विरह पद(यशु)

खत्म हो इस जिस्म का किस्सा अब, न होता इन्तेजार।।
बनाइने वाले ने कैसा बनाया इस जिसम को बेकार।।

सबकी इज्जत ढो ढो के बनाया प्रेम का व्यापार।
खुद का कभी हुआ नही चला बनमे सबका सार।।

पाखण्ड के व्यापार के सबसे अमीर व्यापारी हम। गौर कह कह सबको लूट लेते देते दिखआ ठेंगा भारी हम।।

नशा हमारी इश्क़ का, तवक्कुफ तुमहारे हाथों का। छलिया बने हो तुम, पैमाना बने हैं हम। भरता नही अब यह जिस्म किसी की प्यास से, सबकी नाकामी के जरिया बने हैं हम।

देख दिखावा इस भूय का, सबका मनवा सुखाये। मन की जाने कोई न तन का जलवा दिखाए

कलाम को अपने जिसम्म से गोत के रूह की स्याही बनानी है। अब तक जितने झूठी इज्जत कमाई सबकी सब लुटानी है।।

देख हमारी हालात को कहते रह जा चुप, जैसे तुम सोचो जैसे तुम कहो बस यह बता के करते क्यों नही चुप

कहते हैं उनके इश्क़ में बर्बाद हो गए हम, सब कुछ लुटा के उनकी शक्ल के मेहताब हो गए हम।

क्यूं छूते तुम हमको इस तरह, जब अपना बनाना ही न था।
दिखावा बना के रखा दिया जब प्रेम लुटाना ही न था

क्रोध के कोढ़ से बनी हमारे जिसम की मिट्टी, कैसे कैसे नजारे देखे और दिखाए। जिनको चाहा सब भूल कर, वो ही लौट के एक पल को न आये

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