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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙
            
             🌿श्रीमाधवेन्द्रपुरी मिलन🌿
क्रम: 1⃣1⃣
                   🌺 दैवयोग से यहां इनको श्रीमाधवेंद्र पुरी का दर्शन हुआ। कृष्ण प्रेममय कलेवर था और कृष्णरस आस्वादन ही जीवातु था जिनका। अनेक शिष्य उनके साथ थे। श्रीकृष्ण ही उनके शरीर में विहार करते थे। तभी तो श्री अद्वैताचार्य गोस्वामी ने उन्हें अपने श्री गुरु रूप में वरण किया था।  आहा ! उनके दर्शन करते ही श्रीनिताई चांद तो प्रेम- मूर्छित हो गए । उधर भी यही दशा हुई, भूल गए समस्त सुध-बुध श्रीमाधवेंद्र पुरी भी देखते ही प्रेम मतवाले श्री निताई चांद की रूप छटा । प्रेम का अंत जो होता है वही हुआ कि दोनों उच्च स्वर से रो उठे।  दोनों के नेत्रों से निकली अजस्र अश्रुधारा, दोनों के क्लेवर को अभिषिक्त करने लगी।  सब शिष्य समाज भी इस प्रेमोन्मत जोड़ी की ये अपूर्व दशा देख रह न सका- रो उठा जोर से । कुछ देर के बाद अपने को संभाला दोनों ने । एक दूसरे के गले लग गए । दोनों में अश्रु, कम्प, पुलक आदि सात्विक भावों की तरंगे उमड़ उठी, सारा वन प्रदेश प्रेमरस से आप्लावित हो उठा।
                  🌸 मैंने समस्त तीर्थ यात्रा का फल आज भर पाया -गदगद कंठ से कहा श्रीनिताई चांद ने। अहो ! आपके चरण दर्शन कर मेरा जीवन धन्य हो गया।  श्रीमाधवेंद्र पुरी तो कुछ बोल ही न सके। कलके आलिंगन कर रहे थे बार -बार श्री निताई चांद को। उनके साथी श्रीईश्वर पुरी, श्री ब्रह्मानंद पूरी साक्षात नित्यानंद को ही प्राप्त हो रहे थे। उन सब ने आज तक ऐसा कृष्ण -प्रेम नहीं देखा था। आज उनके मन में सब दुख मिट गए। अनेक दिन तक श्री माधवेंद्र पुरी एवं श्रीनिताई चांद एक साथ रहे और श्री कृष्ण कथा -लीलारस में परमानंद अनुभव करने लगे। श्रीमाधवेंद्र पुरी तो श्याम बादल को देखकर अचेतन हो जाते -ऐसा अपूर्व कृष्ण -प्रेम। उधर अवधूत श्रीनिताई चांद महामत अट्हास करते हैं। कभी तो "हाय ! हाय ! हे श्यामसुंदर कहां हो प्यारे" कह -कह कर रोते हैं, चिल्लाते हैं पिछाड़े खा-खा कर जमीन पर गिर जाते हैं।
                🌿 कब दिन होता है और कब रात -इसकी क्या खबर इन दोनों मतवालों को। श्रीमाधवेंद्र तो छोड़ते ही नहीं थे। श्री निताई चांद को -"हाय! ऐसा कृष्ण प्रेम कहीं भी नहीं देखा। सब तीर्थों का फल श्री कृष्ण -कृपा से तुम मिले हो मुझे निताई चाँद! कैसे जाने दूं तुम्हें - सर्व तीर्थमय, वैकुंठमय हो रहा है मुझे तुम्हारा संग -हे  प्रेमदाता निताई ! तुम मुझे छोड़कर अब कहीं नहीं जायो। श्रीमाधवेंद्र पुरी यही कहते रहते । श्रीनिताई चांद केवल श्रीगुरु बुद्धि ही पोषण करते श्रीमाधवेंद्र पुरी के प्रति।       

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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