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Showing posts from November, 2016

धैर्य और उत्साह

-- धैर्य और उत्साह – हमारी सफलता की कुंजी -- हमें धैर्य एवं उत्साहपूर्वक भक्ति करनी चाहिए । उत्साहात् निश्चयात् धैर्यात् तत्-तत् कर्म प्रवर्तनात् (श्री उपदेशामृत श्लोक -३) । हमें उत्साही होना चाहिए कि, “मुझे स्वयं को कृष्ण भावनामृत आंदोलन में में पूर्णतया रत करना है ।” उत्साह, यह प्रथम योग्यता है । सुस्ती आपकी कोई सहायता नहीं करेगी । आपको बहुत उत्साही होना होगा । मेरे गुरु महाराज कहा करते थे, “प्राण आछे यांर सेइ हेतु प्रचार ।” वह व्यक्ति प्रचार कर सकता है जिसमे प्राण हैं । एक मृत व्यक्ति ही प्रचारक नहीं बन सकता । आपको उत्साही होना चाहिए कि, “मुझे अपनी श्रेष्टतम सामर्थ्य से भगवान् कृष्ण की महिमाओं का प्रचार करना है ।”  ऐसा नहीं है कि प्रचार करने के लिए किसी को बहुत विद्वान बनना होगा । केवल उत्साह की आवश्यकता है: मेरे भगवान इतने महान हैं, इतने दयालु, इतने सुन्दर, इतने अद्भुत हैं, इसलिए मुझे उनके विषय में कुछ बोलना चाहिए ।” यही योग्यता है, उत्साह । आप कृष्ण को पूर्ण रूप से नहीं जानते । कृष्ण को पूर्ण रूप से जानना संभव नहीं है । कृष्ण असीमित हैं । हम कृष्ण को शत-प्रतिशत नहीं नहीं जान सक

श्री धाम देव स्तोत्रम्

श्रीश्रीप्रेम धाम देव स्त्रोत्रम् (विष्णुपाद श्रील भक्तिरक्षक श्रीधर देव गोस्वामी द्वारा रचित)         1 देवताओं ,सिद्धों,मुक्तों.योगियों और भगवद्भक्तगण सर्वदा जिनकी वन्दना कर रहे हैं तथा जो (ईश विमुखता रूप ) अपकर्म से उदित (भुक्ति मुक्ति सिद्ध कामना जनित)त्रिताप ,विश्व दावाग्नि को दूर करने वाला ,श्री कृष्ण नाम रूप सुधा भण्डार का निज_ नाम _धन्य दान_सागर_स्वरुप हैँ (सुधाकर का जन्म क्षीर सागर से है )_वही देवता प्रेममय मूर्ति श्री गौरांसुन्दर की मैं वन्दना करता हूँ ||1|| 2 कोटि काँचन वर्ण तेजोमय दर्पण की भांति (जिसमें प्रतिफलन लक्षित है )जिनके श्री अंग सौंदर्य की महिमा (पृथ्वी के)पदम् और (स्वर्ग के)परिजात गन्ध मूर्तिमान होकर जिनके श्री अंग सौरभ की वन्दना कर रहे हैँ,एवम् कोटि कोटि कन्दर्प जिनके श्री रूप के चरणकमलों में (अपने विश्वप्रसिध् रूप के अभिमान में अतितीव्र आघात में)मूर्छित होकर गिरे _वही देवता प्रेममय गौरांग सुंदर की मैं वन्दना करता हूँ।। 2।। 3 पंचम पुरुषार्थ श्री कृष्ण प्रेम व उन्हीं का अभिन्न साधन स्वरुप श्रीकृष्णनाम वितरण करने के लिए जिन्होंने पञ्चतत्वात्मक अपना स्वरूप्

प्रभु को पकड़ना

*वाणी से प्रभु को पकड़ना* प्रभु के नाम एवं मन्त्र का जाप, प्रभु के गुण और स्तोत्रों का पठन-पाठन, उनके नाम और गुणों का कीर्तन, प्रभु के नाम, रूप, गुण, प्रेम और प्रभाव का विस्तार पूर्वक उनके भक्तों में वर्णन करना, परस्पर भगवत-विषयक ही चर्चा करना, विनयपूर्वक सत्य और प्रिय वचन बोलना इत्यादि जो प्रभु के अनुकूल वाणी का व्यवहार करना है वह वाणी द्वारा प्रभु को पकड़ना है | *कर्म से प्रभु को पकड़ना* प्रभु की इच्छा एवं आज्ञानुसार निःस्वार्थभाव से केवल प्रभु के ही लिए कर्तव्यकर्मों का आचरण करना | जैसे पतिव्रता स्त्री पति के लिए ही पति के आज्ञानुसार ही काम करती है वैसे ही प्रभु की आज्ञा के अनुसार चलना | बन्दर अपने प्रभु को प्रसन्न करने के लिए जैसा नाच वह नचावे वैसा ही नाचता है | बाजीगर को खुश करने के लिए ही बन्दर नाचता है, कूदता है, खेलता है और कुतूहल करता है | हम भी तो अपने ‘बाजीगर’ के हाथ के बन्दर ही हैं, फिर वह जिस प्रकार प्रसन्न हो, वही नाच हमें प्रिय होना चाहिए | फूल तो वही जो चतुर-चिन्तामणि के चरणोंपर चढ़े, जीवन तो वही जो प्रभु के चरणों में चढ़ जाय | कपड़े की चादर को जिस प्रकार मालिक चाहे ओढ़े,

बीज मन्त्र

💥बीज मन्त्र और शरीर पर प्रभाव💥 ===================== ✍बीज मन्त्रों से अनेकों रोगों का निदान सफल होता है |आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मन्त्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण से मनन -गुंजन करने की होती है |बीज के अर्थ से अधिक आवश्यक उसका शुद्ध उच्चारण ही है |जब एक निश्चित लय और ताल से मंत्र का सतत जप चलता है तो उससे नाड़ियों में स्पंदन होता है |उस स्पंदन के घर्षण से विस्फोट होता है और ऊर्जा उत्पन्न होती है जो षट्चक्रों को चैतन्य करती है |इस समस्त प्रक्रिया के समुचित अभ्यास से शारीर में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होते और शारीर की आवश्यकता अनुरूप शरीर का पोषण करने में सहायक हारमोन आदि का सामंजस्य बना रहता है और तदनुसार शरीर को रोग से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढने लगती है | पौराणिक ,वेद ,शाबर आदि मन्त्रों में बीज मन्त्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं |उठते बैठते ,सोते जागते उस मंत्र का सतत शुद्ध उच्चारण करते रहे |आपको चमत्कारिक रूप से अपने अन्दर अंतर दिखाई देने लगेगा |यह बात सदैव ध्यान रखें की बीज मन्त्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को

श्री राधा 1008 नाम

श्री राधा 1008 नाम राधे राधे राधा रानी की जय महारानी की जय-- बोलो बरसाने वारी की जय जय जय-- राधा रानी की जय महारानी की जय--- श्री राधा-- राधे राधे🙏💞 श्री राधिका-- राधे राधे🙏💞 श्री कृष्णवल्लभा -राधे राधे🙏💞 श्रीकृष्णसंयुत्ता -राधे राधे🙏💞 श्री वृंदावनेश्वरी -राधे राधे🙏💞 श्री कृष्णप्रिया -राधे राधे,🙏💞 श्री मदनमोहिनी -राधे राधे🙏💞 श्री कृष्णकांता -राधे राधे🙏💞  कृष्णानंदप्रदायिनी -राधे राधे🙏💞 श्री यशस्वनि- राधे राधे🙏💞 श्री यशोगम्या- राधे राधे🙏💞 यशोदानंदवल्लभा -राधे राधे🙏💞 दामोदरप्रिया- राधे राधे🙏💞 श्री गोपी- राधे राधे🙏💞 गोपानंदकरी -राधे राधे🙏💞 श्रीकृष्णांङवासिनी -राधे राधे🙏💞 श्री ह्रदया -राधे राधे🙏💞 श्री हरिकांता- राधे राधे🙏💞 श्री हरिप्रिया -राधे राधे🙏💞 श्री प्रधानगोपिका -राधे राधे🙏💞 श्री गोपकन्या- राधे राधे🙏💞 त्रिलोक्यसुंदरी- राधे राधे🙏💞 वृंदावनविहारिणी- राधे राधे🙏💞 विकसितमुखाम्बुजा -राधे राधे🙏💞 गोकुलानंदकर्त्री -राधे राधे🙏💞 गोकुलानंददायिनी -राधे राधे🙏💞 श्रीगतिप्रदा -राधे राधे🙏💞 श्री गीतगम्या- राधे राधे🙏💞