स्त्रोतम

🌹 *पूज्यपाद श्रीसार्वभौम भट्टाचार्य कृत स्त्रोत* 🌹

*विगलित-नयन-कमल-जलधारं भूषण - नवरस - भावविकारम्।*
*गति - अतिमन्थर - नृत्यविलासंतं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।*

*चंचल-चारु-चरण-गति-रुचिरं*
*मंजीर-रंजत-पदयुग-मधुरम्।*
*चन्द्र - विनिन्दित - शीतलवदनं तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।*

*घृत-कटि-डोर-कमण्डलु-दण्डं दिव्य कलेवर-मुण्डित-मुण्डम्।*
*दुर्जन - कल्मष - खण्डन - दण्डं तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।*

*भूषण - भूरज - अलका - वलितं कम्पित-बिम्बाधरवर-रुचिरम्।*
*मलयज-विरचित-उज्ज्वल-तिलकं तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।*

  🌹 *जिनके नयन-कमलोंसे निरन्तर अश्रुधारा प्रवाहित होती रहती है, नवरस भाव-विकार जिनके श्रीअंगोंके भूषण-स्वरूप हैं और नृत्य-विलास हेतु जिनकी गति अति मन्थर है, उन शचीनन्दन  श्रीगौरहरिको प्रणाम करता हूँ।।*

  🌹 *जिनके नूपुर-शोभित श्रीचरण-यगुलकी गति अतिशय मनोहर है, उन चन्द्र-विनिन्दित सुशीतल वदन विशिष्ट शचीनन्दन श्रीगौर हरिको प्रणाम करता हूँ।।*

🌹 *जिन्होंने कटितट में (कमर में) डोर-बहिर्वास एवं हाथ में दण्ड कमण्डल धारण कर रखा है, मुण्डन किया हुआ अति भव्य जिनका मस्तक है, जो अतिशय दिव्य कलेवर विशिष्ट हैं, जिनका दण्ड दुर्जनों के पाप-समहू का खण्डनकारी है, उन शचीनन्दन श्रीगौर हरि को प्रणाम करता हूँ।।*

🌹 *जिनकी अलकावलि (नृत्यहेतु उठी) धूलिरूप भूषण-विशिष्ट है, जिनका (हरिनाम कीर्तन हेतु) कांपता हुआ बिम्ब सदृश अरुण-अधर बड़ा ही मनोहर लगता है, मलयज चन्दन द्वारा विरचित उज्ज्वल तिलकसे सुशोभित उन शचीनन्दन श्रीगौरहरिको प्रणाम करता हूँ।*

🌹 *जय जय जय मेरे गौरहरि*🌹

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