प्रेम का पर्यायवाची

संसार की कोई ऐसी भाषा नहीं होगी जिस में " प्रेम " का पर्यायवाची शब्द न हो। और संसार की कोई ऐसी भाषा नहीं जो श्रीप्रिया- प्रीतम के परस्पर " प्रेम" का रत्ती भर भी निरूपण करि सकै।
     बहुत जोर लगाया तो रसिकों की झोली में "उज्जवल " शब्द डाल दिया । लिजिये बन गई बात- इसे विशेषण के रूप में हर जगह लगाते  रहिये; उज्जवल रस, उज्जवल विहार; उज्जवल केलि... इत्यादि , इत्यादि..। सब ठीक है।
      परन्तु एक बात पल्ले बाँधियों-
इस " उज्जवल" का अनुभव होता है- दुर्लभ ही नहीं; इस का तो आभास मात्र भी दुर्लभ है।
जब तक सकामता की सूक्ष्म लहरें, भजन में मिश्रित रहें; जब तक मिंश्रित भावनाएँ भजन में संग-संग चलै; उज्जवलता के भाव में स्थित होना तो बहुत दूर की बात है- समझ के दायरे में भी प्रवेश नहीं - निश्चित
जानियों ।
श्री प्रिया- प्रीतम की केलि में भजन भावना करना भी दुर्लभ है जाय -
अपराध कमाने से बच गए, तो समझियों बड़ी कृपा भई !

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