गौरा न भजिया

श्री नरोत्तम दास ठाकुर महाशय की प्रार्थना 

गोरा पहुन् ना भजिया मैनु
प्रेम-रतन-धन हेलाय हाराइनु।।१।।

हे गौरंग महाप्रभु! मेने आपके श्रीचरणो का भजन नही किया। अपनी लापरवाही से मेने दिव्य प्रेम धन (रत्न-धन) को खो दिया।

अधने जतन कोरि धन तेयागिनु
आपन करम-दोषे आपनि डुबिनु।।२।।

उस प्रेमधन को त्यागकर मे सांसारिक नाशवान विषयो के संग्रह मे लगा रहा। इस प्रकार अपने ही कर्मो के दोष से मैने स्वयं को संसाररूपी सागर मे डुबा दिया।

सत्संग छाडि ‘ कैनु असते विलास्
ते-कारणे लागिलो जे कर्म-बंध-फान्स्।।३।।

मे सत्संग का परित्यागकर, असत विषयो मे रमता रहा इसलीये मे कर्मो के बंधन मे फस गया।

विषय-विषम-विष सतत खाइनु
गौर-कीर्तन-रसे मगन ना हैनु।।३।।

इंद्रयतृप्ती रूप विषम-विष का पान मे निरंतर करता रहा, परंतु श्रीगौरसुंदर के कीर्तन रस मे मग्न नही हो सका।

एमन गौरङ्गेर गुणे ना कानिदल मन
मनुष्य दुर्लभ जन्म गेले अकारण।।४।।

श्रीगौरंग महाप्रभु के गुणो का गाणं करने मे मेरा मन रोता नही, इसलीये मेरा दुर्लभ मनुष्य जन्म अकारण व्यर्थ ही गया।

केनो वा आछये प्राण कि सुख पाइया
नरोत्तम् दास् केनो ना गेलो मरिया।।५।।

नारोतमदास ठाकूर कहेते हे- श्रीगौरांगदेव के भजन बिना मेरे शरीर मे किस सुख के लिये अब तक प्राण बचे हे ? में अभी तक मर क्यो नही गया ?😭🙏

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