बांसुरी की धुन

*"बाँसुरी की धुन"*🙏🏻🌹

          हरीराम बनारस में गुलाब की पत्तियों को पीसकर गुलकन्द बनाने का काम करता था। बनारस में उसकी गुलकन्द  दूर-दूर तक मशहूर थी। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी का नाम सुकन्या था बेटी गुलकन्द बनाने में अपने पिता का पूरा साथ देती थी और इस काम में अपने पिता की तरह माहिर थी। सुकन्या की स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ नृत्य कला गायन कला और वाद्य कला का अभ्यास कराया जाता था। सुकन्या ने वाद्य कला में बाँसुरी का चुनाव किया और उसमें वह पूरी तरह निपुण हो गई थी, स्कूल में जब भी कोई धार्मिक समारोह होता तो सुकन्या बाँसुरी बजा कर सबका मन मोह लेती थी। हरीराम बनारस में तो गुलकन्द का व्यापार करता ही था। वह हर शहर में जाकर गुलकन्द बेचा करता था। इस काम में उसकी बेटी उसके साथ जाती थी। क्योंकि उसका बेटा अभी छोटा था और उसका ज्यादा रुझान पढ़ाई की तरफ था।
          सुकन्या को अपने पिता का साथ देना बहुत अच्छा लगता था। ऐसे ही बाप बेटी हर शहर में जाकर गुलकन्द बेचकर अच्छी कमाई कर लेते थे। एक बार वृन्दावन में गुलकन्द बेचने का उनको सौभाग्य प्राप्त हुआ। दोनों बाप -बेटी वृन्दावन में एक धर्मशाला में ठहरे। हरिराम का नियम था जब भी वह दूसरे शहर में जाता तो सबसे पहले बनाई हुई गुलकन्द को वह किसी मन्दिर में भोग लगाता था। वृन्दावन में आकर जब उसने गुलकन्द बनाई तो उसने एक दोने में गुलकन्द को रखा और अपनी बेटी के साथ राधा रमण जी के मन्दिर के प्रांगण में गया और वहाँ जाकर गुलकन्द से भरा हुआ दोना सुकन्या और उसके पिताजी ने राधारमण जी के चरणों में रख दिया। मन्दिर के पट अभी बन्द थे तभी सुकन्या जो हर रोज अपनी बाँसुरी का अभ्यास जरूर करती थी क्योंकि बाँसुरी बजाए बगैर उसको चैन नहीं आता था तो मन्दिर के प्रांगण में बैठकर आज राधारमण जी को अपनी बाँसुरी वादन सुनाने लगी। बाँसुरी की धुन छेड़ते ही मन्दिर के प्रांगण में ऐसा माहौल बन गया कि हर कोई उसके बाँसुरी की धुन को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गया। जब मन्दिर के पट खोले तो गोंसाई जी ने हरिराम और सुकन्या के लाए हुए गुलकन्द के दोने को राधा रमण जी के आगे रख दिया। गोसाई जी जो कि राधा रमण जी के हर भाव से परिचित थे उन्होंने आज देखा कि राधा रमण जी के मुख पर आज बहुत प्रसन्नता का भाव है उनके मुख की मुस्कान बहुत ज्यादा तीखी हो गई थी। उनके कटाक्ष नेत्र खुशी से और फैले हुए थे। गुसाईं जी यह देखकर हैरान हो गए आज  राधा रमण जी इतने प्रसन्न क्यों है। तभी उनका ध्यान मन्दिर के प्रांगण में बैठे सुकन्या पर  पडा जो कि  बाँसुरी बजाने  मे मग्न थी। तो गुसाईं जी समझ गए कि राधा रमन जी बाँसुरी की धुन सुनकर प्रसन्न हो रहे हैं। सुकन्या बाँसुरी बजाने में इतनी मग्न थी कि उसको पता ही नहीं चला कि कब मन्दिर के पट खुल गए हैं लेकिन जब उसने अपनी बाँसुरी धुन को विश्राम दिया और उसके नेत्र जब राधारमण जी के साथ मिले तो राधा रमण जी के कटाक्ष नेत्र उसके ह्रदय को ऐसे  बींध गए  कि वह तो बस उनको देखते ही रह गई। तभी हरिराम ने सुकन्या को कहा बेटा दर्शन हो गए हो तो चले। सुकन्या राधा रमण जी को निहारती हुए वापस धर्मशाला आ गई। अब तो हर रोज सुकन्या और उसके पिता गुलकन्द बना कर मन्दिर ले कर जाते और  सुकन्या बाँसुरी की धुन छेडती और राधा रमण जी और सभी लोग उसकी बाँसुरी की मधुर धुन सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते। ऐसा कितनी दिन चलता रहा। हरिराम ने कहा कि बेटा अब हमें आए हुए काफी दिन हो गए हैं अब हमें अपने नगर वापस चलना चाहिए। लेकिन ना जाने राधा रमण जी की कैसी इच्छा थी कि जब भी वो जाने का प्रोग्राम बनाते तो हर बार उनका जाना ना होता वह फिर वही रह जाते। ऐसा करते करते उनको वृन्दावन में रहते दो महीने हो गए। सुकन्या का तो यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा था। क्योंकि वह तो राधा रमणा की दीवानी हो चुकी थी और उधर राधा रमण जी जो कि आज तक अपनी    बाँसुरी की धुन से सारे वृन्दावन में रमण करते थे अब तो सुकन्या की बाँसुरी की धुन सुनकर मंत्रमुग्ध हो रहे थे।कई बार ऐसा होता था कि  रमणा रात को विश्राम के लिए भी देरी कर देते थे क्योंकि उनको बाँसुरी की धुन बहुत प्रिय लगती थी। जब इन को सुलाने के लिए मन्दिर के पट बन्द कर करने के लिए गुसाई जी जाते तो किसी न किसी बहाने राधा रमण जी मन्दिर का पट बन्द ही नहीं करने देते ऐसा कई बार गुसाईं जी ने देखा था। वो समझ चुके थे कि सुकन्या की बाँसुरी की धुन राधा रमणा को पसंद आ चुकी है। अब यहाँ से सुकन्या और हरिराम का जाने का समय आ गया। बड़े ही भारी मन से सुकन्या और हरिराम राधा रमण जी को छोड़कर अपने नगर बनारस चल पड़े। जब सुकन्या राधा रमण जी के मन्दिर से निकली उसके कदम आगे बढ़ नहीं रहे थे उसको ऐसे लग रहा था कि उसके पांव में किसी ने बहुत भारी वजन के पत्थर रख दिए हो और वजन के कारण उससे चला नहीं जाया जा रहा था। अब सुकन्या अपने  घर बनारस आ चुकी थी। लेकिन उसका मन तो उस मोहनी सूरत वाले वृन्दावन के  कटाक्ष नेत्रों वाले गहरी मुस्कान वाले राधा रमणा  ने हर लिया था।  अब तो सुकन्या का अपने घर बिल्कुल मन नहीं लगता था। उसका मन करता कि वह भागकर मन्दिर के प्रांगण में चली जाए। ऐसे ही कितने दिन चलता रहा। 
          एक दिन सुकन्या अपने माता जी के साथ रसोई घर में खड़ी थी तभी अचानक से उसको जोरदार चक्कर आया और वह बेहोश होकर गिर गई जब डॉक्टर के पास उसको ले जाया गया डॉक्टर को इसकी बीमारी समझ ना आई लेकिन जब उसके पिताजी उसको बड़े अस्पताल में लेकर गए तो डॉक्टरों ने जब उसकी जांच की तो पता चला कि उसके हृदय में छेद है घर के सब लोग सदमे में आ गए यह हमारी बेटी के साथ क्या हो गया। डॉक्टर ने बोला कि अब आपकी बेटी ठीक नहीं हो सकती यह कुछ दिनों की मेहमान है। लेकिन इसके बारे में सुकन्या को नहीं बताया गया सब लोग उसको ऐसे दिखाते कि तुमको कोई मामूली सी बीमारी है और तुम्हें कुछ भी नहीं हुआ है। लेकिन सुकन्या को थोड़ा सा संदेह हो गया था उसको कुछ ना कुछ बड़ी बीमारी हो गई है। तभी एक दिन सब लोग बाहर गए हुए थे और उसने अलमारी में से डॉक्टर की दी गई रिपोर्ट (x-ray) देखी तो उसने देखा उसके हृदय में छेद है लेकिन तभी उसको वहाँ उसके हृदय में एक आकृति दिखाई दी जब उसने उसे देखा तो उसने देखा कि यह तो राधा रमण जी की आकृति है। सुकन्या  यह देखकर हैरान हो गई राधा रमण जी को मैं वहाँ नहीं छोड़ कर आई बल्कि वह तो मेरे साथ  मेरे हृदय में निवास कर रहे हैं।जब सब लोग  घर  आए तो सुकन्या ने ऐलान कर दिया कि वह आज रात को राधा रमण जी के पास जाएगी लेकिन उसके पिताजी ने कहा कि बेटा तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तुम वहाँ नहीं जा सकती। लेकिन  सुकन्या ने  तो ठान लिया कि वह वृन्दावन  जरूर जाएगी। ना जाने कब उसको मोत का बुलावा आ जाए। उसके पिताजी उसकी हठ के आगे विवश हो गए और उसको लेकर वृन्दावन के लिए चल पड़े। वृन्दावन पहुँँच कर वह दोनों  सुबह सबसे पहले राधा रमण जी की मन्दिर अपने हाथ से बने हुए गुलकन्द को लेकर और बाँसुरी लेकर मन्दिर में प्रवेश करते हैं। मन्दिर में आज एक अजीब तरह की खुशबू आ रही थी। सब गोसाई लोग हैरान हो गए कि आज यह मन्दिर में   कैसी खुशबू फैली हुई है। लेकिन जब उनका ध्यान सुकन्या की तरह पड़ा तो सब गोसाई सुकन्या को देखकर बहुत प्रसन्न हो गए और कहने लगे, अरे बेटा तुम कहाँ चली गई थी ?जब से तू गई है हमारे तो राधा रमण जी की मुख की कांति फीकी पड़ गई है। लेकिन आज देखो उनकी मुस्कान कितनी गहरी है और आज तो तुम्हें देखकर उनकी दंतावली के भी दर्शन हो रहे हैं अब जल्दी से  तुम अपनी बाँसुरी की धुन भी सुना दो ताकि और प्रसन्न हो जाए। तुम नही जानती कि तुम्हारे हाथों से बनी हुई गुलकन्द राधा रमण जी को बहुत प्रिय थी जब भी तुम गुलकन्द का भोग लगाती थी हम अपने हाथों से इनके मुख पर लगी गुलकन्द को साफ करते थे। हमने तुम्हें कभी नहीं बताया यह तुम्हारी गुलकन्द को रोज अरोगते थे। यह सुनकर सुकन्या का फीका पडा मुख अचानक से  खिल उठा लेकिन जब उनको गोसाईं जी ने बोला कि आज तुम अपनी बाँसुरी की धुन से राधारमण जी को प्रसन्न कर दो  तभी वहाँ पर हरिराम ने आकर गुसाईं जी को हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से कहा कि मेरी बेटी अब बाँसुरी नहीं बजा सकती क्योंकि इसकी हृदय में छेद है अगर यह बाँसुरी  बजाएगी तो यह जो बचे कुछ ही दिन है उससे पहले ही  इसको कुछ हो जाएगा। हरिराम गोसाई जी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन उधर सुकन्या बाँसुरी बजानी शुरू भी कर चुकी हुई थी और लगातार चार पांच घण्टे आंखें बन्द करके राधा रमण जी के अपने हृदय में दर्शन करते हुए बाँसुरी बजाती है। हरिराम यह देखकर हैरान होता जा रहा था इतनी बीमार लड़की बाँसुरी वादन कैसे कर सकती है। जब सुकन्या ने बाँसुरी को विश्राम दिया तभी मन्दिर में माथा टेकने के लिए दिल्ली से एक बहुत बड़े डॉक्टर का परिवार आया हुआ था उन्होंने गुसाईं जी और हरिराम की सारी बातें सुन ली तो डॉक्टर ने बताया कि जिसको दिल की बीमारी या दिल में छेद होता है वह बाँसुरी वादन नहीं कर सकता। आप लोगों को जरूर कोई गलतफहमी हुई है लेकिन हरिराम ने सौगंध लेकर कहा कि नहीं हम वहाँ पर सुकन्या का इलाज करवा रहे हैं। और डॉक्टर ने बोला है यह कुछ दिनों की मेहमान है तो मन्दिर में आए हुए डॉक्टर ने दोबारा उसके  दिल  की जांच की तो उसने भी देखा कि  सुकन्या के हृदय में तो छेद है लेकिन वह छेद किसी चीज का उस पर आवरण  है लेकिन उसको कुछ समझ नहीं आ रहा था। किसी को यह नहीं पता था कि बीमार सुकन्या के दिल में हुए छेद को खुद राधा रमण जी ने वहाँ पर विराजमान होकर अपने आप से ढका हुआ था। सुकन्या अपनी बीमारी से  बिल्कुल  बेपरवाह  थी  क्योंकि  उसके  दिल के डॉक्टर राधा रमण जी उसके दिल का इलाज करने के लिए खुद उसके हृदय में वास कर रहे थे। यह बात सुकन्या और राधा रमण जी ही जानते थे। सुकन्या ने ऐलान कर दिया कि जब तक उसकी जिंदगी है तब तक वह राधारमण जी को छोड़कर कहीं नहीं जाएगी उसके पिता ने उसको समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह अपनी बात पर अडी रही । इस बात को 25 साल हो गए सुकन्या के बाल सफेद हो चुके थे लेकिन राधा रमन जी के कृपा से उसका ह्रदय आज भी तंदुरुस्त था उसको कुछ भी नहीं हुआ था जिस पर लाल जू की कृपा हो जाए उसको कोई  बीमारी छू भी कैसे सकती है।
          अगर कभी भूल वश कोई बीमारी उनके भक्तों के पास आ भी जाए तो लाल जू इतने कृपालु है कि उनकी कृपा से सारी  चिंताएं सारी  बीमारी छू मंतर हो जाती है।
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                          "जय जय श्री राधे"
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