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Showing posts from November, 2017

रोना तो भगवान के लिए

रोना हीं तो भगवान के लिए ही रोयें..... हरिबाबा से एक भक्त ने कहाः "महाराज ! यह अभागा, पापी मन धन दौलत के लिए तो रोता पिटता है लेकिन भगवान् अपनी आत्मा हैं, फिर भी आज तक नहीं मिली इसके लिए रोता नहीं है। क्या करें ?" हरिबाबाः "रोना नहीं आता तो एक बार झूठमूठ में ही रो ले।" "महाराज ! झूठमूठ में भी रोना नहीं आता है तो क्या करें ?" महाराज दयालु थे। उन्होंने भगवान के विरह की दो बातें कहीं। विरह की बात करते-करते उन्होंने बीच में ही कहा कि "चलो, झूठमूठ में रोओ।" सबने झूठमूठ में रोना चालू किया तो देखते-देखते भक्तों में सच्चा भाव जग गया। झूठा संसार सच्चा आकर्षण पैदा करके चौरासी के चक्कर में डाल देता है तो भगवान के लिए झूठमूठ में रोना सच्चा विरह पैदा करके हृदय में प्रेमाभक्ति भी जगा देता है। अनुराग इस भावना का नाम है कि "भगवान हमसे बड़ा स्नेह करते हैं, हम पर बड़ी भारी कृपा रखते हैं। हम उनको नहीं देखते पर वे हमको देखते रहते हैं। हम उनको भूल जाते हैं पर वे हमको नहीं भूलते। हमने उनसे नाता- रिश्ता तोड़ लिया है पर उन्होंने हमसे अपना नाता- रिश

नरोत्तम प्रार्थना 47

॥ श्री राधारमणो जयति ॥        🔺॥ जय गौर ॥🔺  श्री नरोत्तम प्रार्थना-(2 ) (47)  प्रार्थना :- ------------ हरि हरि ! कि मोर करम अति मन्द।    ब्रजे राधाकृष्ण पद , ना सेविनु तिल आध ,     ना बुझिनु रागेर सम्बन्ध ॥ स्वरूप सनातन रूप , रघुनाथभट्ट युग,     भूगर्भ श्री जीव लोकनाथ ।   इहाँ सबार पाद-पद्म, न सेविनु तिल आध ,     किसे मोर पुरिवेक साध ॥ कृष्णदास कविराज रसिक भकत माझ ,      जे रचिल चैतन्य चरित । गौर गोबिन्द लीला , शुनये गलये शिला ,      ना डुबिल ताहे मोर चित ॥ ताहार भक्तेर संग , तार संगे जार संग ,      तार संगे नैल केन वास ।    कि मोर दुःखेर कथा , जनम गोङानु वृथा ,     धिक् धिक् नरोत्तम दास ॥ ♻ शब्दकोश :- ------------- तिल आध - -आधा क्षण भी बुझिनु - -समझना सबार - - सब किसे -- कैसे पुरिवेक -- पूर्ण होगी माझ -- मध्य में गलये --पिघलना डुबिल --आसक्त और रूचि होना गोङानु -- गँवा देना  अनुवाद :- -------------- ♻ हे हरि ! हाय !! मेरे कैसे मन्द भाग्य है !!!  ब्रजबिहारी श्री राधाकृष्ण के चरणों की सेवा मैं आधा क्षण भी नहीं कर सका और उनके प्रति जो रागानुग

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A3नरोतम 3  प्रार्थना :- -------------  राधाकृष्ण निवेदन एई जन करे।    दोंह अति रसमय , सकरूण ह्रदय ,     अवधान कर नाथ मोरे । हे कृष्ण गोकुलचन्द्र, हे गोपी प्राणवल्लभ     हे हे कृष्ण प्रिया शिरोमणि ।   हेन गौरी श्याम गाय , श्रवणे परश पाये,    गुण शुनि जुड़ाय पराणी ॥ अधम दुर्गति जने , केवल करूणा मने,      त्रिभुवने ए यश खेयाति ।    शुनिया साधुर मुखे , शरण लईनु सुखे ,     उपक्षिले नाहि मोर मति ॥ जय राधे जय कृष्ण, जय जय राधेकृष्ण,     कृष्ण कृष्ण जय जय राधे ।    अञ्जलि मस्तके धरि, नरोत्तम भूमे परि,    कहे दोंहे पुराओ साधे ॥ ♻ शब्दकोश :- -------------- अवधान - ध्यान करो परश -स्पर्श पाना (यहां - श्रवण से ) जुड़ाय - शीतलता प्राप्त करनी पुराओं -पूर्ण करो  अनुवाद :- -------------- ♻ हे हे श्रीराधा कृष्ण ! मैं आपके समक्ष एक निवेदन करता हूँ....... आप दोनों अति रसमय हैं , और आप दोनों का ही ह्रदय अतिशय करूणा से पूरित है , हे नाथ !! मेरी ओर थोड़ा ध्यान दीजिये । ♻  हे गोकुल चन्द्र श्रीकृष्ण ! हे गोपीजन -प्राणवल्लभ !! हे हे श्रीकृष्ण- कान्ता- शिरोमणि श्रीराधे !!! हे हे

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 7 श्री नरोत्तम प्रार्थना (    प्रार्थना :- ------------- प्राणेश्वर निवेदन एइ जन करे ।   गोविन्द गोकुलचन्द्र ,परम आनन्द कन्द   गोपीकुल प्रिय देख मोरे ॥ तुया प्रिय पदसेवा , एई धन मोरे दिवा ,     तुमि प्रभु करूणार निधि ।     परम मंगल यश, श्रवणे परम रस ,     कार किंवा कार्य्य नहे सिद्धि ॥ दारूण संसार गति ,विषयेते लुब्ध मति,    तुया विस्मरण शेले बुके ।    जर जर तनु मन , अचेतन अनुक्षण ,    जीयन्ते मरण भेल दु:खे ॥  मो बड़ अधम जने ,कर कृपा निरीक्षणे,      दास करि राखे वृन्दावन ।     श्रीकृष्णचैतन्य नाम , प्रभु मोर गौर धाम ,     नरोत्तम लइल शरणे ॥ ♻ शब्दकोष :- -------------- एइ जन - यह जीव ( मैं) तुया - आपकी कार किंवा -किस प्रकार किसके दारुण - कठिन विस्मरण - प्रभु को भूलना शेल - काँटा बुके -ह्रदय भेल- समान  अनुवाद :- ------------- ♻ नरोत्तम ठाकुर कहते है ," हे प्राणेश्वर ! मुझ दास का यह निवेदन सुनिए । हे गोविन्द गोकुलचन्द्र ! हे परम आनन्दकन्द ! हे गोपीजन प्रिय ! मेरी ओर एक बार देखो तो सही !!! ♻ अपने चरणों का सेवा -धन मुझे दीजिये , आप तो प्रभो ! करूण

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 33श्री नरोत्तम प्रार्थना - ( 33 )  प्रार्थना :- ----------- प्राणेश्वरी ! एइबार करूणा कर मोरे । दशनेते तृण धरि, अञ्जलि मस्तके धरि, एइजन निवेदन करे ॥ प्रिय सहचरी संगे, सेवन करिब रंगे , अंगे वेश करिबेक साधे । राइ एइ सेवा काजे , निज पद पंकजे , प्रिय सहचरी गण माझे ॥ सुगन्धि चन्दन , मणिमय आभरण , कौषिक वस्त्र नाना रंगे । एइ सब सेवा जाँर , जेन हङ ताँर , अनुक्षण थाकि ताँर संगे ॥ जल सुवासित करि , रतन भृंगारे भरि , कर्पूर वासित गुया पान । ए सब साजाइया डाला , लवंग मालती माला , भक्ष्य द्रव्यनाना अनुपाम ॥ सखीर इंगित हबे , ए सब आनिया कबे , योगाइव ललितार काछे । नरोत्तमदास कय , एइ जेन मोर हय , दाँड़ाइया रहु सखीर पाँछे ॥ ♻ शब्दकोष :- ------------- दशनेते - दाँतों में माझे - मध्य में आभरण - आभूषण भृंगारे - झारी अनुपाम - अनूठे दाँड़ाइया - अवस्थान करना  श्री युगल-किशोर की सेवा प्राप्ति ही भक्ति का प्राण है । नरोत्तम ठाकुर अपने मञ्जरी स्वरूप से श्री प्रियाजी से सेवा लालसा की याचना कर रहे है ।  अनुवाद :- ------------ ♻ हे प्राणेश्वरी श्री राधिके ! इसी जन्म मे

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A2 28श्री नरोत्तम प्रार्थना - ( ) ( 73 )  प्रार्थना :- -----------  राधाकृष्ण प्राण मोर युगल किशोर ।      जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥  कालिन्दी कूले केलि कदम्बेर वन ।      रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥ श्यामगौरी अंगे दिव चन्दनेर गन्ध ।     चामर ढुलाब कबे हेरिब मुख चन्द्र ॥ गांथिया मालतीर माला दिव दोंहार गले ।       अधरे तुलिया दिव कर्पूर ताम्बूले ॥ ललिता विशाखा आदि जत सखीवृन्द ।      आज्ञाय करिव सेवा चरणारविंद ॥  श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।       सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥ ♻ शब्दकोष :- -------------- कालिन्दीर -  यमुना बसाब - बसाऊँगा हेरिब - स्नेह से निहारना इस पद में  भी नरोत्तम ठाकुर ने अपनी सिद्ध देह " चम्पक मञ्जरी " से श्री राधा कृष्ण से नित्य सेवा की प्रार्थना की है । यह प्रार्थना किसी भी वैष्णव भक्त के अन्तर्मन की पुकार भी है , स्वप्न भी है , गति भी और जीवन का लक्ष्य भी !!!!! आईये हम भी परम सिद्ध नरोत्तम ठाकुर के आश्रय में इस आलौकिक भाव स्थिति को ग्रहण करे और इस प्रार्थना का गान करे !!!  अनुवाद :- ---------------- ♻चम्पक मञ्

अनुपम माधुरी जोड़ी

अनुपम माधुरी जोड़ी, हमारे श्याम श्यामा की, रसीली मद भरी मस्ती, हमारे श्याम श्यामा की ॥ कटीली भौंह, अदा बाँकी, सुघड़ सूरत, मधुर बतिया, लटक गरदन की मन बसिया, हमारे श्याम श्यामा की ॥ परस्पर मिलके जब विहरें, श्री वृन्दाावन के कुँजन में, नहीं वर्णत बने शोभा, हमारे श्याम श्यामा की ॥ मुकुट और चंद्रिका माथे, अधर पर पान की लाली, अहो कैसी बनी छबि है, हमारे श्याम श्यामा की ॥ नहीं कछु लालसा मन में, नहीं निर्वाण की इच्छा, सखी स्यामा मिले सेवा, हमारे श्याम श्यामा की ॥

प्रियतम वंशिका

एक दासी थी सबसे क्यों अलग,मैं देखता ही रह गया !प्रियतम🌿 निर्झर अश्रु में डूबी हुई, थी प्रेम की माला गुथी!प्रियतम🌿 मन में बैठा चित्तचोर बसा,वो तुम्हीं थे मेरे!प्रियतम🌿 वंशिका मन पल पल पुकार उठे,"मेरा युगल सुखी हो सदा"!प्रियतम🌿 दासी की बात सुनाऊँ क्या,है प्यार बड़ा मधुरम!प्रियतम🌿 दी प्यार में सार कुछ ही ऐसा, प्रेम में त्याग दिखा !प्रियतम🌿 त्याग हुआ कुछ ऐसा भी ,देख लगा असम्भव !प्रियतम🌿 वो(वंशिका)बोल उठी सुंदर सा वचन,"मिलन युगल का"मधुर!प्रियतम🌿 सुना प्रेम अश्रु देता,विरह की अग्नि बड़ी !प्रियतम🌿 दासी की आँसू बनी अमृत,थे युगल बसे उसमे !प्रियतम🌿 जो पान किया रसखान बना,रस की खान तुम्हीं !प्रियतम🌿 वंशिका ने सुनाया स्वर सुंदर"युगल मिलन हो सदा"प्रियतम🌿

महामन्त्र

🙏🏼🙏🏼🙏🏼🌸🌷🌷🌸🙏🏼🙏🏼🙏🏼 ❥.• ❤️ •.॥श्रीकृष्ण शरणम् मम ॥.• ❤️ •.❥                     ♡ राधे राधे ♡                 卐....जय श्री कृष्ण.....卐 *।। जय श्री कृष्णा ।।*।। राधे राधे ।। *सुप्रभात।।—* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* 🌷 *‘हरे’ का अर्थ है–* सर्वचेतोहर: कृष्णनस्तस्य चित्तं हरत्यसौ– सर्वाकर्षक भगवान् कृष्ण के भी चित्त को हरने वाली उनकी आह्लादिनी शक्तिरूपा ‘हरा’ अर्थात– श्रीमती राधिका| 🌷 *‘कृष्ण’ का अर्थ है–* स्वीय लावण्यमुरलीकलनि:स्वनै:– अपने रूप-लावण्य एवं मुरली की मधुर ध्वनि से सभी के मन को बरबस आकर्षित लेने वाले मुरलीधर ही *‘कृष्ण’* हैं| 🌷 *‘राम’ का अर्थ है-* रमयत्यच्युतं प्रेम्णा निकुन्ज-वन-मंदिरे– निकुन्ज-वन के श्रीमंदिर में श्रीमती राधिका जी के साथ माधुर्य लीला में रमण करते करने वाले *राधारमण* ही *‘राम’* हैं| ; 🌷 *प्रमाण: --* हरेकृष्ण महामंत्र कीर्तन की महिमा वेदों तथा पुराणों में सर्वत्र दिखती है| कलिकाल में केवल इसी मन्त्र के कीर्तन से उद्धार संभव है| *अथर्ववेद की अनंत संहिता में आता है–* षोडषैतानि नामानि द्

महामन्त्र महिमा

*हरे कृष्ण महामंत्र की महिमा* कलियुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल किंतु प्रबल साधन उनका नाम-जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत का कथन है-" यद्यपि कलियुग दोषों का भंडार है तथापि इसमें एक बहुत बडा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान (तप) द्वारा, त्रेतायुग में यज्ञ-अनुष्ठान के द्वारा, द्वापरयुगमें पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलियुग में वह पुण्यफल श्री हरिके नाम-संकीर्तन(हरे कृष्ण महामंत्र) मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। कृष्णयजुर्वेदीय कलिसंतरणोपनिषद् मे लिखा है कि द्वापरयुगके अंत में जब देवर्षिनारद ने ब्रह्माजीसे कलियुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा- आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलियुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारदजीके द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्यगर्भ ब्रह्माजीने बताया- हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह महामंत्र कलि के पापों का नाश करने वाला है। इससे श्रेष्ठ कोई अन्य उपाय सारे वेदों में भी देखने को नहीं आता। हरे कृष्ण महामंत्र के द्वारा षोडश(16) कला