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Showing posts from January, 2018

श्यामसुंदर नर्तकी वेश

*श्याम सुंदर कवियित्री वेश* एकबार श्याम सुंदर श्यामांगी कवियित्री का वेश धरकर श्री राधारानी से मिलने पहुंचे कवियित्री वेश में श्याम सुंदर बोले-"हे गुणनिधे!आप सकल कला पारंगत हो आपकी प्रशंसा सुनकर मैं दूर मथुरा से आई हूं उज्जयिनी के परम विद्वान से मैंने काव्यशास्त्र का अध्ययन किया है मेरे श्री गुरुदेव भी मुझसे सदा प्रसन्न रहते हैं परन्तु मेरे मनमे एक ग्लानि है" श्री राधारानी ने कहा-"कहो क्या ग्लानि है" कवियित्री-"रानी!मुझे केवल एक ही ग्लानि है,मेरे काव्यशात्र को यथार्थ में समझे ऐसा कोई मुझे आजतक मिला नही मैंने आपकी कीर्ति सुनी है,रस शास्त्र में,भाषा शास्त्र में आप बेजोड़ हैं बस अपनी कुछ रचनाएं सुनाना चाहती हूं" राधारानी ने मुस्कुराकर अनुमति देदी तब कवियित्री वेश धारी श्याम सुंदर ने अद्भुत रस सिक्त कविता सरिता से सभी को आप्लुत कर दिया एक तो कविता की अपूर्व रचना,तिस पर विषय माधुर्य सिंधु श्री राधा श्याम सुंदर का अपूर्व केली विलास कविताओं को सुनकर सखियों में सात्विक भाव उदय हो गए हिरणीयां अपने पतियों के संग स्तम्भित हो श्याम सुंदर की वाणी सुधा का

आनन्दीबाई

गोकुल के पास ही किसी गाँव में एक महिला थी जिसका नाम था आनंदीबाई। देखने में तो वह इतनी कुरूप थी कि देखकर लोग डर जायें। . गोकुल में उसका विवाह हो गया, विवाह से पूर्व उसके पति ने उसे नहीं देखा था। विवाह के पश्चात् उसकी कुरूपता को देखकर उसका पति उसे पत्नी के रूप में न रख सका एवं उसे छोड़कर उसने दूसरा विवाह रचा लिया। . आनंदी ने अपनी कुरूपता के कारण हुए अपमान को पचा लिया एवं निश्चय किया कि ‘अब तो मैं गोकुल को ही अपनी ससुराल बनाऊँगी।’ . वह गोकुल में एक छोटे से कमरे में रहने लगी। घर में ही मंदिर बनाकर आनंदीबाई श्रीकृष्ण की भक्ति में मस्त रहने लगी। . आनंदीबाई सुबह-शाम घर में विराजमान श्रीकृष्ण की मूर्ति के साथ बातें करती, उनसे रूठ जाती, फिर उन्हें मनाती…. और दिन में साधु-सन्तों की सेवा एवं सत्संग-श्रवण करती। . इस प्रकार कृष्ण भक्ति एवं साधु-सन्तों की सेवा में उसके दिन बीतने लगे। .. एक दिन की बात है गोकुल में गोपेश्वरनाथ नामक जगह पर श्रीकृष्ण-लीला का आयोजन निश्चित किया गया था। उसके लिए अलग-अलग पात्रों का चयन होने लगा, पात्रों के चयन के समय आनंदीबाई भी वहाँ विद्यमान थी। . अंत में कु

5 अधूरी

*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत* *जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*              भाग 5 *गौरविरहिणी विष्णुप्रिया* महाप्रभु ने अबला विष्णुप्रिया को पलँग पर सोती छोड़कर चुपके से गृहत्याग किया था । उस रात्रि के दो दण्ड रहते जब प्रिया जी की नींद टूटी तो अपने प्राणवल्लभ को शैया पर न पाकर उन्होंने व्यथित होकर पलँग पर इधर उधर हाथ फेरकर देखा कि उनके प्राणवल्लभ शैया पर नहीं हैं । वे रुदन करती हुई कहने लगीं - हा हा प्राणनाथ छाड़ि गेले हे नदिया। अनाथिनी विष्णुप्रियाय निठुर हईया।। सखी कंचनमाला ने उन्हें संभाला। उनके शरीर मे प्राणों का संचार रुक गया । काँचना का गला छोड़कर प्रिया जी भूतल पर गिर पड़ी । उनका सर्वांग थर थर कांपने लगा, केश बिखर गए, सोने के अंग धुली धूसरित हो गए।शचीमाता तथा सभी भक्त भी हाहाकार करने लगे। पशु पक्षी , जीव जंतु पर्यंत गौर विरह में रो रहे हैं।   नदिया के समस्त भक्तगण उपवासी रह गए। किसी के भी घर में हांडी न चढ़ी।सभी वैष्णव गृहणियां जो मैया तथा प्रिया जी को सांत्वना देने आई थी लौटकर ही न गयी। लौटती भी तो कैसे ? मातृ हृदय का विलाप देख उनका कोमल हृदय चूर चूर हो रहा था । उस रात्रि वे

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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत* *जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*              भाग 4    *विष्णुप्रिया का नकवेसर खोना* एक दिन प्रातः काल श्रीमती विष्णुप्रिया के गंगास्नान के समय उनके कान का आभूषण जल में गिर गया। घ्र आकर वे रोने लगीं । उनके मुख से कोई बात नहीं निकल रही थी। घबराकर माँ ने जिज्ञासा की - बहू तुम क्यों रो रही हो ? मेरी सोने की बिटिया !बोलो तुम्हें क्या दुख हो रहा है। प्रिया जी बोली - मां स्नान करते समय मेरा नकबेसर जल में कहीं खो गया है।मेरी दाहिनी आंख फड़क रही है और आते समय मेरी दाईं ओर सर्प निकल गया । माँ मुझे चारों ओर से अमंगल के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इतना कहकर विष्णुप्रिया फूट फूटकर रोने लगी। शची माता ने पुत्रवधु को सांत्वना दी। किंतु स्वयं दुख सागर में डूब गई कि क्या मेरा निमाई मेरी सोने जैसी विष्णुप्रिया और मुझे अनाथिनी बनाकर चला जायेगा? मेरी बहु तो साक्षात लक्ष्मी है। कभी भी वह थोड़े से दुख को मुझे नहीं बताती है। अवश्य ही उस पर कोई भारी दुख आन पड़ा है।   *गृहत्याग की तैयारी* माघमास के उत्तरायण संक्रांति के दिन रात्रि के अवसान में श्रीनवद्वीपचन्द्र ने सन्यास के लिए नवद्

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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत* *जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*              भाग 3        श्रीमती विष्णुप्रिया जी कहती हैं - तुम्हारे वियोग में तुम्हारी माँ प्राण त्याग देंगी। ऐसी माता का आप त्याग कैसे करेंगें।श्रीआचार्य जी, हरिदास,मुरारी, मुकुन्द आदि भक्तगण को छोड़कर तुम सन्यास कैसे ग्रहण करोगे । वे भी तुम्हारे विरह में प्राण त्याग देंगे।प्रिया जी महाप्रभु जी के श्रीचरणों को पकड़ कर रो रही हैं। महाप्रभु जी ने उनके मस्तक पर हाथ फेरते हुए कहा - प्रिये!तुम वृथा शोक क्यों कर रही हो? मैं जो कुछ भी करूंगा तुम्हारी अनुमति लेकर ही करूंगा।   यधपि श्रीगौरसुन्दर का हृदय कृष्णविरह से दुखी है , किंतु प्रिया जी के सुख  के लिए उन्होंने ऐसा कहा।। प्रिया जी के लिए तो महाप्रभु जी ही उनके जीवन सर्वस्व हैं। चूंकि स्त्री का पति ही उसके लिए सब कुछ होता है।उसका सँग सुख , सेवा सुख , नारी के लिए स्वर्गसुख से भी बढ़कर होता है। विष्णुप्रिया जी भी अपने पति का सुखद सँग त्याग नहीं कर पा रही हैं। चूंकि पति परमेश्वर की सेवा से इस लोक में और परलोक में नारी का बहुत सम्मान होता है।    इधर श्रीगौरसुन्दर प्रिया जी को समझ

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*श्रीश्री निताई गौर लीलामृत* *जय जय श्री विष्णुप्रिया गौरांग*              भाग 2 *सन्यास की भूमिका* गौरहरि श्रीवास पंडित के ग्रह में पधारे और उनसे कहे - हे प्रिय श्रीवास !मुझे सन्यास की अनुमति दो । तुम्हारे लिए मैं प्रेमधन कमाकर लाऊंगा। श्रीवास बोले - प्रभो ! आपके बिना हमारा जीवित रहना असम्भव है। धनोपार्जन के लिए बाहर गया व्यापारी धन कमाकर सम्बन्धियों को तभी देगा जब वो उसे जीवित मिलें। किंतु हे प्रभु !आपके वियोग में हमारे प्राण नहीं बचेंगे । इतना कहकर श्रीवास रो पड़े । महाप्रभु चुपचाप मुरारी गुप्त के घर में पधारे। मुरारी गुप्त उनका संकल्प सुनकर दुखी होकर बोले प्रभु !आपने हृदय में अनुराग रूपी बीज को रोपण करके प्रेमजल से सींचकर इसे पाला , इसकी रक्षा की । सबको इसका आस्वादन करवाया , अब जब पूरा नवद्वीप इस प्रेमफल का आस्वादन कर रहा है तब आप इसे उखाड़कर चले जा रहे हैं। याद रखें प्रेमफल के बिना नदियावासी भूखे प्यासे मर जायेंगे। प्रभु मैं जीवित नहीं रहूंगा , कहकर मुरारी गुप्त फूट फूट कर रोने लगे। गौरसुंदर की वाणी सुनकर मुकुन्द भी क्रोध भरी वाणी में बोले , प्रभु !मेरा शरीर जल रहा है , किंतु प