आर हरिनाम बलिब कबे

"आर हरिनाम बलबि कबे ?
भाविते शुनितेरे मन दिने दिने दिन फुरावे।।
पद्मपत्रेर वारि जेमन तेपनि जीवेर जीवन।
ढलिया पड़िबे जखन, अपनि अंग अवश हो।।
देहेर बाती एइ दुइ नयन, जाते कर दिक दरशन।
प्रबल हइले काल पवन, ज्वाला बाति निबे जावे।।
जदि बलो बन्धुजने नाम शुनाबे शेड निदाने।
शुनते पाबिने पाबिने, अमनि कर्ण बधिर हवे।।"

-रे मन, और कब हरिनाम लेगा? सोच विचार करते-करते एक-एक कर दिन बीत जायेंगे। कमल के पत्ते पर पानी-जैसा यह जीवन ढलकर जब गिर पड़ेगा, शरीर बेकार हो जायेगा। देह की बत्तियों के समान ये दो नयन जिनसे तू देखता है, कालरूपी पवन के प्रबल होते ही इनकी लौ बुझ जायगी। यदि तू कहे कि बन्धु-बान्धव तुझे उस समय हरिनाम सुनायेंगे, तो जान ले कि तू सुन न पायेगा, तेरे कान बहरे हो जायेंगे।

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