राधाकृष्णअलिंगीत गौर
राधालिंगितकृष्ण गौर
राधाप्रेम भाव विभोर
मुखे बोले हरि हरि
राधाभाव कांति धरि
राधाप्रेम करै आस्वादन
बांटत निज प्रेम धन
परम् करुणा अवतार
हरि हरि नाम सर्वसार
कलियुगे प्रेम प्रकाश
हिय करै अभिलाष
कलियुगी जीव संतप्त
करै निज प्रेम प्रदत्त
भक्त वत्सल गौरहरि
कलिजीवे करुणा करि
जप तप नाँहिं आचार
पतितन कौ करै उद्धार
महामन्त्र करुणा रूप
प्रकासै निज प्रेम स्वरूप
वँशी बनी खोल करताल
मधुर हरिनाम रसाल
प्रेम मत्त नटवर नागर
हिय कृष्ण प्रेम सागर
लुटाय निज प्रेम धन
हरि नामे रहै मग्न
परम् प्रेम पूँजी नाम
कलियुग की पूँजी नाम
नाम विलासी भक्त रूप
गुप्त राखै निज स्वरूप
गौर रूप धरि नन्दनन्दन
विष्णुप्रिया सेई प्राणधन
नित्यानन्द अभिन्न रूप
युगे युगे सेवा स्वरूप
भजै बाँवरी गौर निताई
गुरुकृपा सौं यह निधि पाई
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