5 रथ यात्रा

*रथ यात्रा लीला 5*

    कल जैसे हम सबने सुना रथ चलता चलता रुक गया ,जगन्नाथ जी ने पण्डेय पुजारी को बोला,"जब तक मेरा भक्त साल्वेग मुझ को  फूल चन्दन,तुलसी ना चढा लेगा,  रथ हिलने वाला नही" ,तो नाम पुकारा गया तो साल्वेग बोला," मै हूं सालवेग ",तो उस को  स्नान करवाया गया ,शुद्ध किया गया ,फिर रथ पर चढ़ाया गया ,बहुत आनंदित हो गया  साल्वेग ,रोम रोम  गदगद हो गया ,प्रफुल्लित हो गया ,लेकिन ये है कौन साल्वेग ?

    कटक का एक मुस्लिम  सूबेदार हुया ,  जिस का नाम लालबेग था ,बहुत ही निर्दयी था लाल बेग ।एक बार कहीं से निकल रहा था तो रास्ते मे एक ब्राह्मण कन्या  पर नज़र गई ,तो गलत भाव मन में आ गया,वो कन्या ब्रह्मणी थी ,छोटी आयु में ही सुहाग हीन हो चुकी थी।लालबेग जबरन उस जो उठा कर ले गया और उस से शादी कर ली और उस का नाम रख दिया फातिमा बेगम ।अब इस के यहां 5 संतान का जन्म हुआ लेकिन 4 संतान का शरीर शान्त हो गया ।एक एक बेटा बचा जिस का नाम रखा साल्बेग।

    बड़ा होने पर साल्बेग को सेना में भर्ती कर लिया लालबेग ने,यद्ध में बहुत निपुण ,लेकिन एक लडाई पर सिर पर चोट आ गाई ,कही से वो घाव ठीक ना हुया तो पिता ने घर भेज दिया ।अब माँ सब बताती की मेरे साथ ऐसा ऐसा हुआ,उस को भागवत  के बारे में बताती,जगन्नाथ जी के बारे में बताती की जगन्नाथ ही तेरा ये घाव ठीक कर सकते हैं।अब जगन्नाथ मन्दिर दर्शन को गया तो गैरहिन्दू होने के कारण मन्दिर प्रवेश ना मिला। बहुत रोता ,तो एक दिन स्वपन में जगन्नाथ जी ससाल्बेग के सिर पर विभूति लगा गए,तो जब सुबह को उठा तो क्या देखा की घाव  तो ठीक हो चुका है ।अब मन में बहुत तडप लेकिन मन्दिर जाने ना देते,तो किसी ने कहा साल में एक बार जगन्नाथ जी खुद सब को दर्शन देने बाहर आ जाते है ,तब तक  तुम सुदर्शन जी के दर्शन करो,दोनो का फल एक जैसा ही है ।

        अब सडक किनारे बैठ जाता ,आज रथ आ गया लेकिन इतनी भीड़ में कहाँ दर्शन हो सकते थी,तो साल्बेग के लिये  रथ खड़ा हो गया,जब पुजारी आवाज़ लगा रहे है कौन है ,कौन है साल्बेग  ?  रथ नही चल रहा ,आ जाओ चन्दन ,तुलसी ,फूल चढा लो ,तो रथ के उपर साल्बेग चढ़ा और दर्शन कर प्रणाम करने नीचे झुका,अब तो कितना समय हो गया तो पुजारी बोले अब उठो साल्बेग ,उठो ,लेकिन ये क्या सालबेग ने तो ऐसा प्रनाम किया की दुबारा कभी उठे ही नही ,वही  रथ पर शरीर शान्त हो गया। वहीं सडक किनारे साल्बेग की समाधि बनाई गाई,आज भी उसी समाधि पर रथ रुक जाता है ,खूब कीर्तन होता है ,साल्बेग को याद किया जाता है फिर रथ चलता है ।अब फिर से हरि बोल हरि बोल का कीर्तन होता है ,भक्त जनों ने फिर से रस्सा पकड लिया है और हरि बोल करते रथ को खींच आगे ले कर चलने लगाते है  ।

( दास मानव)

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