आमार जीवन सदा पापे रत
आमार जीवन सदा पापे रत नहीं कोई पुण्य लेश अन्यों को उद्वेग दिया अनंत, दिया जीवों को क्लेश। निजसुख हेतु पाप से नहीं डर दयाहीन मैं स्वार्थपर पर सुखे दुखी सदा मिथयाभाषी परदुख सुखकर। अशेष कामना, हृदय में मेरी क्रोधी मैं दम्भपरायण महामत्त सदाविष्ये मोहित हिंसा गर्व विभूषण। आत्म निवेदन , तव चरणे कर, हुआ परम सुखी दुखदूर गया,चिंता न रहा, नित्यानन्द दर्शन पाकर अशोक अभय अमृत आधार तुम्हारे चरण द्वय तुम्हारा संसार करूंगा सेवन। न होऊँगा फल भागी। तव सुख हेतु करूंगा यत्न होकर श्रीचरण अनुरागी।। तुम्हारी सेवा से दुख यदि हो वह तो परम सुख। सेवा सुख दुख परम सम्पद नाशे अविद्या दुख। पूर्व इतिहास भूला हूँ सकल सेवा सुख पाकर मने। हम हैं तुम्हारे तुम हो हमारे क्या कार्य पर धने। भक्तिविनोद कहे प्रभु नित्यानन्द ततसेवा अति सुखकर