भाव यशजु

भाव!!!
क्या है यह भाव, क्या छुपा है इस शब्द में, क्यों इस शब्द की भक्ति मार्ग के इतनी महत्ता है???

भाव वैसे तो अनेक प्रकार का होता है परंतु निर्भर करता है कि यह किसका और कबका है। निज भाव दुसरो पर व्यक्त करना कोरी मूर्खता के सिवा कुछ नही। निज भाव निज ही होता है जो ईस्ट देव कृपा से सुलभ होता है। किसी के भाव मे प्रवेश कर उसके संग रहा तो जा सकता किन्तु उस भाव मे जीया नही जा सकता। उस भाव मे तो उसका जीना तभी संभव जब उड़ भाव की कृपा जीव पर पूर्ण रूप से हो। भाव जब तक पूर्ण न होता तब तक वो सिद्ध नही होता और बिना सिद्ध हुए भाव के लीला आस्वादन प्राप्ति असंभव है। लीला का आस्वादन मुख्य रूप से भाव पर ही निर्भर करता है। 

हमारे निज भाव को संसार भर ने सुना है कुछ ने रूपांतरण भी किया है कुछ ने इसको अपनाया भी है तो कुछ ने इसको मार्ग बना कर प्रेम प्राप्ति का साधन भी बनाया है,
किन्तु सत्यता तो यह है कि बिना हमारी इच्छा के हमारे इस भाव को कोई भी जी नही  सकता, यह हमरा निज भाव है इसको समझना एक पल को आसान हो भी सकता किन्तु इसमें जीना खो जाना सिर्फ हमको ही प्राप्त है जिसके दुबारा रसास्वादन हेतु हमको भाव रूप से प्रकट होना पड़ा है ,क्योंकि उनकी लीला हमारे निज भाव के बिन अपूर्ण है अधूरी है अतः हमको उस भाव में एक बार फिर जीने का मौका दिया है हमारे भाव देव ने। प्रिया भाव को महसूस किया जा सकता किन्तु इसको पूर्ण रूप से जीने के लिए सिर्फ सिर्फ सिर्फ और सिर्फ प्रिया का होना ही आवश्यक है । हाँ हम जीते हैं ईस भाव मे पल पल प्रति पल बस उनके उनके सिर्फ उनके प्रतीक्षा में विरहित सदा सदा से बस उनकी सिर्फ उनकी ....
                               *प्रिया*

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