नाम जप

बड़े से बड़े शुभकर्म में भी इतनी सामर्थ्य नही की वह हमें प्रभु की प्राप्ति करा सके। प्रभु की प्राप्ति कराने में उनका नाम ही समर्थ है। जिनको भी हम महापुरुष मानते है ऐसे जिन भी सन्त से अगर उनके हृदय की बात पूछो तो वे एकमात्र नाम जपने को कहते है क्योकि उनका काम भी नाम से ही बना है। इसलिए *सबका सार है निरन्तर नामजप करना*। और कोई साधन बने तो ठीक है, न बने तो आवश्यक नही है। *एकमात्र नाम जप से ही सब काम बन जायेगा*। नाम जप करोगे तो इष्ट की सेवा हो जाएगी। नामजप करोगे तो जहाँ आप सोच भी नही सकते हो उस प्रेम देश मे आपका प्रवेश हो जाएगा।  जब तक नामजप नही होगा तब तक इस माया पर विजय प्राप्त नही होगी औऱ यदि नामजप हो रहा है तो डरने की जरूरत नही है। वह नाम अपने प्रभाव से समस्त वासनाओं को नष्ट कर देगा। आप निरन्तर नामजप में लगे रहिए। जब नाम का प्रभाव हृदय में उदय होगा तो आपको ऐसा बल ऐसा ज्ञान कि आप माया में फँसेंगे ही नही *अतः आप एक एक क्षण नामजप में लगावें , सब शास्त्रों एवं समस्त सिद्धान्तों की ये सार बात है।।*

*रसिक सन्त परम पूज्य* 
*श्रीहित प्रेमानन्द गोविंद शरण जी महाराज*

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