आरती किये नदिया नागरी
यथा राग
"आरति किये नदीया-नागरी।
कांचनादि सखि देय आयोजन करि।।
शंख बाजे घण्टा बाजे बाजये काँशरी।
मधुर मृदंग बाजे बोले गौरहरि।।
विशुद्ध गो-घृत ढालि, सप्त प्रदीप्त ज्वालि,
श्रीमुख हेरत मन-प्राण भरि।।
सुगन्ध चन्दन निये, धूप गुग्गुल दिये,
आरति किये नदिया-नागरी।।
शंख भरि सुशीतल, सुवासित गंगाजल,
श्रीअंगधोयायत सुजतन करि।
अंचलधरिया करे, कत ना सोहाग भरे,
श्रीअंग मुछाओत अति धीरिधीरि।
मल्लिका मालति जुथि, सुचिकन माला गाँथि
सखिगण साजाओत किशोर किशोरी
फूल आनि राशि राशि, सखिगण हासि हासि,
चारि दिके छड़ाओत बोले गौरहरि। ।
सखिगण हासि हासि, प्रेमानन्दे भासि भासि,
चामर दुलायत जाइ बलिहारि।।"
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