निताई गुनमणि
निताई गुनमणि आमार निताई गुनमणि।
आनिया प्रेमेर वन्या भासाल अवनी।।
प्रेमवन्या लइया निताई आइला गौड़ देशे।
डुबिल भक्तगण दीनहीन भासे।।
दीनहीन पतित पामर नाहि बाछे।
बह्मार दुर्लभ प्रेम सबकारे जाचे।।
जे ना लय तारे बले दन्ते तृण धरि।
आमारे किनिया लह भज गौरहरि।।
एत बलि नित्यानन्द भूमे गड़ि जाय।
सोनार पर्वत जेन धूलाते लौटाय।।
निताई रंगिया मोर प्रेम कल्पतरु।
कांगालेर ठाकुर निताई जगतेर गुरु ।।
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