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37श्री नरोत्तम प्रार्थना - ( 37 )
प्रार्थना :-
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प्रभु हे ! एइबार करह करूणा ।
जुगल चरण देखि , सफल करिब आँखि ,
ऐइ मोर मनेर कामना ॥
निज पद सेवा दिवा,नाहि मोरे उपेखिवा
दुँहु पँहु करूणा सागर ।
दुँहु बिनु नाहि जानो, एइ बड़भाग्य मानो
मुइ बड़ पतित पामर ॥
ललिता आदेश पाञा, चरण सेविव जाञा,
प्रिय सखी संगे हय मने ।
दुँहु दाता शिरोमणि, अति दीन मोरे जानि ,
निकटे चरण दिबे दाने ॥
पाब राधाकृष्ण पा, घुचिबे मनेर घा ,
दूरे जाबे ए सब विकल ।
नरोत्तमदासे कय, एइ वांछा सिद्धि हय ,
देह प्राण सकल सफल ॥
♻ शब्दकोष :-
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एइबार -इसी जन्म में
उपेखिवा - उपेक्षा
पामर -पतित
पाब - चरण
घुचिबे घा - घाव भर जायेगा
इस पद से पुनः नरोत्तम ठाकुर में दीनता का भाव प्रबल हो रहा है । वे सोच रहे है कि मैंने तो निकुञ्ज सेवा की याचना की है लेकिन मैं तो अतिशय पामर हूँ....... मुझमें कहाँ सेवा की पात्रता है .... पर श्री प्रियालाल जी के श्री चरणों की कृपा से सब सम्भव है । इसलिए वे चम्पक मञ्जरी के भाव में श्री राधाकृष्ण के चरण-आश्रय की प्रार्थना करते है ।
अनुवाद :-
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♻ हे प्रभो ! अब तो आप इस जन्म में ही कृपा करो । आपके युगल चरणों के दर्शन कर मैं कब अपने नेत्रों को सफल करूँगी - बस अब तो आपके चरणों के दर्शन ही मेरी एकमात्र कामना है ।
♻ हे राधामाधव ! आप मुझे अपनी चरण सेवा दीजिए ! अब आप मेरी और उपेक्षा न करिये ! चम्पक मञ्जरी उन्हें उनकी करूणा का स्मरण दिलाते हुए कहती है , "आप दोनों ही करूणासागर है ! आप दोनों के चरणों के अतिरिक्त मेरी और कोई ठौर नहीं है , और आपका परिचय ही मेरा एकमात्र सम्बल है । वरना मैं तो अतिशय पामर हूँ ।"
♻ श्री ललिता जी का आदेश पाकर मैं उनकी प्रिय सखियों के अनुगत्य में आपके श्री चरणों की सेवा करूँगी ! आप दोनों तो दाता शिरोमणि है और मैं अतिशय दीन हूँ ..... यह तो आप ही अपनी करूणा के अन्तर्गत मुझे अपने चरणों के आश्रय में स्थान दीजिए !!
♻ जब मुझे श्री राधाकृष्ण के चरणों का आश्रय प्राप्त होगा , तभी मेरे मन का घाव पुरेगा और मेरे ह्रदय की समस्त विकलता दूर हो जायेगी !! जब मेरी यह वांछा पूर्ण होगी तभी मेरी देह एवम् प्राण सफल होंगें !!!!
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॥श्रीराधारमणाय समर्पणं ॥
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