सन्त वाणी नाम महिमा रामसुखदास जी

॥ सन्तवाणी ॥–श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
नाम-महिमा

नाम-महिमा

भागवतके एकादश स्कन्धमें नव योगेश्वरोंके प्रसंगमें आता है कि कोई भक्तसे कहे कि आधे क्षणके लिये भी तू भगवान्‌की स्मृति छोड़ दे तो तेरेको त्रिलोकीका राज्य दे देंगे तो वह कहता है‒तेरे किसी वैभवके लिये भी आधे क्षणके लिये मैं भगवान्‌को छोड़ नहीं सकता । उसके सामने वैभव कुछ नहीं है । यह है क्या चीज ? यह तो क्षणभंगुर है और भगवान् हैं निरन्तर रहनेवाले । इस वास्ते किसी लोभमें आकर भी वह भगवान्‌के नामको कैसे छोड़ सकता है । अगर नाम छूट जाता है तो नामकी कीमत नहीं समझी है । नामका महत्त्व उसके ध्यानमें नहीं आया । तात्पर्य यह हुआ कि भगवान्‌की भूल होती नहीं । भूल कैसे हो ? ‘भूले नाय बने दयानिधि भूले नाय बने ।’भूले बनता नहीं । कैसे भूल जाय, भूल सकता नहीं ।

जिसको यह रस लग गया तो लग ही गया । जैसे, मक्खी हर एक जगह बैठ जाती है और उड़ जाती है । मक्खी पहले तो अंगारपर बैठती ही नहीं और कभी बैठ जाय तो फिर उठती नहीं कभी । फिर धुआँ ही उठेगा, वह नहीं उठेगी । ऐसे ही यह मन जबतक भगवान्‌में, भगवान्‌के नाममें नहीं लगा है, तबतक यह जगह-जगह भटकता रहता है, परन्तु जब यह भगवान्‌में लग जायगा तो फिर जय रामजीकी....! फिर तो बस, खतम ! फिर उठ नहीं सकता । जबतक मन उठता है, तबतक मन नहीं लगा है, भजन नहीं हुआ है । लोग कहते हैं‒‘हमने बहुत भजन किया, नाम-जप किया ।’ बहुत किया क्या ? अभी नाम शुरू ही नहीं हुआ । असली भजन शुरू नहीं हुआ है । शुरू होनेपर छूट जाय, यह आपके हाथकी बात नहीं । आप विचार करो, मरनेके बाद हड्डियोंमें भगवान्‌का नाम आता है तो नाम कैसे छूट सकता है ।

मारवाड़में एक फूली बाई जाटणी हुई है । वह भगवान्‌का नाम लेती थी । उसका काम था थेपड़ी थापनेका । वह गोबरकी थेपड़ी थापती थी । किसीने उसकी थेपड़ी ले ली तो वह उसके यहाँ गयी और कही‒तूने मेरी थेपड़ी ले ली । उसने कहा‒मैंने नहीं ली । अगर मैंने ली है तो उसकी क्या पहचान है तेरे पास ? फूली बाईने कहा‒थेपड़ी लगाओ कानसे । उसने कानसे लगाया तो उसमें ‘राम-राम-राम’ की ध्वनि निकल रही थी । थेपड़ीमें नाम-जप हो रहा था । उसने आश्रर्यसे कहा‒इसमें तो ‘राम-राम-राम’ हो रहा है । फूली बाईने कहा‒यही तो है हमारी पहचान ! ऐसी थी फूली बाई ! तो जो सच्चे हृदयसे नाम ले, उसकी कितनी महिमा है ।

‘यह डोकरी (बुढ़िया) भगवान्‌की भक्ता है’‒ऐसा सुन करके एक बार जोधपुर दरबार वहाँ चले गये, जहाँ फूली बाई रहती थी । वहाँ जाकर देखा तो अपने प्रत्येक फौजीके सामने फूली बाई खड़ी है और फौजीको वही बाजरेका सोगरा, गँवार फलियोंका साग भोजन करा रही है । यह देखकर राजा बड़े खुश हुए और उसको बुलाकर रनिवासमें इस वास्ते भेजा कि रानियोंको सत्संग नहीं मिलता ।

॥ सन्तवाणी ॥–श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज.

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