धिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 7 ।। जयति चंचल चारु लोचनि दिव्य दुकुला भरनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 8 ।। जयति प्रेमा प्रेम सीमा कोकिला कल बैनिये। पराभक्ति प्रदायिनी करि कृपा करुणानिधि प्रिये।। 9 ।। जयति कंचन दिव्य

निताई चाँद

अपने इष्ट देव दीक्षा गुरु श्रीमन्ननित्यानन्द राय के चरणों में नमस्कार करता हूँ, क्योंकि की कृपा से ही श्रीचैतन्यदेव के नाम गुणगान की स्फूर्ति होती है।  उन श्रीबलराम प्रभु की मैं वन्दना करता हैं। उनकी वन्दना एवं कृपा प्राप्ति से ही श्रीकृष्णचैतन्य गुण- कीर्तन की स्फूर्ति सम्भव है, क्योंकि उनके हजारों मुख ही श्रीकृष्ण नाम गुण कीर्ति के भण्डार हैं। वे नित्य नवीन नाम गुणों का गान करते रहते हैं। उसी प्रकार वही श्रीसंकर्षण श्रीनिताईचाँद अनन्तदेव के रूप में श्रीश्रीकृष्णाचैतन्यदेव के नाम गुण लीलाओं का नित्य नवीन गान करते रहते हैं। अतः उनकी कृपा से ही श्रीकृष्णचैतन्य नाम गुणगान की रति सम्भव है, अन्यथा नहीं। जैसे बहुमूल्य रत्न को परम गुप्त आत्मीय स्थान पर रखा जाता है, उसी प्रकार श्रीमहाप्रभु ने अपने नाम गुण कीर्तन रुप महारत्न को अपने परम आत्मीय अपने प्रिय श्रीअनन्तदेव के मुख में सुरक्षित रखा है, जो श्रीनिताई चाँद के अंश हैं। अतः श्रीनिताई चाँद की कृपा के बिना श्रीकृष्ण-नाम गुण गान रूप महारत्न की प्राप्ति नहीं हो सकती।      🌹 श्रीवृन्दावदास ठाकुर महाशय ने यह भी वर्णन किया है कि जो श्रीनिताईचा

कबे गौर वने

कबे गौर-वने कबे गौर-वने, सुरधुनी-तटे, ‘हा राधे हा कृष्ण’ बोले’। काँदिया बेडा’ब, देहसुख छाड़ि’, नाना लता-तरु-तले।।1।। श्वपच-गृहेते, मागिया खाइब, पिब सरस्वती-जल । पुलिने-पुलिने, गडा-गडी दिबो, कोरि’ कृष्ण-कोलाहल।।2।। धामवासी जने, प्रणति कोरिया, मागिब कृपार लेश । वैष्णव-चरण-रेणु गाय माखि’, धरि’ अवधूत-वेश।।3।। गौड़-ब्रज-जने, भेद ना देखिब, होइब ब्रज-बासी । धामेर स्वरूप, स्फुरिबे नयने, होइब राधार दासी।।4।। 1. ओह! वह दिन कब आयेगा जब मैं सब प्रकार के शारीरिक सुखों का त्याग करके नवद्वीप धाम में गंगाजी के किनारे ‘‘हे राधे! हे कृष्ण!’’ पुकारते हुए लताओं और वृक्षों के नीचे भ्रमण करूँगा? 2. मैं चाण्डाल के घर से भिक्षा माँगकर अपना जीवन निर्वाह करूँगा और सरस्वती नदी का जल पीऊँगा। नदी के एक तट से दूसरे तट तक आनन्द में मैं लोट-पोट होता हुआ उच्चस्वर में ‘‘कृष्ण! कृष्ण!’’ का कीर्तन करूँगा। 3. मैं समस्त धामवासियों को प्रणाम करके उनकी कृपा के एक बिन्दु की याचना करूँगा। मैं वैष्णवों की चरणधूलि अपने पूरे शरीर पर मलूँगा और एक अवधूत का वेश धारण करूँगा। 4. अहो! कब मैं नवद्वीप और वृन्दावनवासियों

रसिकानन्द प्रभु वंशज श्यामानन्द प्रभु

गौड़ीय महात्मा पूज्यपाद श्री रासिकानंद प्रभु के वंशज पूज्यपाद श्री कृष्ण गोपालानंद जी द्वारा श्यामानंद चरित्र और श्री हित चरण अनुरागी संतो द्वारा व्याख्यान ,आशीर्वचनों  पर आधारित  । कृपया अपने नाम से प्रकाशित न करे । भाग १ जन्म और बाल्यकाल : श्री गौरसुन्दर चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं और संप्रदाय के प्रचार हेतु गौड़ीय संप्रदाय में अनेक सिद्ध संतो का प्राकट्य हुआ है । श्री श्यामानंद प्रभु का जन्म सन् १५३५ ई को चैत्र पूर्णिमा के दिन पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के अंतर्गत धारेंदा बहादुरपुर ग्राम में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री कृष्ण मंडल और माता का नाम दुरिका देवी था । इनके पिता श्री कृष्ण मंडल का जन्म छः गोपो के वंश में हुआ था  । इनके बहुत से पुत्र और पुत्रियां थी परंतु धीरे धीरे वे सब श्यामानंद प्रभु के जन्म से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए अतः श्री कृष्ण मंडल ने अपने इस पुत्र (श्यामानंद प्रभु ) का नाम दुखी रख दिया । सभी ज्योतिष के ज्ञाता और संत उस बालक को देखकर कहते थे की यह अवश्य कोई महान संत होगा । देखने में यह बालक ऐसा सुंदर था की जो भी उसे देखता वह देखता ही रह जाता । धीरे धी