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*रथ यात्रा लीला 6*


    जैसे कल हम सबने सुना मुस्लिम भक्त सालवेग के लिये रथ रुक जाता है,और कैसे सालवेग रथ पर ही अपने प्राण त्याग देता है ,आज भी सालबेग की समाधि पर रथ रुकता है ,अब मोटे मोटे रस्से फिर भक्त जन खींचते हुये हरि बोल करते आगे बढ़ते है।अब जगन्नाथ जी को भोग लगना है, अब रथ दो घन्टे रुकेगा, भक्त जन वहीं सडक पर रस्से को सिर के नीचे रख कर लेट जाते हैं।अब तो रथ चलने को अभी काफी  समय है ,भक्त जनों से महाप्रभु की दशा देखी नही जा रही ,तो भक्त जन महाप्रभु जी को एक बगीचे में ले आते हैं। यहां भी महाप्रभु बेसुध हो एक पेड के नीचे राधा भाव में पड़े है ।

     राजा प्रताप रुद्र यही मौके के इन्तज़ार में था।जैसे भक्तों ने बता रखा था वैसा ही किया,भक्त जन भी आगे,पीछे हो गए ,अब राजा प्रताप रुद्र दबे पावँ दीन हीन ,फटे पुराने कपड़े पहन कर  आता है , क्युंकि वो जानता है महाप्रभु राजा से नही मिले सकते  । जहाँ महाप्रभु जी अचेत पड़े हैं ,और उन के श्री अंग की सेवा करने लगता है उनके श्री चरण कमल दबाता है,और जैसे भक्तों ने कहा था की गोपी गीत याद कर लेना और महाप्रभु को सुना देना ,अब साथ साथ श्री अंग सेवा करता और साथ साथ गोपी गीत सुनाता है।बहुत सुख मिल रहा है श्री महाप्रभु जी को ।

     अब महाप्रभु जी को होश आने लगता है ,और राजा से पूछते हैं ,"आप कौन हो भाई ,इस प्यासी विरहणी राधा को सुख प्रदान करने  वाले आप कौन हो "? तो राजा बोलते है ,"मै आप के दासों का दास हूं महाप्रभु "।गोपी गीत सुनते ही महाप्रभु जी एक दम उठते ही राजा को गले से लगा लेते हैं,अब राजा पर भी कृपा हो गई ,अब महाप्रभु जी  जान गये सारी युक्ति भक्तों द्वारा बताई गई होगी , क्युंकि भक्त की कृपा के बिना मेरी कृपा कोई नही पा सकता,अब तो इतने में घन्टे,करताल,की आवाज़े हरि बोल की  आवाज आने लगाती है ।यानी रथ चलने की तैयारी में है,अब तो फिर महाप्रभु राधा भाव मे आविष्ट हो कर भागे।अरे चलो चलो जल्दी चलो श्याम सुन्दर को वृन्दावन ले कर नही जाना क्या? मुझ को यहां उद्यान मे कौन ले आया? मेरे शाम सुन्दर तो अकेले ही होंगे ,अरे चलो ना जल्दी चलो ,कही मेरे प्राण नाथ कही और ना चले जाएं। भागते श्री मन महाप्रभु रथ की और चल पड़ते हैं।

( दास मानव )

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