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Showing posts from February, 2021

झंकार यशजु

मेरी साँसों में महकती उनकी साँसों की वो घुलती मिठास का महकता एहसास आज भी याद है। उनकी श्री अंग की कांति से खिलती किरणों की रोशनी से बहती हवाओ में बिखरी उनकी शीतल मदहोश करती उनकी महक आज भी याद है। काले घटा से भी कारी उनकी भीगी हुए केश रोम कूपों से रिश्ता वो स्वेद जैसे सावन में झूमती बदरा का झूम के बारिश की बूंदों के साथ इठलियाँ करना। मेरी सांसो की झंकार हो तुम मेरा सोलह श्रृंगार हो तुम मेरी आँखों का इन्तेजार हो तुम मेरा ईमान मेरी शान मेरा मान हो तुम थोड़े बेईमान हो तुम, थोड़े नादान हो तुम थोड़े शैतान हो तुम। हाँ मगर ये सच है मेरे भगवान हो तुम।। मेरे बस मेरे गौर

भाव यशजु

भाव!!! क्या है यह भाव, क्या छुपा है इस शब्द में, क्यों इस शब्द की भक्ति मार्ग के इतनी महत्ता है??? भाव वैसे तो अनेक प्रकार का होता है परंतु निर्भर करता है कि यह किसका और कबका है। निज भाव दुसरो पर व्यक्त करना कोरी मूर्खता के सिवा कुछ नही। निज भाव निज ही होता है जो ईस्ट देव कृपा से सुलभ होता है। किसी के भाव मे प्रवेश कर उसके संग रहा तो जा सकता किन्तु उस भाव मे जीया नही जा सकता। उस भाव मे तो उसका जीना तभी संभव जब उड़ भाव की कृपा जीव पर पूर्ण रूप से हो। भाव जब तक पूर्ण न होता तब तक वो सिद्ध नही होता और बिना सिद्ध हुए भाव के लीला आस्वादन प्राप्ति असंभव है। लीला का आस्वादन मुख्य रूप से भाव पर ही निर्भर करता है।  हमारे निज भाव को संसार भर ने सुना है कुछ ने रूपांतरण भी किया है कुछ ने इसको अपनाया भी है तो कुछ ने इसको मार्ग बना कर प्रेम प्राप्ति का साधन भी बनाया है, किन्तु सत्यता तो यह है कि बिना हमारी इच्छा के हमारे इस भाव को कोई भी जी नही  सकता, यह हमरा निज भाव है इसको समझना एक पल को आसान हो भी सकता किन्तु इसमें जीना खो जाना सिर्फ हमको ही प्राप्त है जिसके दुबारा रसास्वादन हेतु हमको भाव रूप से प

नाम जप

बड़े से बड़े शुभकर्म में भी इतनी सामर्थ्य नही की वह हमें प्रभु की प्राप्ति करा सके। प्रभु की प्राप्ति कराने में उनका नाम ही समर्थ है। जिनको भी हम महापुरुष मानते है ऐसे जिन भी सन्त से अगर उनके हृदय की बात पूछो तो वे एकमात्र नाम जपने को कहते है क्योकि उनका काम भी नाम से ही बना है। इसलिए *सबका सार है निरन्तर नामजप करना*। और कोई साधन बने तो ठीक है, न बने तो आवश्यक नही है। *एकमात्र नाम जप से ही सब काम बन जायेगा*। नाम जप करोगे तो इष्ट की सेवा हो जाएगी। नामजप करोगे तो जहाँ आप सोच भी नही सकते हो उस प्रेम देश मे आपका प्रवेश हो जाएगा।  जब तक नामजप नही होगा तब तक इस माया पर विजय प्राप्त नही होगी औऱ यदि नामजप हो रहा है तो डरने की जरूरत नही है। वह नाम अपने प्रभाव से समस्त वासनाओं को नष्ट कर देगा। आप निरन्तर नामजप में लगे रहिए। जब नाम का प्रभाव हृदय में उदय होगा तो आपको ऐसा बल ऐसा ज्ञान कि आप माया में फँसेंगे ही नही *अतः आप एक एक क्षण नामजप में लगावें , सब शास्त्रों एवं समस्त सिद्धान्तों की ये सार बात है।।* *रसिक सन्त परम पूज्य*  *श्रीहित प्रेमानन्द गोविंद शरण जी महाराज*