नित्यानन्द चालीसा
नित्यानन्द प्रभु चालीसा
नित्यानन्द प्रभु चालीसा
******************
जय बलराम अभिन्न निताई । जय जान्हवा पतिहि प्रभुराई ।।1।।
जय जय सेवक विग्रह रूपा। सेव्य गौर को दास अनूपा।। 2।।
जय जय नित्य गौर कउ संगी। सेवहि गौरहु नाना रँगी।।3।।
गौर कृष्ण अवतरिन मूला । आदि पुरसु विस्तारी खेला।।4।।
स्वयं रूप असि बेद बखाने। सोहि अभिन्न स्वांश उपजाने।।5।।
प्रथम अभिन्न रूप बलरामा। सेवक सेव्य एक भगवाना।।6।।
नाम रूप को भेद द्विरूपा। अन्यथा एकु तत्व अनूपा।।7।।
रूप विखंडित कबहुँ न ह्वै हैं। सचिदानन्द बेद कहहि हैं।। 8।।
नित्यानन्द विविध कर रूपा। प्रकटहि रूप अनन्त अनूपा ।।9।।
धाम सिंघासन पद कउ चौकी।मुकुट ब्रिछ उपकरण अनेकी।।10।।
सोहि राम निज रूप कु लेव्हि। सोहि राम प्रभजु के सेवहि।।11।।
सोहि प्रथम चतुर्व्यूह रूपा । करें विस्तार बहु विधि रूपा ।। 12।।
पुनि हरि कोटि चतुर्भुज रूपा।सजहिं बैकुंठ दिव्य अनूपा ।।13।।
द्वितीय चतुर्भुज सोहि रचहि । सबहि रूप ते हरि के सेवहि।।14।।
तिनिते प्रथम पुरसु अवतारा। कारन जलनिधि कीन्ह पसारा।।15।।
कोटि कोटि ब्रह्मांड अपारा।सोही राम छिद्र उपजारा।।16।।
दूसरू पुरसु सबे ब्रह्मंडा। गर्भोधिक निधि शयन करन्दा।।17।।
तिनिते प्रथम जीव उपजेहे । तिनहिं बिरंचि बेद अस कहिहै।।18।।
तीसरू पुरुसु सबे घट भीतर। क्षीरोदिक निधि शयन निरन्तर।।19।।
जब जब हरि जू लै अवतारा। तब तब सेवक रूप तोहरा।।20।।
त्रेता राम रूप अवतारा। अनुज भ्रात के रूप उपारा।।21।।
द्वापर प्रकटहि निज भगवाना। सखा भ्रात के रूप उपाना।।22।।
कलियुग प्रथम चरण जब पावहि। सो ही कृष्ण गौर बन आवहि।।23।।
कृष्ण अवतार गौर न भाई। एकहु तत्व जानिहो ताईं।।24।।
श्री के भावास्वदन हेतु।नामहिं कीर्तन वितरण हेतु।।25।।
कृष्णहु धरे गौर अवतारा। बंग माँहिं नवद्वीप पधारा।।26।।
तबही राम निताई रूपा।एकचक्र प्रकटहि अनूपा।।27।।
ताल मृदंग झांझ बजवाना। लीला के उपयोगी नाना।। 28।।
नित्यानन्द सबहि कउ साहिब। लीला हेतु रूप ले आइब।।29।।
शक्ति शक्तिमतोर अभेदा।कहहि सुनहि असि संतन वेदा।।30।।
तिनि की शक्ति अनंग मंजरी। रास केलि में रास करन्ति।।31।।
तिन की कृपा बिनहुँ हे भाई।राधा कृष्ण मिलहुँ के नाहिं।।32।।
नामी नाम भेद किछु नाही।गौर निताई जानिहो तांहीं।।33।।
कृष्ण नाम अपराध विचारे। गौर निताई नाम सबु तारे।।34।।
जद्दपि गौर महा किरपाला।सबु को प्रेम देहि सब काला।।35।।
जिन पे गौर कृपा न करिहै।तांहिं निताई प्रेम दे देहें।।36।।
सो साहिब सबहिं ते कृपाला।तारहिं म्लेच्छ यवन विकराला।।37।।
नित्यानन्द ऐसेहु साहिब। सेवक सेव्य रूप धरि आइब।।38।।
सेवक रुपे हरि जू सेवहि। तिनिकहुँ जीव सेव्य कर सेवहिं।।39।।
मो साहिब गौरहु सेवहि हैं।यही भरोसो मो को ह्वै हैं।।40।।
Comments
Post a Comment