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25श्री नरोत्तम प्रार्थना - ( 25 )
प्रार्थना :-
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हरि हरि ! कबे हव वृन्दावनवासी।
निरखिब नयने युगल रूपराशि॥
त्यजिया शयन सुख विचित्र पालङ्क।
कबे ब्रजेर धूलाय धूसर हबे अंग ॥
षडरस भोजन दूरे परिहर ।
कबे ब्रजे मांगिया खाइब माधुकरी ॥
परिक्रमा करिया बेड़ाब बने बने ।
विश्राम करिब जाइ यमुना पुलिने ॥
ताप दूर करिब शीतल वंशीवटे ।
कबे कुञ्जे बैठव हाम वैष्णव निकटे ॥
नरोत्तमदास कहे करि परिहार ।
कबे वा एमन दशा हइबे आमार ॥
♻ शब्दकोष :-
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पालङक - पलंग
षडरस भोजन - छः प्रकार के रसों से युक्त भोजन
परिहर - त्याग कर
बेड़ाब - घूमना
हाम -मैं
करि परिहार - हाथ जोड़ कर
अनुवाद :-
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नरोत्तम ठाकुर अपने वृन्दावन वास के समय को स्मरण करते हुए ,वहाँ की लीला स्थलियों की स्मृति में भावुक होकर श्री राधाकृष्ण से एक बार फिर श्री वृन्दावन वास की याचना कर रहे है ।
♻ हे हरि ! मैं कब वृन्दावन -वासी बन पाऊँगा ? और मेरे भाग्य में ऐसा शुभ दिन कब आयेगा ... जब मैं अपने नेत्रों से श्री युगल लाल की मधुर रूपराशि के दर्शन कर पाऊँगा ??
♻ विचित्र सुख सुविधा से युक्त कब मैं निद्रा का सुख त्याग कर ब्रज की रज से मैं स्वयं को अभिशिक्त करूँगा ? और कब मैं षडरस की विविधता से युक्त भोजन का त्याग करके ब्रज में माधुकरी माँग माँग कर खाऊँगा ?
♻ कब मैं वृन्दावन के वन वन में कब परिक्रमा लगाते हुए घूमूँगा और यमुना पुलिन में जाकर विश्राम करूँगा ? और कब मैं वंशीवट की शीतल छाया में जाकर अपनी तपन दूर करूँगा ??
♻ और.... हे हरि ! ऐसा समय कब मेरे लिए उदित होगा ,जब मैं वृन्दावन के कुञ्जों में वैष्णवों का सामीप्य प्राप्त करूँगा ? नरोत्तमदास आपके समक्ष करबद्ध हो यही याचना कर रहा है...... कि मुझे ऐसी स्थिति कब प्राप्त होगी ???
♻♻♻♻
॥श्रीराधारमणाय समर्पणं ॥
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