द्वितीय अध्याय 1

श्रीनवद्वीपधाम माहात्म्य

द्वितीय अध्याय

   श्रीनवद्वीप के चंद्रस्वरूप श्रीसचीनन्दन की जय हो ! जय हो ! अवधूत नित्यानन्द प्रभु की जय हो ! जय हो ! अन्य सभी धामो के सारस्वरूप श्रीनवद्वीप धाम की जय हो ! जय हो ! इस धाम की महिमा गाने का सामर्थ्य किसमे है। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर स्वयम को  असमर्थ समझते हुए श्रीगौरसुन्दर की इच्छापूर्ति हेतु इसकी महिमा लिखते हैं।

   श्रीगौरधाम गौड़मण्डल में स्थित है तथा श्री जान्हवी देवी ( गंगा) द्वारा सेवित है। श्रीगंगा देवी इस धाम की शोभा को वर्धित करती हैं। श्रीगौड़मण्डल इक्कीस कोस की परिधि वाला है और इसके मध्य श्रीगंगा देवी इधर उधर प्रवाहित होती रहती हैं।श्रीगौड़मण्डल एक सौ पंखुड़ियों वाले कमलपुष्प के समान है जिसके मध्य भाग में बहुत ही सुंदर श्रीनवद्वीप विद्यमान है। इस पुष्प के बीच पांच कोस परिधि वाला कर्णिकास्वरूप आधार है। आत्यंतिक सुगन्धित आठ दल वाला यह पुष्प नवद्वीप चार योजन परिधि वाला है। इस कमलपुष्प की बाहरी एक सौ पंखुड़ी श्रीगौड़मण्डल है जिसकी परिधि 21 कोस है।शास्त्रों के अनुसार इसका व्यास सात योजन है ।जिसके बीच नवद्वीप विद्यमान है तथा बीच मे योगपीठ श्रीमहाप्रभुजी का जन्म स्थान है।

  यह गौड़मण्डल धाम चिंतामणि के समान और चिदानन्दमय है। यहां श्रीकृष्ण की संधिनी , संवित और आह्लादिनी तीनों शक्तियां विराजमान रहती हैं। स्वरूपशक्ति की संधिनी के प्रभाव की परिणीति ही इस धाम का स्वभाव है। श्रीगौरसुन्दर की लीला भूमि होने से इसका स्वभाव नित्य है । यद्यपि अचिन्त्य शक्ति का कोई भी कार्य प्रपंचिक नहीं होता , फिर भी बाहरी रूप से यह धाम अविद्या के भरम में भृमित बद्धजीव को प्रपंच के समान प्रतीत होता है। जिस प्रकार मेघ से आच्छादित नेत्रवाले व्यक्ति सूर्य को मेघ द्वारा आच्छादित समझते हैं , किंतु सूर्य को कोई मेघ ढक नहीं सकता । उसी प्रकार गौड़मण्डल भी नित्य है किंतु जड़बुद्धि जीव इसे जडमय ही देखते हैं।

    जिनपर श्रीनित्यानन्द प्रभु की कृपा होती है वह ही इस धाम के चिन्मय स्वरूप के दर्शन पाते हैं। उन्हें ही दिखाई देता है कि यहां गंगा , यमुना , सरस्वती , गोदावरी सब एक साथ प्रवाहित होती हैं तथा विशेष स्थानों पर प्रयाग आदि सप्त पुरियां विद्यमान हैं। भाग्यवान जीव इस गौड़मण्डल का निर्मल और साक्षात वैकुंठ तत्व के रूप में दर्शन करते हैं। स्वरूपशक्ति कि छाया का नाम ही मायाशक्ति है। वही माया प्रभु की आज्ञा से विस्तार करती है। वह माया बहिर्मुखी जीवों के नेत्रों को ढक देती है जिससे वह धाम का चिन्मय स्वरूप नहीं देख पाते। इस गौड़मण्डल मे जो निरन्तर वास करते हैं वह बहुत सौभग्यशाली हैं। देवता लोग भी यहां के वासी को देखते हैं तो सभी चतुर्भुज धारण किये श्यामकान्ति , अद्भूतरूप और कदकाठी के दिखाई देते हैं। श्रीनवद्वीप धाम के सोलह कोस में रहने वाले सभी व्यक्ति गौरकान्ति से युक्त हैं तथा से नाम संकीर्तन में उन्मत रहते हैं।ब्रह्मादि देवता भी इन धाम वासियों की भिन्न भिन्न प्रकार से पूजा करते हैं। ब्रह्मा जी कहते हैं ऐसा मेरा सौभाग्य कब होगा कि मैं यहां तृण के रूप में जन्म प्राप्त करूंगा। यदि कोई पूछे कि ब्रह्मा होकर भी ऐसे जन्म की कामना क्यों करते हो तो कहते हैं कि श्रीगौरसुन्दर के चरणों मे लगे भक्तों की चरणरज की प्राप्ति को ही तृण हो जाऊँ। अन्यथा यह किसी प्रकार से भी सम्भव नहीं।

   हाय ! हाय ! श्रीगौरसुन्दर ने मेरी वंचना करके मुझे ब्रह्मांड का अधिपति बना दिया है। मेरे कर्मों की गांठ कब कटेगी। कब मेरा हृदय शुद्ध होगा। मेरी इस जगत के अधिपति होने की बुद्धि कब नष्ट होगी। कब मैं शुद्ध गौरदास बनकर उनके चरण कमलों का सानिध्य प्राप्त करूंगा। क्रमशः

जय निताई जय गौर

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