गुरु निताई
श्री गुरु निताइ
जै जै श्री नित्यानन्द, जै जै गौर हरि ।
कृपा निधि कृपा करौ मो अधमोपरि ।।
जाके चरण कमल पर, कोटिप्रयाग निवास ।
शेष महेश दिनेश गनेश, सेवन करें अभिलाष।।
"गर्भवास" एकचक्रा जहा प्रभु लिनौ अवतार ।
जमुना में जगन्नाथ विराजे रेणुका में रामेश्वर।।
लता कुॅजन में कोटि काशी , द्वार द्वार पर हरिद्वार।
विटपि वितान अयोध्या वसे, पुष्कर वद्री केदार।।
रज में कोटि चिंतामनि ,तरु कलप तरु होय ।
जल अमृत समान हैं, समुझि सकें नही कोई ।।
वसुधा जाह्नवा सॅग विलसे श्री नित्यानन्द ।
योगपीठ मनिकर्णिका, सेवे दास अनन्त ।।
वलिहारी शोभा भारी , आनन्द धाम उरधार।
स्वर्ग अपवर्ग सो काम क्या, हम हैं निताइ किँकर ।।
पद पङ्कज वन्दौ सदा, सेवा सुख नित आश ।
श्री गुरु चरण सुमिरण करें, गोपीशरण दास ।।
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