मीरा चरित भाग- 45 इन चूड़ियों में से, जो कोहनी से ऊपर पहनी जाती हैं उन्हें खाँच कहते हैं) गलेमें तमण्यों (यह भी ससुराल से आनेवाला गले का आभूषण है, जिसे सधवा स्त्रियाँ मांगलिक अवसरों पर पहनती हैं) छींक और बीजासण, नाक में नथ, सिर पर रखड़ी (शिरोभूषण) हाथों में रची मेंहदी, दाहिनी हथेली में हस्तमिलाप का चिह्न और साड़ी की पटली में खाँसा हुआ पीताम्बर का गठजोड़ा, चोटी में गूँथे फूल और केशों में पिरोये गये मोती, कक्ष में और पलंग पर फूल बिखरे हुए हैं। "यह क्या मीरा! बारात तो अब आयेगी न?"– राणावतजी ने हड़बड़ाकर पूछा। “आप सबको मुझे ब्याहने की बहुत हौंस थी न, आज पिछली रात को मेरा विवाह हो गया।" – मीरा ने सिर नीचा किये पाँव के अँगूठे से धरा पर रेख खींचते हुए कहा- 'प्रभु ने कृपाकर मुझे अपना लिया भाभा हुकम! मेरा हाथ थामकर उन्होंने भवसागर से पार कर दिया।' उसकी आँखों में हर्ष के आँसू निकल पड़े। 'पड़ले (बारात और वर के साथ वधू के लिये आने वाली सामग्री को पड़ला या बरी कहा जाता है) में आये हैं भाबू! पोशाकें, मेवा और शृंगार सामग्री भी है वे इधर रखे हैं। आप देख सँभाल लें।'– मीर...