श्रवण मंगलम

*भक्ति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण अंग श्रवणम्🌷*

*'श्रवणम्'* भक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यह भक्ति के मुख्य तीन अंगों में से एक है। श्रील् प्रभुपादजी भी अपने कई व्याख्यानों में कहते हैं -- *'भगवान् श्रीकृष्ण ने हमें यह कान दिए ही इसलिए हैं कि हम चौबीस घण्टे श्रवण कर सकें।'*
यह "हरे कृष्ण" महामन्त्र इतना शक्तिशाली है कि इसका श्रवण चाहे सुप्त अवस्था में किया जाये या श्रवण करने वाले को कुछ भी समझ न आये या ध्यानपूर्वक श्रवण न भी किया जाये, तब भी यह अपना प्रभाव दिखाता है *(ध्यानपूर्वक जप न करना अपराध है लेकिन श्रवणम् में ऐसा नहीं है)*। श्रवण करने से "हरे कृष्ण" की दिव्य ध्वनि हृदय की गहराई तक जाती है और श्रवण करने वाले के हृदय को अनर्थों से मुक्त करती है। यह श्रवण तब और भी अधिक असर करता है जब यह श्रवण किसी शुद्ध और प्रामाणिक भक्त से किया जाये।

भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से आधुनिक तकनिकी उन्नति के कारण आधुनिक भक्तों के लिए चौबीस घण्टे श्रवण की व्यवस्था करना बेहद आसान हो गया है, और तो और हमारे पास भगवान् श्रीकृष्ण के अतिप्रिय और शुद्ध प्रामाणिक वैष्णव भक्त श्रील् प्रभुपादजी के श्रीमुख से गाये हुए कीर्तन, भजन और प्रवचन भी उपलब्ध हैं और वो भी ऑनलाइन जिनको हम कभी भी और कहीं भी सुनकर लाभ उठा सकते हैं। आधुनिक भक्तों के लिए यह बहुत अच्छा सुअवसर है जिनका भक्त बहुत ही सरलता से लाभ उठा सकते हैं।

*🌼श्रवण के चरण🌼*
प्रामाणिक आचार्यों की शिक्षाओं का श्रवण करना प्रथम चरण है। दूसरा चरण है उन शिक्षाओं को समझना तथा जीवन में लागू करना। जिस सीमा तक व्यक्ति अपने जीवन में इन शिक्षाओं को लागू करता है, उसी सीमा तक आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करता है।

श्रील् प्रभुपादजी ने इन शिक्षाओं को ४ सिद्धान्तों में प्रस्तुत किया है 🔽
*१.* सदा हरिनाम करना।
*२.* अनर्थों का त्याग करना।
*३.* वैष्णव संग करना।
*४.* सदा श्रीकृष्ण-कथा का श्रवण और श्रीभगवन्नाम-जप एवं कीर्तन करना।

चारों वैष्णव सम्प्रदायों में यह चार बातें (सिद्धान्त) लगभग समान हैं।

श्रील् भक्तिविनोद ठाकुरजी कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति इन चार सिद्धान्तों का पालन करता है तो वह दो-तीन महीनों में ही श्रीकृष्ण प्रेम प्राप्त कर सकता है।

*यह कैसे सम्भव है ?*

दो-तीन वर्षों में नहीं, बीस-तीस साल में नहीं, दो-तीन जन्मों में नहीं बल्कि दो-तीन महीनों में ही।

नाम-अपराधों, धाम-अपराधों तथा सेवा-अपराधों से बचकर शीघ्र ही कृष्ण-प्रेम प्राप्ति का लक्ष्य पाया जा सकता है।
दसवाँ नामापराध जिससे हर कोई संघर्ष कर रहा है वह है --
भगवन्नाम का उच्चारण ध्यानपूर्वक न करना तथा इसकी इतनी अगाध महिमा सुनने पर भी भौतिक आसक्ति बनाये रखना।
यही अपराध अन्य नाम-अपराधों का स्रोत है। भौतिक आसक्ति ही मुख्य बाधा है। हमें यह समझना चाहिए कि जब तक व्यक्ति भौतिक आसक्तियों से बँधा है, तब तक वह इस संसार में बार-बार जन्म लेता रहेगा।

वर्तमान समय की  कुछ भौतिक आसक्तियाँ ➡
*१.* तरह-तरह की बेकार की मूवी, सीरियल इत्यादि टीवी प्रोग्राम देखना।
*२.* भौतिक पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें पढ़ना, भौतिक ज्ञान लेने में ही व्यस्त रहना
*३* जोक पढ़ना, सुनना, क्रिकेट इत्यादि देखना।
*४* ऐसे लोगों की चर्चा करना जिनका कृष्णभावनामृत से कोई सरोकार नहीं है।
ऐसे ही बहुत सी भौतिक-आसक्तियाँ हैं जिनसे भक्तों को अपने जीवन की परमसिद्धि, भगवान् श्रीकृष्ण की शुद्ध-प्रेमाभक्ति पाने के लिए दूर रहना चाहिए।

श्रील प्रभुपाद की जय 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀हरे कृष्ण ।।

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