वंदना
*विगलित-नयन-कमल-जलधारं*
*भूषण - नवरस - भावविकारम्।*
*गति - अतिमन्थर - नृत्यविलासं*
*तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।*
*चंचल-चारु-चरण-गति-रुचिरं*
*मंजीर-रंजत-पदयुग-मधुरम्।*
चन्द्र - विनिन्दित - शीतलवदनं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।
घृत-कटि-डोर-कमण्डलु-दण्डं
दिव्य कलेवर-मुण्डित-मुण्डम्।
दुर्जन - कल्मष - खण्डन - दण्डं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।
भूषण - भूरज - अलका - वलितं
कम्पित-बिम्बाधरवर-रुचिरम्।
मलयज-विरचित-उज्ज्वल-तिलकं
तं प्रणमामि च श्रीशचीतनयम्।।
जिनके नयन-कमलोंसे निरन्तर अश्रुधारा प्रवाहित होती रहती
है, नवरस भाव-विकार जिनके श्रीअंगोंके भूषण-स्वरूप हैं और
नृत्य-विलास हेतु जिनकी गति अति मन्थर है, उन शचीनन्दन
श्रीगौरहरिको प्रणाम करता हॅू।।
जिनके नूपुर-शोभित श्रीचरण-यगुलकी गति अतिशय मनोहर
है, उन चन्द्र-विनिन्दित सुशीतल वदन विशिष्ट शचीनन्दन श्रीगौर
हरिको प्रणाम करता हू।
जिन्होंने कटितटमें (कमरमें) डोर-बहिर्वास एवं हाथमें दण्ड
कमण्डलु धारण कर रखा है, मुण्डन किया हुआ अति भव्य
जिनका मस्तक है, जो अतिशय दिव्य कलेवर विशिष्ट हैं, जिनका
दण्ड दुर्जनोंके पाप-समहूका खण्डनकारी है, उन शचीनन्दन श्रीगौर हरिको प्रणाम करता हॅू।
जिनकी अलकावलि (नृत्यहेतु उठी) धूलिरूप भूषण-विशिष्ट
है, जिनका (हरिनाम कीर्तन हेतु) कांपता हुआ बिम्ब सदृश
अरुण-अधर बड़ा ही मनोहर लगता है, मलयज चन्दन द्वारा
विरचित उज्ज्वल तिलकसे सुशोभित उन शचीनन्दन श्रीगौरहरिको प्रणाम करती हूँ।
जय जय जय मेरे गौरहरि
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