ब्रज लीला

*श्रीब्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला*

श्रीकृष्ण- अहा, यह ब्रज बैकुंठ हू सौं उत्कृष्ट तथा मेरे निज धाम गोलोक हू सौं अति श्रेष्ठ सौंदर्यमय सोभा कूँ प्राप्त है रह्यौ है। यामें मेरी तनी ममता क्यों है याकौ हू उत्तर थोरे से सब्दन में यह है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।’ अस्तु यह मेरी जन्मभूमि है।

संसार में तौ मैं पूज्यौ हूँ, किंतु या ब्रज में तौ मैं ही पुजारी बन्यौ हूँ और गोपी गोप गैयान की मैंने स्वयं ही पूजा करी है। वास्तव में या ब्रज कौ सौ बिलच्छन प्रेम कहूँ देखिबे में नहीं आयौ।

संक्षिप्त उदाहरण में मैया जसोदा दूध पिबायबे के समय म रे मुख सौं तौ दूध कौ कटोरौ लगाय देय है और ऊपर सौं थप्पर की ताड़ना दैकैं कहै है ‘अरे कन्हैया! कै तौ या सबरे दूध कूँ पी जैयो, नहीं तौ दारीके! तेरी चुटिया छोटी सी रहि जायगी। धन्य है या प्रेम कूँ! या प्रेम डोर में बँधि कै फिर मेरौ मन छूटिबे कूँ नहीं करै है।’
(रसिया)
कैसैहुँ छूटै नाहिं छाटायौ रसिया बँध्यौ प्रेम की डोर,
ऐसी प्रेममई ब्रजछटा घटा लखि नाचि उठै मन मोर।
मन मो स्वच्छंद फँस्यौ गोपिन के फंद,
कोई कहै ब्रज चंद, कोई आनंद कौ कंद।
नंद-जसुदा कौ लाल, कोई ग्वारिया गोपाल,
कोई जग-प्रतिपाल, कोई कंस कौ निकंद।
कंदहु ते मीठौ नाम एक कहैं प्यारौ माखनचोर ।।1।।
प्रेम- राज्य कौ सब सौं सुंदर तथा मधुर नाम मेरौ यह माखनचोर है। माया-राज्यवारेन कँ तो यह नाम ऐसौ लगै है जैसैं खीर में नौन। किंतु- ‘कर्तुं अकर्तु अन्यथा कर्तुं समर्थ ईश्वरः’- यह तौ मोकूँ और ही रूप सौं सोभा देय है। वास्तव में या ब्रज में मेरी ईस्वरता के उपासक नहीं है! किंतु यहाँ तौ ब्रजवासिन कौ स्वामी, सेवक, पुत्र, सखा- जो कछु हूँ सो मैं ही हूँ! यहाँ ईस्वर तौ मेरे पासहू नहिं फटकि सकै है। तौहू कछु एक दिना मोकूँ अपनी ईस्वरता कौ अभिमान है गयौ; क्योंकि मैंने-
(रसिया)
गिरि कूँ पुजाय, इंद्र-यज्ञ कूँ मिटाय,
लियौ ब्रज कू बचाय मैंटि व्याल-अग्नि ब्याधि।
ब्याधि मैंटि गर्व आयौ, मैंने गिरि कूँ उठायौ,
एक गोपी ने सुनायौ तेरी सब झूठी साध।।
तब मैंने कही- ‘क्यों!’ तब वा गोपी ने तुरंत उत्तर दियौ-
(रसिया)
राधे ने गिरिधर गिरि समेत लियौ धारि भौंह की ओर ।।2।।
वाने कही- ‘कन्हैया’ तैनें तो केवल गिरिराज ही उठायौ हौ, किंतु हमारी रासेस्वरी-सर्वेस्वरी राधा ने तौ तो समेत गिरिराज सात दिन, सात रात ताईं अपन एक भौंह की कोर पै ही डाट्यौ हौ, नहं तौ वाकौ बोझ तेरे बाप पै हू नहीं झिलतौ! अहा, धन्य है या प्रेम कूँ! वास्तव में मेरौ भक्त अनन्य हैकैं मेरौ भजन करै है, तौ मैं वाकूँ कछु दै दऊँ हूँ या कछु उपकार कर दऊँ हूँ। जैसें-
(रसिया)
धुव नें रिझायौ, ऊँचे पद पै बैठायौ,
प्रहलाद नें बुलायौ, दियौ बाप ते बचाय।
चाव गनिका ने धार्यौ, ताकूँ सूवा संग तार्यौ,
नाहिं सबरी ने हार्यौ, दई धाम कूँ पठाय।।
अस्तु, मैंने सबके रिन चुकाय दिये, परंतु या-
ब्रज की चुरुआ भर छाछ बनाय लियौ रिनियाँ नंद-किसोर ।।3।।
या ब्रज की चुरुवा भर कौ बदलौ मैं स्वयं विश्वंभर है कैं हूँ नहीं चुकाय
सक्यौ। तबही तौ मोकूँ इन ब्रजदेवीन की हाथ जोरि कैं बिनती करनी परी-

(श्लोक)
न पारयेऽहं निवद्यसंयुजां स्वसाधुकृत्यं बिबुघायुषापि वः।
या मा भजन् दुर्जरगेहश्रृंखलाः संवृश्च्य तद् वः प्रतियातु साधुना।।
हे ब्रजदेवियौ, यदि मेरी देवतान की सी आयु होय, तौहू मैं तुम्हारी या चुरुवा भर छाछ कौ बदलौ नहीं चुकाय सकूँ हूँ! याही सौं मैं तुम्हारौ जन्म-जन्मान्तर रिनियाँ रहूँगौ, क्योंकि मैं तौ-
भाव सौं बँधाऊँ, प्रेम प्रीत में बिकाऊँ,
नहिं धन सों अघाऊँ भक्ति चाहूँ मैं अनन।
अन्य भाव सौं न नेह, तजि भूपति कौ गेह,
साक-पात सौं सनेह, फल-पत्र-पुष्प-कन।।
अनुदिन रज-सेवी स्याम तुच्छ ता आगैं लाख-करोर।।4।।

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