जगन्नाथ अष्टकम

श्री जगन्नाथ अष्टकम्
श्री जगन्नाथ अष्टकम भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय है स्वयं भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु जब श्री जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए जगन्नाथ मंदिर में जाते तो श्री जगन्नाथ अष्टकम का गान करते।अतः सभी भक्तों से प्रार्थना है की नित्य श्री जगन्नाथ अष्टकम का पाठ करें।जिससे भगवान कृष्ण अत्यधिक प्रसन्न होंगे।
कदाचित कालिन्दीतट- विपिन-सङ्गीत-तरलो
मुदाभीरीनारी- वदन कमलास्वाद- मधुपःl
रमा-शम्भु-ब्रह्मामरपति- गणेशार्चितपदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 1 ॥
कभी-कभी यमुनातीरस्थ श्री वृंदावन में वेणुगीत में चंचल एव गोपवनिताओ के मुख कमल के आनंदपूर्वक आस्वादन करने वाले भ्रमर स्वरूप तथा लक्ष्मी ,शिव, ब्रह्मा ,इंद्र एव गणेश आदि देवताओं के द्वारा उनके श्री चरण पुजित होते हैं वही जगन्नाथ देव मेरे नेत्रमार्ग की पथिक बन जाए।
भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिंछं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचर कटाक्षं विदधते
सदा श्रीमद्बृन्दा वन वसति लीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 2 ॥
बायी भुजा में वेणु, सिर पर मोर पंख ,कटि तट पर पितांबर एवं अपने नेत्रप्रांत में सहचरों के कटाक्ष को धारण करने वाले तथा श्री वृंदावन के निवास लिलाओ से जो सदैव परिचित हैं वे ही श्री जगन्नाथ देव मेरे नेत्रमार्ग के पथिक बन जाए।
महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे,
वसन् प्रासादान्त: सहज बलभद्रेण बलिना।
सुभद्रा मध्यस्थ: सकल- सुर-सेवावसरदो,
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 3 ।।
महासमुद्र के तीर पर स्वर्ण के समान सुंदर नीलाँचल के शिखर मेअपने बड़े भाई प्रबल बलदेव जी के साथ ,अपने मंदिर मे निवास करने वाले ,एव सुभद्रा जिनके बीच में विराजमान है तथा जो समस्त देवताओं को अपनी सेवा का अवसर देते रहते हैं वे ही श्री जगन्नाथ देव मेरे नेत्रमार्ग के पथीक बन जाए।
कृपा-पारावार:सजल-जलद-श्रेणिरुचिरो,
रमावाणीराम: स्फुरदमल- पंकेरुहमुख:,
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखा गीतचरितो,
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 4 ॥
जो करुणा वरुणालय हैं सजल जलद श्रेणी के समान श्याम सुंदर है एव रमा तथा सरस्वती देवी के साथ विहार करने वाले हैं जिनका श्रीमुख विकसित निर्मल कमल के समान है जो समस्त देवेंन्द्रो के आराधनीय हैं तथा जिनके दिव्य चरित्र श्रुतियो के शिरोभाग में गाये गये हैं । वे जगन्नाथ देव मेरे नेत्र मार्ग के पथिक बन जाए।
रथारूढो गच्छ्न पथि मिलित- भूदेव पटलैः,
स्तुति प्रादुर्भावं प्रतिपद मुपाकर्ण्य सदयःं
दयासिन्धुबन्धु सकलजगतां सिन्धुसुतया,
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 5 ॥
रथ में बैठकर चलते समय मार्ग में मिलने वाले ब्राह्मण समुदाय के द्वारा पग पग में अपनी स्तुतियों के प्राकटय को सुनकर जो दया से युक्त हो जाते हैं अतएव जो दया के सिंधु एवं समस्त जगत के बंधु कहलाते हैं वही जगन्नाथ देव श्री लक्ष्मी देवी के सहित मेरे नेत्र मार्ग के प्रथीक बन जाए।
परब्रह्मापीडः कुवलय-दलोत्फुल्ल-नयनो,
निवासी नीलाद्रौ निहित- चरणोनन्त शिरसिl
रसानन्दी राधा-सरस-वपुरालिङ्गन- सुखो,
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 6 ॥
जो मुकुटमणि स्वरूप परब्रह्म है। जिनके दोनों नेत्र नीलकमल दल के समान खिले हुए हैं। जो नीलांचल में निवास करने वाले हैं। शेषजी के सिर पर अपने चरणों को स्थापित करने वाले हैं एवं भक्ति रस से ही आनंदित होने वाले हैं । तथा श्री राधिका के सरस शरीर के आलिंगन से ही जिनको सुख मिलता है । वे ही श्री जगन्नाथ देव मेरे नेत्रमार्ग के प्रथीक बन जाएं।
न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं,
न याचे2हं रम्यां सकल-जन काम्यां वरवधूंम्।
सदा काले काले प्रमथपतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 7 ॥
मैं , प्रसन्न हुये श्री जगन्नाथ देव से राज्य नहीं मांगता है एव स्वर्ण - मणि -माणिक्य रूप वैभव को भी नहीं मांगता तथा सकल जन वांछनीय सुंदरी नारी को भी मैं नहीं चाहता। किंतु जिनके चारुचरित्र शिव जी द्वारा समय-समय पर सदैव गाए जाते हैं वही श्री जगन्नाथ देव मेरे नेत्र मार्ग के पथिक बन जाए।
हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते
अहो दीनानाथं निहित चरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ 8 ॥
हे सुरपते ! तुम मेरे असार संसार को शीघ्र हर लो।हे यादवपते ! तुम मेरी उत्कृष्ट पापों की श्रेणी को हर लो।अहह ! जो दीन एंव अनाथ के ऊपर ही अपने श्री चरणों को स्थापित करते हैं । यह जिनका निश्चित व्रत है वे ही श्री जगन्नाथ देव मेरे नेत्रमार्ग के पथीक बन जाए।

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