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4श्री नरोत्तम प्रार्थना-(4 )
प्रार्थना :-
♻ शब्दकोष :-
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आमार - मेरे
निरखिव -निहारना
परशिव - स्पर्श करना
ताम्बूल -पान
योगाइव -दोनों के
देह -दें दे
तुया - आपके
लोकेर - जन जन के
अनुवाद :-
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इस पद में ठाकुर महाशय अपने सिद्ध स्वरूप चम्पक मञ्जरी के भाव से अपने गुरूदेव श्री लोकनाथ के सिद्ध स्वरूप मञ्जुलाली मञ्जरी से ललिता विशाखा अन्तरंगा सखियों के अनुगत्य में सेवा प्रार्थना कर रहे है ।
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हरि हरि ! हेन दिन हइवे आमार ।
दोंह अंग निरखिव , दोंह अंग परशिव ,
सेवन करिब दोंहाकार ॥
♻ हे राधे ! हे कृष्ण ! वे दिन कब आयेंगे , जब मैं आप दोनों के श्री अंग का छवि दर्शन करूँगी ? दोनों के श्री अंग का स्पर्श पाकर आपकी सेवा प्राप्त करूँगी ?
ललिता विशाखा संगे, सेवन करिव रंगे ,
माला गांथि दिव नाना फुले ।
कनक सम्पुटि करि , कर्पूर ताम्बूल भरि,
योगाइव वदन -कमले ॥
♻ श्री ललिता-विशाखा जी के अनुगत्य में रहकर आपकी अनुराग पूर्वक सेवा करूँगी । अनेक प्रकार के पुष्पों की सुन्दर मालायें गूँथ दूँगी , सुवर्ण की डिबिया में कर्पूर -मिश्रित ताम्बूल भर कर ले आऊँगी और आप दोनों के श्री मुख में अर्पण करूँगी ।
राधा-कृष्ण श्री चरण, सेइ मोर प्राणधन
सेइ मोर जीवन उपाय ।
जय पतित-पावन , देह मोरे एह धन ,
तुया बिन अन्य नाहि भाय ॥
♻ आपके चरण कमल ही मेरे प्राणधन हैं , मेरे जीवन आधार है । हे पतित पावन ! आपकी जय हो ! मुझे तो कृपा कर अपने चरणों की सेवा का धन दान कर दीजिए । आपके बिना मुझे और कुछ भी नहीं सुहाता ।
श्रीगुरू करूणासिन्धु, अधम जनार बन्धु
लोकनाथ लोकेर -जीवन ।
हा हा प्रभु ! कर दया ,देह मोरे पद छाया ,
नरोत्तम लइल शरण ॥
♻ ( किन्तु श्री गुरूदेव शरणागति के बिना श्री युगल-सेवा का सौभाग्य दुर्लभ है- यह जानकर नरोत्तम पुनः अपने वर्तमान स्वरूप और भाव में कहते है - )-- हे गुरूदेव करूणा सिन्धो ! हे अधमजन-बन्धों !! हे लोक-जीवन श्री लोकनाथ प्रभो !!! आप मुझ पर दया कीजिए , मुझे अपनी चरण- छाया में आश्रय दीजिए , मैं , नरोत्तम आपकी शरण में हूँ....... ।
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॥श्रीराधारमणाय समर्पणं ॥।
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