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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 1⃣9⃣

💐दीक्षा ग्रहण लीला💐

           🌿लौकिक लीला में श्री निताई चांद प्रभु के दीक्षा गुरुदेव के विषय में मतभेद का उल्लेख मिलता है। कोई इन्हें माधवेंद्र पुरी जी का शिष्य कहते हैं ,प्रेम विलास में इन्हें श्री ईश्वर पुरी जी का शिष्य कहा गया है । इस विषय का स्पष्टीकरण चरितांश खंड में नहीं हो सका , यहां किया जाता है ।

         🌹श्री माधवेंद्र पुरी जी ईश्वर पुरी के गुरु थे एवं श्रीमन महाप्रभु कृष्ण चैतन्य देव के तथा श्री अद्वैत आचार्य प्रभु के परम गुरु थे। श्रीनिताई चांद के साथ श्री माधवेंद्र पुरी जी का मिलन हुआ था माहिष्मती पुरी में (पृष्ठ 21 दृष्टव्य )वहां परस्पर दोनों कृष्ण कथा रंग में प्रेमोन्मत्त हो उठे। श्री पुरी जी श्री निताई चांद के कृष्ण प्रेम को देखकर उतने ही मुग्ध हो उठे जितने श्री निताई चांद ।

          🌿श्री माधवेंद्र पूरी इनको अपना बंधु गुरु भाई समझ गए और अनेक दिन दोनों वहां एक साथ रहे । वयोवृद्ध होने के कारण श्री निताई चाँद उनमें गुरु बुद्धि रखते थे, भक्ति रत्नाकर (5) में ऐसा  ही उल्लेख है किंतु श्री निताई चांद ने उनसे दीक्षा ग्रहण की ऐसा उल्लेख कहीं नहीं है। प्रेम विलास का मत भी किसी प्रमाण द्वारा पुष्ट नहीं होता ।
कथोदिन  परे  माधवेंद्रेर  सहिते।
देखा हइल  प्रतीची तीर्थेर  समीपेते।।
  नित्यानंदे  बंधुज्ञान  करे  माधवेंद्र ।
माधवेंद्र  गुरुबुद्धि  करे नित्यानंद।।

      🌹   साथ में भक्ति रत्नाकर (5)का उल्लेख है कि लक्ष्मीपति प्रभुपाद ही आपके दीक्षा गुरु थे- के कहिते पारे लक्ष्मी पतिर महिमा ।
यार शिष्य माधवेंद्र पूरी एइ सीमा।।
लक्ष्मीपति स्थाने शिष्य हैला नित्यानंद ।
बाढाईल तार अति अद्भुत आनंद।।

         🌿 तीर्थ भ्रमण करते-करते निताई चांद जब पंढरपुर में श्री विट्ठलनाथ जी के मंदिर के पास एक ब्राह्मण के घर में निवास कर रहे थे। उस समय श्री लक्ष्मीपति गोपाल को रात्रि में स्वप्न हुआ कि एक ब्राह्मण कुमार अवधूत वेश धारी इस ग्राम में आया हुआ है । कल वह तुम्हारे पास आएगा उसे यह मंत्र सुना कर शिष्य कर लेना -
   एई ग्रामे आईला एक ब्राह्मण कुमार अवधूत देश शिष्य हाईवे कुमार ।
एई मंत्र शिष्य तुमि करिबे ताहारे।
एत कहि मंत्र कहे तार करण द्वारे।।

        🌹 दूसरे दिन श्री निताई चांद भ्रमण करते करते उनके पास पहुंचे । श्री लक्ष्मीपति ने प्रेमपूर्वक उनका आलिंगन किया। श्री प्रभु ने उनसे दीक्षा प्रदान करने की  प्रार्थना की और लक्ष्मीपति प्रभुपाद ने उन्हें दीक्षा प्रदान की। दीक्षा के बाद जब श्री निताई चांद वहां से अन्यत्र चले गए तो श्री लक्ष्मीपति प्रभु इतने बड़े कातर हो उठे कि वे परमधाम पधार गए। तबसे पंढरपुर वासी श्री निताई चांद के स्वरूप को जान गए और उन सबकी सी
श्रीनिताई चांद के चरणों में प्रबल भक्ति उदित हो उठी।

         🌿 इस उल्लेख से स्पष्ट है कि लौकिक लीला में श्री निताइ चांद प्रभु ने श्री लक्ष्मीपति प्रभुपाद से दीक्षा ग्रहण की थी यही समीचीन मत है।

क्रमशः

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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