ब्रज नव तरुणी

ब्रज नव तरुनि कदम्ब मुकुटमनि श्यामा आजु बनी।
नखसिख लौं अंग-अंग माधुरी मोहे श्याम धनी ।।
यौ राजत कवरी गूँथित कच,कनक-कंज-बदनी।
चिकुर चन्द्रिकन बीच अर्ध बिधु मानो ग्रसित फनी।।
सौभग रस सिर स्रवत पनारी,पिय सीमन्त ठनी।
भृकुटि काम-कोदंड,नैंन सर,कज्जल रेख बनी।।
तरल तिलक,ताटँक गंड पर,नासा जलज मनी।
दसन कुन्द,सरसाधर पल्लव,प्रीतम मन समनी।।
चिबुक मध्य अति चारु सहज सखि,साँवल बिंदुकनी।
प्रीतम प्राण रतन संपुट कुच , कंचुकी कसिव तनी।।
भुज मृणाल वल हरत बलय जुत,परस सरस् श्रवनी।
श्याम सीस तरु मनों मिडवारी,रची रुचिर रवनी।।
नाभि गंभीर मीन मोहन मन खेलन को ह्र्दनी।
कृस कटि,पृथु नितम्ब किंकिनि  व्रत,कदलि खंभ जघनी ।।
पद अम्बुज जावक जुत,भूषन प्रीतम उर अवनी।
नव-नव भाय बिलोभि भाम इभ विहरत वर करनी।।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रसंसत श्यामा कीरत विशद घनी।
गावत,स्रवनन सुनत सुखाकर,विश्व दुरित दवनी।।

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