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Showing posts from July, 2017

गोपी प्रेम

गोपी-प्रेम का वैशिष्ट्य                    ( ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्रीशरणानन्दजी महाराज )      एक भाई गोपी-प्रेम की बात पूछ रहा था । इसलिये कहना है कि जबतक प्राणी का शर...

विरह सुख

विरह-सुख * * * श्रीश्रीगौरांगदेव ने कहा था-         युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम् ।         शून्यायितं जगत्सर्वं गोविन्दविरहेण मे ।।      'गोविन्द के विरह में मेर...

परमात्मा का चिंतन

*||🤖👏" सत्संग चिंतन”👏🤖||* ************************************ जब हम शांति से बैठकर कुछ सोचते है। वहीं चितंन है, जो हमारे अंदर चल रहा है। वास्तव में चितंन तो वहीं सही है। जो हमें भगवान के पास ले जाए, क्योकि जब म...

वेणु गीत

भगवान श्रीकृष्ण का वंशी-निनाद माधुर्य का सिन्धु है.... इस वेणुनाद से पृथ्वी के जलचर और स्थलचर सभी जीव मोहित हो गए। श्रीकृष्ण की वंशी-ध्वनि जिसके कान में प्रविष्ट हो गयी, वह श्...